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________________ ५६ सो-प्रप्ति पुढवी अचरमाईण अप्पाबहूर्य १२१ : प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए अचरिमस्स य परिमाण य, चरिमंतपसाण व अचरिमंतपरसाण यदव्वट्टयाए पसट्टयाए दब्बट्ट-पएसट्टयाए कतरे कतरोहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? उ० गोयमा ! सव्वत्योवे इमीसे रयणप्पमाए पुढवीए दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अपरिमं च परिमाणि य दो वि विसेसाहियाई । पदेष्टुपाए सम्बत्योया इमीसे रयणपत्राए पुढयोए चरिमंतपदेखा अचरिमंतपसा असंज्जगुणा चरिमंतपसा य अचरिमतपसा व दो वि विसेसाहिया " अधोलोक - 1 दव्यपदेसट्टयाए सय्यत्योवे इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए दबाए एगे अरिमे, परिमाई असंल असंखेज्जगुणाई अचरिमं च परिमाण व दो वि विसेसा हियाई, परिमंतपएसा असंसेज्जगुणा, अचरिमंत परसा असंखेज्जगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंत एसा य दो वि विसेसाहिया । एवं नाव आहेसत्तमा । - पण्ण० पद० १०; सु० ७७७-७७८ । रयणप्पभाईतो लोयंतंतरं १२२ : प० इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतियं अबाधाए लोयंते पण्णत्त े ? उ० गोषमा ? बालसह जोयहि अबाधाए लोयंते पण्णत्त । एवं बाहिणिल्लातो पच्चत्थिमिला तो उत्तरस्नातो...... प० सक्करप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतियं अबाधाए लोयंते पण्णत्त ? उ० गोयमा ! तिभागृह तेरसह जोयर्णोह अबाधाए लोयंते पण्णत्त । एवं चउद्दिसि पि । पापण्या पुढवीए पुरथिमिल्लाओ परिमंताओ केवतियं अबाधाए लोयंते पण्णत्त ? उ० गोपमा लोयंते पण्णत्त । A एवं चउद्दिस पि । wwwwwww सतिमागेहि वेरसहि जोहि अबाधाए सूत्र १२१-१२२ पृथ्वियों के अचरमादि पदों का अल्प-बहुत्व : १२१ प्र० हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के (एकवचन) अचरम (बहुवचन) चरम (बहुवचन) चरमान्त प्रदेश (बहुवचन) और अचरमान्त प्रदेश — ये द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेश की अपेक्षा से तथा द्रव्य- प्रदेश (संयुक्त) की अपेक्षा से, कौन किन से अल्प है, बहुत (अनेक) है, तुल्य है या विशेषाधिक है ? उ० हे गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प इस रत्नप्रभा पृथ्वी का एक अचरम है, इससे चरम असंख्य गुण हैं, इनसे अचरम और चरम (संयुक्त) विशेषाधिक है। प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे अल्प इस रत्नप्रभा पृथ्वी के चरमान्त प्रदेश हैं, इनसे अचरमान्त प्रदेश असंख्यगुण हैं, इनसे चरमान्त प्रदेश तथा अचरमान्त प्रदेश (संयुक्त) विशेषाधिक हैं । । द्रव्य - प्रदेश (संयुक्त) की अपेक्षा से सबसे अल्प इस रत्नप्रभा पृथ्वी का (द्रव्य की अपेक्षा से) एक अचरम है, इनसे चरम असंख्यगुण है, इनसे अचरम तथा चरम (संयुक्त) विशेषाधिक है। (प्रदेशों की अपेक्षा से) इनसे चरमान्त प्रदेश असंख्यगुण हैं, इनसे अचरमान्तप्रदेश असंख्यगुण हैं, इनसे चरमान्त तथा अचरमान्त प्रदेश (संयुक्त) विशेषाधिक है। इसी प्रकार यावत् सप्तम पृथ्वी पर्यन्त हैं । रत्नप्रभादि से लोकांत का अन्तर १२२ प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्वी चरमान्त से बाधारहित लोकांत कितनी दूर कहा गया है ? उ० गौतम ! बारह योजन (दूर) बाधारहित लोकांत कहा गया है । इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर के चरमान्तों से भी है। प्र० शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वी चरमान्त से बाधारहित लोकांत कितनी दूर कहा गया है ? उ० विभागन्यून तेरह पोजन (दूर) बाधारहित लोकांत कहा गया हैं । इसी प्रकार चारों दिशाओं से भी है। प्र० बालुकाप्रभा पृथ्वी के पूर्वी परमान्त से बाधारहित लोकांत कितना दूर कहा गया है ? उ० गौतम ! तीन भाग सहित तेरह योजन (दूर) बाधा - रहित लोकांत कहा गया है। इसीप्रकार चारों दिशाओं से भी है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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