SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र १००-१०१ कंडयाणं संठाणं काण्डों का संस्थान१००:५० इसीसे गं भंते ? रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे किं १००:प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के खरकाण्ड का संठिते पण्णते ? क्या संस्थान कहा गया है ? उ० गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णत्ते। उ० हे गौतम ! झालर जैसा संस्थान कहा गया है। प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे कि प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के रत्नकाण्ड का क्या संठिते पण्णते? संस्थान कहा गया है ? उ० गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णते। उ० हे गौतम ! झालर जैसा संस्थान कहा गया है। एवं जाव रिट्ठ। इसी प्रकार रिष्टकाण्ड पर्यन्त (सभी काण्डों का झालर जैसा संस्थान कहा गया है।) एवं पंकबहुले वि, एवं आवबहुले वि। इसी प्रकार पंकबहुलकाण्ड और अप् बहुलकाण्ड का -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु०७४। भी (झालर जैसा संस्थान कहा गया है।) पुढवीचरिमंताणं कंडचरिमंताणं य अंतरं पृथ्वी-चरमांतों का और काण्डचरमांतों का अन्तर१०१:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ १०१:प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरिमंताओ खरस्स कंडस्स हेदिल्ले चरिमंते-एस गं चरमान्त से खर काण्ड के नीचे के चरमान्त का अबाधा (व्यवकेवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते? धान रहित) अन्तर कितना कहा गया है ? उ० गोयमा ! सोलसजोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे उ० हे गौतम ! सोलह हजार योजन का अबाधा अन्तर पण्णत्ते। कहा गया है। प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उरिल्लाओ प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त चरिमंताओ रयणस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते-एस णं से रत्नकाण्ड के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर कितना केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते ? कहा गया है ? उ० गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। उ० हे गौतम ! एक हजार योजन का अबाधा अन्तर कहा गया है। प० इमीसे णं मंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र.हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त चरिमंतातो बइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते-एस से वज्रकाण्ड के ऊपर के चरमान्त का अबाधा अन्तर कितना णं केवतियं अबाधाए अतरे पण्णत्ते? । कहा गया है? उ० गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते।' उ. हे गौतम ! एक हजार योजन का अबाधा अन्तर कहा गया है। प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ प्र० हे पावन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स हेटिल्ले चरिमंते-एस णं से वज्रकाण्ड के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर कितना केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते? कहा गया है ? उ० गोयमा ! दो जोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। उ० हे गौतम ! दो हजार योजन का अबाधा अन्तर कहा गया है। एवं जाव रिटुस्स। इसप्रकार यावत् रिष्टकाण्ड पर्यन्त कहना चाहिए। (क) इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ पुलगस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरमंते-एस णं सत्त जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । -सम० सु० १२० । (ख) इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ लोहियक्खकंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते एस णं तिन्नि जोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे पण्णत्त । -सम० सु० ११६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy