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________________ सूत्र ११३-११५ अधोलोक गणितानुयोग ५१ घणोदहिवलयाईणं दव्वसरूवं घनोदधि वलय आदिका द्रव्य स्वरूप११३:५० इमीसे गं भंते ! रयणप्पमाए पुढवीए धणोदधि- ११३ : प्र. हे भगवन् ! क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के (बुद्धिकृत) क्षेत्र वलयस्स छ जोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्ज- छेद से छिद्यमान छह योजन बाहल्यवाले घनोदधिवलय में वर्ण माणस्स अस्थि बव्वाइं वण्णमओ जाव अन्नमनघडत्ताए यावत् परस्पर ग्रथित द्रव्य हैं ? चिट्ठति ? उ० हंता ! अत्यि। उ० हाँ ! हैं। प० सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदधिवलयस्स प्र. हे भगवन् ! क्या शर्कराप्रभा पृथ्वी के (बुद्धिकृत) क्षेत्र सतिभाग छजोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छएणं छिज्ज- छेद से छिद्यमान छह योजन और योजन के तीन भाग बाहल्य माणस्स अत्थि दवाइं वण्णओ जाव अन्नमनघडताए वाले घनोदधि वलय में वर्ण यावत् परस्पर ग्रथित द्रव्य हैं ? चिट्ठति ? उ० हंता ! अत्यि। उ० हाँ ! हैं। एवं जाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार यावत् नीचे सातवीं पृथ्वी पर्यंत है। जं जस्स बाहल्लं । विशेष—जिस पृथ्वी के (घनोदधिवलय का) जितना -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । बाहल्य है । (उतना कहना चाहिए)। ११४ : प० इमीसे गं मंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलयस्स ११४ :प्र. हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के (बुद्धिकृत) अद्वपंचमजोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स क्षेत्र-छेद से छिद्यमान साढ़े चार योजन बाहल्यवाले धनवात, अस्थि दम्बाई वण्णओ जाव अन्नमनघडताए वलय में वर्ण यावत परस्पर ग्रथित द्रव्य हैं? चिट्ठति ? उ० हंता ! अत्थि। उ० हाँ ! हैं। एवं जाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार यावत् नीचे सातवीं पथ्वी पर्यंत है। जं जस्स बाहल्लं । विशेष-जिस (पृथ्वी के घनवातवलय) का जितना बाहल्य है (उतना कहना चाहिए)। एवं तणुवायवलयस्स वि जाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार तनुवातवलय के सम्बन्ध में भी यावत् नीचे सातवीं पृथ्वी पर्यंत है। ज जस्स बाहल्लं। विशेष-जिस (पृथ्वी के तनुवातवलय) का जितना -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । बाहल्य है (उतना कहना चाहिए)। पुढवीणं पुरथिमिल्लाइ चरिमंता __ पृथ्वियों के पूर्वादि चरमांत११५:५० इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले ११५ : प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्वी चरमान्त चरिमंते कइविहे पण्णते? कितने प्रकार का कहा गया है। उ० गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा उ० गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है, यथा(१) घणोदधिवलए, (१) घनोदधिवलय। (२) घणवायवलए, (२) घनवातवलय। (३) तणुवायवलए। (३) तनुवातवलय । प० इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए दाहिणिल्ले प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के दक्षिणी-चरमान्त कितने चरिमंते कइविहे पण्णत्ते? ' प्रकार का कहा गया है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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