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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १२४-१२५
अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियस्स देसे,
अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियाण य देसा, एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणि दिएसु जाव ।
अहवा-एगिदियदेसा य, अणिदियाणदेसा ।
जे जीवपदेसा ते नियम एगिदियपएसा,
अथवा--(२) एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और बेइन्द्रिय का एक देश हैं।
अथवा-(३) एकेन्द्रियों के देश हैं और बेइन्द्रियों के देश हैं।
इसप्रकार मध्यमभंगरहित (शेषभंग) यावत् अनिन्द्रियों के हैं यावत्
अथवा—एकेन्द्रियों के देश हैं और अनिन्द्रियों के देश हैं।
वहाँ जो जीवों के प्रदेश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं।
अथवा- एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और एक बेइन्द्रिय के प्रदेश है। अथवा-एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और बेइन्द्रियों के प्रदेश हैं। इसी प्रकार प्रथमभंग रहित (शेषभंग) यावत् पंचेन्द्रियों
.
अहवा-एगिदियपएसा य, बेइंदियस्स पएसा, अहवा-एगिदियपएसा य, बेइंदियाण य पएसा, एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिदिए।
अणिदिएसु तियभंगो।
अनिन्द्रियों के तीनों भंग कहने चाहिये। जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, ते जहा-हवीअजीवा वहाँ जो अजीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा--रूपी य, अरूबीअजीवा य।
अजीव और अरूपी अजीव । रूबी तहेव। ..
___ रूपी अजीवों के कथन के समान है। जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा
वहाँ जो अरूपी अजीव हैं वे पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथानो धम्मत्थिकाए । (१) धम्मत्यिकायस्स देसे, (२) धम्म- धर्मास्तिकाय नहीं है । (१) धर्मास्तिकाय का देश । (२) धर्माथिकायस्सपदेसे, एवं ३-४ अधम्मत्थिकायस्स वि, स्तिकाय का प्रदेश। (३) अधर्मास्तिकाय का देश । (४) अधर्मा(५) अद्धासमए।
स्तिकाय का प्रदेश । (५) अद्धासमय ।.... -भग० स० ११, उ० १०, सु० १७ ।
ओवासंतराईणं गरुयत्ताईपरूवणं१२५ : प० (१) सत्तमे णं भंते ! ओवासंतरे किं गरुए ? (२)
लहुए ? (३) गरुयलहुए ? (४) अगरुयलहुए ? उ० (१) गोयमा ! नो गरुए। (२) नो लहुए। (३) नो
गरुयलहुए । (४) अगरुयलहुए। प० (१) सत्तमे णं भंते ! तणुवाते किं गरुए ? (२) लहुए? .... (३) गरुयलहुए ? (४) अगरुयलहुए? उ० (१) गोयमा ! नो गरुए। (२) नो लहुए। (३)
गरुयलहुए । (४) नो अगस्यलहुए। एवं सत्तमे घणवाए, सत्तमे घणोदही, सत्तमा पुढवी।
अवकाशान्तर आदि का गुरुत्वादि प्ररूपण१२५ : प्र० (१) भगवन् ! सप्तम अवकाशान्तर क्या गुरु है ? (२) लघु है ? (३) गुरु-लघु है ? (४) या अगुरु-लघु है ?
उ० (१) गौतम ! (सप्तम अवकाशान्तर) गुरु नहीं हैं ? (२) लघु नहीं है। (३) गुरुलघु नहीं है । (४) अगुरुलघु है।
प्र० (१) भगवन् ! सप्तम तनुवात क्या गुरु है ? (२) लघु है ? (३) गुरु लघु है ? (४) या अगुरु लघु है ?
उ० (१) गौतम ! (सप्तम तनुवात) गुरु नहीं है। (२) लघु नहीं है। (३) गुरु लघु है । (४) अगुरु लघु नहीं हैं।
इसप्रकार सप्तम घनवात, सप्तम घनोदधी और सप्तमा पृथ्वी है।
सभी अवकाशान्तर सप्तम अवकाशान्तर जैसे हैं।
जिस प्रकार तनुवात गुरु-लघु है इसी प्रकार अवकाश घनवात घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर और वर्ष (क्षेत्र) हैं।...
ओवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे ओवासतरे। सेमा जहा तणुवाए। एवं ओवास-वाय-घणउदही- पुढवी-दीवा य सागरा वासा।
-भग० स० १, उ० ६, सु० ४- ५ [१-४] ।