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सूत्र १२२-१२४
अधोलोक
गणितानुयोग ५७ wwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm एवं सव्वासि चउसु वि दिसासु पुच्छितव्वं ।
इसीप्रकार सभी पृथ्वियों की चारों दिशाओं के
सम्बन्ध में प्रश्न करने चाहिए। पंकप्पभाए पुढवोए चोद्दसहि जोयणेहिं अबाधाए पंकप्रभा पृथ्वी से चौदह योजन (दूर) बाधारहित लोयते पण्णत्ते।
लोकांत कहा गया है। पंचमाए–तिभागणेहि पन्नरसहिं जोयहिं अबा- पाँचवी (पृथ्वी) से तीन भाग न्यून पन्द्रह योजन (दूर) धाए लोयंते पण्णत्ते।
बाधारहित लोकांत कहा गया है। छट्ठीए-सतिभागेहि पन्नरसहि जोयर्णाहं अबाधाए छठी (पृथ्वी) से तीन भाग सहित पन्द्रह योजन (दूर) लोयते पण्णत्ते।
बाधारहित लोकांत कहा गया है। सत्तमीए-सोलसहि जोयह अबाधाए लोयंते सातवीं (पृथ्वी) से सोलह योजन (दूर) बाधारहित पण्णत्ते।
लोकांत कहा गया है। एवं जाव उत्तरिल्लातो।
इसी प्रकार यावत् उत्तर के (चरमान्त) से भी है। -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७५ ।
अधोलोगखेत्तलोए वव्व-काल-भावओ आधेयपरूवणं- द्रव्य-काल और भाव से अधोलोक-क्षेत्रलोक का आधेय
प्ररूपण-- १२३ : (१) दव्वओणं अहेलोगखेत्तलोए अणंता जीवदव्वा, अणंता १२३ : (१) द्रव्य से अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त जीव द्रव्य हैं अजीवदठवा, अणंता जीवाजीवदव्वा ।
अनन्त अजीव द्रव्य हैं और अनन्त जीवाजीव द्रव्य हैं। (२) कालओ णं अहेलोगखेत्तलोए न कयावि न आसी, (२) काल से अधोलोक क्षेत्रलोक कभी नहीं था-ऐसा नहीं
न कयावि न भवइ, न कयावि न भविस्सइ य, धुवे, हैं, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है और कभी नहीं होगा-ऐसा भी णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, णिच्चे। नहीं है, था, है और रहेगा, (वह) ध्रुव है, नियत है, शास्वत है,
अक्षय है, अव्यय हैं, अवस्थित है और नित्य है। (३) भावओ णं अहेलोगखेत्तलोए अणंता वण्णपज्जवा, (३) भाव से अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त वर्णपर्यव हैं, गन्ध
गंधपज्जवा, रसपज्जवा, फासपज्जवा, अणता पर्यव हैं, रसपर्यव हैं और स्पर्शपर्यव हैं। अनन्त संस्थानपर्यव हैं, संठाणपज्जवा, अणंता गरुयलहुयपज्जवा, अणंता अनन्त गुरु लघुपर्यव हैं तथा अनन्त अगुरु-लघुपर्यव हैं ।.... अगरुयलहुयपज्जवा। -भग० स० ११, उ० १०, सु० २२, २४, २५ ।
अहेलोगस्स एगागासपएसे जीवाजीवा तद्देसपए- अधोलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव, अजीव और सा य
उनके देश-प्रदेश१२४:५० बाहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे १२४ :प्र० भगवन् ! अधोलोक-क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश
कि जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीव- में जीव हैं, जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश हैं, अजीव हैं; अजीवों देसा, अजीवपएसा?
के देश हैं, अजीवों के प्रदेश हैं ? उ० गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, उ० गौतम ! (वहाँ) जीव नहीं हैं (किन्तु) जीवों के देश हैं, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जीवों के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के
प्रदेश भी हैं। जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा,
वहाँ (१) जो जीवों के देश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं।
१. महावीरविद्यालय से प्रकाशित वियाहपण्णत्ति में काल और भाव सम्बन्धी सूत्र २४, २५ में जो जाव हैं उनकी पूर्तियाँ
श० २, उ० १, सू० २४ [१] के अनुसार की है।