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________________ सूत्र १०६-१०६ एवं एएवं अभिलावेगं वालुयप्पभाए पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ताई । रुपभाए सबकोसाई पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ताई । अधोलोक धूमप्पभाए अद्धछट्टाई जोयणाइं बाहल्लेणं पण्णताइं । तमप्पभाए कोनूणाई छजोषणाइ बाहल्लेणं पण्णत्ताई । असत्तमाए छजोयणाइं बाहल्लेणं पण्णत्ताइं । १०७ : प० इमीसे णं मंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवाय वलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? उ० दोयमा एक्होले बाहल्लेगं पण्णत्ते । एवं एएणं अभिलावेणं सक्कर प्पभाए पुढवीए सतिभागे छक्कोसे बाहल्लेण पण्णत्ते । वालुभाए पुढवीए विभागणे सत्तकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते । पंकप्पभाए पुढवीए सतिभागे सत्तकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते । - जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । योजन का कहा गया है। धूमप्पमा पुढवीए सतिभागे सत्तकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते । तमप्पभाए पुढवीए तिभागणे अटुकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते । असत्तमाए पुढवीए अट्ठकोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते । -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । घणोदहीआईणं संठाणाई : बि १०८ एवं......घणोदधि विघणवाए वि तणुवाए ओवासंतरे वि सव्वे झल्लरिसंठिते पण्णत्ते । —जीवा० पडि० ३, उ० १, सु०७४ । — गणितानुयोग ४६ इसीप्रकार प्रश्नोत्तरों में वालुकाप्रभा के ( घनवात वजय का) बाहय पांच योजन का कहा गया है। उ० गोयमा ! वट्ट े वलयागारसंठाणसंठिते पण्णत्ते । जेणं इमं रयणप्पभं पुढव सव्वतो संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । पंकप्रभा के (घनवातवलय का ) वाहत्य पाँच योजन और एक कोश का कहा गया है। धूमप्रभा के (घनवातवलय का वाहत्य साढ़े पांच योजन का कहा गया है। तमस्प्रभा के (पनवातवलय का ) बाल्य एक कोश कम छह योजन का कहा गया है । तमस्तमप्रभा के ( मनवातवलय का) वाहत्य यह १०७ प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तनुवातबलय : का बाल्य कितना कहा गया है ? उ० हे गौतम ! छः कोश का बाहल्य कहा गया है। इसीप्रकार प्रश्नोत्तरों में शर्कराप्रभा पथ्वी के तनुवात वलय का बाहल्य छह कोश और कोश के तीन भाग जितना कहा गया है। वालुकाप्रभा पृथ्वी के ( तनुवातवलय का ) बाहम, तीन भाग कम सात कोश का कहा गया है। पंकप्रभा पृथ्वी के ( तनुवातवलय का ) बाहल्या सातकोश का कहा गया है। धूमप्रभा पृथ्वी के ( तनुवातवलय का ) बाहल्य सात कोश और कोश के तीन भाग का कहा गया है । तमरप्रभा पृथ्वी के (तनुवातवलय का ) बाहुल्य तीन भाग कम आठ कोश का कहा गया है । नीचे सातवीं पृथ्वी के (तनुवातका बाहत्य आठ कोश का कहा गया है। मनोदधि आदि के संस्थान १०० इसी प्रकार घनोदधि, घनवात, तनुवात और अवका शान्तर - इन सबका झालर जैसा संस्थान कहा गया है। घणोदहिबलवाईणं संठाणं घनोदपि वलय आदि के संस्थान १०६ : प० इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए १०६ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का घनोदधिवलय कि संठिते पण्णत्ते ? किस (संस्थान) से संस्थित कहा गया है ? उ० हे गौतम! वृत्त वलयाकार संस्थान से संस्थित कहा गया है । जो इस रत्नप्रभा पृथ्वी को चारों ओर से घेरकर स्थित है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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