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________________ ५० M लोक-प्रतप्ति एवं जाव असत्तमा पुढवीए घणोदधिवलए । णवरं- अप्पणऽप्पणं पुढ चिट्ठति । अधोलोक संपरिवाणं -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । ११० : प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलए कि संठिते पण्णत्ते ? उ० गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते पण्णत्ते । जे इमसेनं रयणप्पभाए पुहबीए घणोदधिवलयं सय्यओ समता संपरिचि एवं जाव असत्तमाए घणवातवलए । - जीवा० पडि०, ३ उ० १, सु० ७६ । १११ : प० इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवातवलए कि संठिते पण्णत्ते ? उ० गोयमा ! बट्टे वलयागारसं ठाणसंठिए पण्णत्ते । जे गं इमीसे णं रपयप्यमाए पुढबीए धणवातवलयं सय्यम समता संपरिक्खिताणं विदुर । एवं जाव असत्तमाए तणुवातवलए । - जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । घणोदहि आईणं दव्वसरूवं ११२ : प० इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिस्स यी जोपणसहस्थ बाहल्लम्स सच्छेएवं छिम्म मास अथ दवाई वणतो जाव अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठति ? उ० हंता ! अत्थि । एवं घणवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्स बाहल्सस्स एवं तवातस्स, ओवासंतरस्स वि तं चैव । प० सरमाए भंते पृढवीए पणोवहिस्सा बी जोसहवास घणवातस्स असंखेन्ज जोयणसहस्सबाहल्लस्स, तणुवातस्स असंखे जोयणसहस्वबाहल्लास, ओवासतरस्थ असंग्यजोहरचाल्यस्त विखेत्तच्एवं डिजमापस्स अत्थि दव्वाइं वण्णतो जाव अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठ ं ति ? उ० हंता ! अत्थि । जहा सक्करम्पभाए एवं जाव असत्तमाए । - जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७३ । इसीप्रकार यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी का घनोदधि वलय है । विशेष – अपनी-अपनी पृथ्वी को घेरकर स्थित है । ११० प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का घनवात किस (संस्थान) से संस्थित कहा गया है ? सूत्र १०- ११२ उ० हे गौतम ! वृत्त वलयाकार संस्थान से संस्थित कहा गया है, जो इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधिवलय को चारों ओर से घेरकर स्थित है। इसी प्रकार यावत् नीचे सप्तम घनवातवलय है । १११ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का तनुवातवलय किस (संस्थान) से संस्थित कहा गया है ? उ० हे गौतम! वृत्त वलयाकार संस्थान से संस्थित कहा गया है - जो इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनवातवलय को चारों ओर से घेरकर स्थित है । इसीप्रकार या नीचे सप्तम तनुवात वलय है। " घनोदधि आदि का द्रव्य स्वरूप ११२ : प्रo हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ( बुद्धिकृत ) क्षेत्र-क्षेत्र से छिद्यमान बीस हजार योजन बाहुल्यवाले चनोदधि में वर्ण यावत् परस्पर ग्रथित द्रव्य हैं ? --- उ० ही हैं। इसीप्रकार असंख्य हजार योजन बाहल्यवाले घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर ( में भी वर्ण यावत् परस्पर ग्रथित द्रव्य) हैं। उ० ही है। प्रo हे भगवन् ! क्या शर्कराप्रभा पृथ्वी के ( बुद्धिकृत) क्षेत्र - छेद से छिद्यमान वीस हजार योजन बाहल्दयाले घनोदधि में, असंख्य हजार योजन बाहुल्यवाले घनवात में तनुबात में और अवकाशान्तर में वर्ण यावत् परस्पर ग्रथित द्रव्य हैं ? जिसप्रकार शर्कराप्रभा (के सम्बन्ध में कहा) है। इसीप्रकार यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी पर्यंत है ।''''
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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