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________________ सूत्र १०१-१०४ अधोलोक गणितानुयोग ४७ उरिल्ले चरिमंते पन्नरसजोयणसहस्सहाई, (रत्न प्रभा पृथ्वी के) ऊपर के चरमान्त से (रिष्ट काण्ड के हेट्ठिल्ले चरिमंते सोलसजोयणसहस्साई । ऊपर के चरमान्त का) पन्द्रह हजार योजन (का अबाधा अन्तर है और) नीचे के चरमान्त का सोलह हजार योजन का अबाधा अन्तर है। प० इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त चरिमंताओ पंकबहुलस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते- से पंकबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त का अबाधा अन्तर एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते? कितना कहा गया है ? उ० गोयमा ! सोलसजोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे उ० हे गौतम ! सोलह हजार योजन का अबाधा अन्तर पण्णत्ते। कहा गया है। हेट्ठिल्ले चरिमंते एक्कं जोयणसहस्सं । (पंकबहुलकाण्ड के) नीचे के चरमान्त का (अबाधा अन्तर) एक हजार योजन का (कहा गया है)। आवबहुलस्स उवरिल्ले चरिमंते एक्कं जोयणसहस्सं, अपबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त का (अबाधा अन्तर) हेडिल्ले चरिमंते असीउत्तरजोयणसयसहस्सं । एक हजार योजन का है और नीचे के चरमान्त का (अबाधा -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७६ । अन्तर) एक लाख अस्सी हजार योजन का (कहा गया है)। १०२: पंकबहुलस्स णं कंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ हेट्ठिल्ले १०२ : पंकबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चर चरमंते-एस णं चोरासीइ जोयणसयसहस्साई अबाहाए मान्त का अबाधा अन्तर चौरासी लाख योजन का कहा गया है। अंतरे पण्णत्ते। -सम० ८४, सु०६। पुढवीणं अहे घणोदहि आईणं सब्भावो पमाणं य- पथ्वियों के नीचे घनोदधि आदिका सद्भाव और उनका प्रमाण१०३:५० अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे १०३ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे घनोदधि, घणोदधीति वा, घणवातेति वा, तणुवातेति वा, ओसा- घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर (रिक्त मध्य भाग) है ? संतरेति वा? उ० हंता ! अस्थि । उ० हाँ है। एवं जाव अहेसत्तमाए। इस प्रकार यावत् सप्तम पृथ्वी के नीचे तक है।.... -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ७१ । १०४:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही १०४:प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि का केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? बाहल्य (मोटाई) कितना कहा गया है ? उ० गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। उ० हे गौतम ! बीस हजार योजन का बाहल्य (मोटाई) कहा गया है। प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए केव- प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनवात का बाहल्य तियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? (मोटाई) कितना कहा गया है ? उ. गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं उ० हे गौतम ! असंख्य हजार योजन का बाहल्य कहा पन्नते। गया है। एवं तणुवातेऽवि, ओवासंतरेऽवि । ___ इसीप्रकार तनुवात का और अवकाशान्तर का (बाहल्य भी कहा गया) है। प० सक्करप्पमाए णं भंते ! पुढवीए घणोदहि केवतियं प्र० हे भगवन् ? शर्कराप्रभा पृथ्वी के घनोदधि का बाहल्य बाहल्लेणं पन्नत्ते? कितना कहा गया है? उ० गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ते। उ० हे गौतम ! बीस हजार योजन का बाहल्य कहा गया है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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