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________________ ५२ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र ११५-११६ - उ० गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा उ० गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है, यथा(१) घणोदधिवलए, (१) घनोदधिवलय। (२) घणवायवलए, (२) घनवातवलय। (३) तणुवायवलए । (३) तनुवातवलय । एवं जाव उत्तरिल्ले। इस प्रकार यावत् उत्तरी (चरमान्त) हैं। एवं सव्वासि जाव अहेसत्तमाए उत्तरिल्ले। इस प्रकार सभी (पवियों) के हैं यावत् नीचे सातवीं -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७५। (पृथ्वी) के उत्तरी चरमान्त है। अंतरं पृढवी चरिमंताणं घणोदहिआईणं चरिमंताणं य पृथ्वियों के चरमान्तों का और घनोदधि आदि के चरमान्तों का अंतर११६ : ५० इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ ११६ : प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त चरिमंताओ घणोदहिस्स उवरिल्ले चरिमंते-एसणं से घनोदधि के ऊपर के चरमान्त का अबाधा अंतर कितना कहा केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गया है ? उ० गोयमा ! असिउत्तरजोयणसयसहस्सं अबाहाए अंतरे उ० गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन अबाधा अंतर पण्णत्ते। कहा गया है। प. इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से चरिमंताओ घणोदहिस्स हेटिल्ले चरिमंते-एसणं घनोदधि के नीचे के चरमान्त का अबाधा अंतर कितना कहा . . केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते? गया है? उ० गोयमा ! दो जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। उ० गौतम ! दो हजार योजन अबाधा अंतर कहा गया है। प० इमोसे मंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से चरिमंताओ घणवातस्स उवरिल्ले चरिमंते-एसणं घनवात के नीचे के चरमान्त का अबाधा अंतर कितना कहा केवइए अबाहाए अंतरे पण्णते? गया है? उ० गोयमा ! दो जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । उ० गौतम ! दो हजार योजन अबाधा अन्तर कहा गया है। प० इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से चरिमंताओ घणवातस्स हेटिल्ले चरिमंते-एसणं घनवात के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर कितना कहा केवइए अबाहाए अंतरे पण्णते? गया है? उ. गोयमा ! असंखिज्जाई जोयणसयसहस्साइं अबाहाए उ० गौतम ! असंख्य लाख योजन का अबाधा अन्तर कहा ___ अंतरे पण्णत्ते। गया है। प० इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उबरिल्लाओ प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से चरिमंताओ तणुवातस्स उरिल्ले चरिमंते-एसणं तनुवात के ऊपर के चरमान्त का अबाधा अन्तर कितना कहा केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते? गया है ? उ० गत्यमा ! असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई अबाहाए उ० गौतम ! असंख्य लाख योजन का अबाधा अन्तर कहा अंतरे पण्णत्ते। गया है। हेट्रिले (चरिमंते) वि असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई नीचे के चरमान्त का भी असंख्य लाख योजन का अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। अबाधा अन्तर कहा गया है। एवं ओवासंतरे वि। इसीप्रकार अवकाशान्तर का (अन्तर) भी है। प० दोच्चाए णं भंते ! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ प्र. भगवन् ! द्वितीया (शर्कराप्रभा) पृथ्वी के ऊपर के घणोदहिस्स उवरिल्ले चरिमंते-एसणं केवइयं अबा- चरमान्त से घनोदधि के ऊपर के चरमान्त का अबाधा अन्तर हाए अंतरे पण्णत्ते? कितना कहा गया है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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