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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र ६६-६८
(३) वेरुलिए, (४) लोहितक्खे, (५) मसारगल्ले, (६) हंसगन्भे, (७) पुलए,
(८) सोयंधिए, (8) जोतिरसे, (१०) अंजणे, (११) अंजणपुलए, (१२) रयते, (१३) जातरूवे, (१४) अंके,
(१५) फलिहे, (१६) रिढ कंडे । प० इमीसे णं मंते ? रयणप्पभा पुढवीए रयणकंडे कति
विधे पण्णते? उ. गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते । एवं जाव रिट्रे।
(३) वेडूर्यकाण्ड (४) लोहिताक्षकाण्ड, (५) मसारगल्लकाण्ड, (६) हंसगर्भकाण्ड, (७) पुलककाण्ड, (८) सौगंधिककाण्ड (8) ज्योतिरसकाण्ड, (१०) अंजनकाण्ड, (११) अंजनपुलककाण्ड, (१२) रजतकाण्ड, (१३) जातरूपकाण्ड, (१४) अंककाण्ड, (१५) स्फटिककाण्ड, (१६) रिष्टकाण्ड ।
प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्न काण्ड कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ० हे गौतम ! एक प्रकार का कहा गया है । इसी प्रकार यावत् रिष्ट (काण्ड पर्यन्त सभी काण्ड एक प्रकार के हैं।)
प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का पंकबहुल काण्ड कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ० हे गौतम ! एक प्रकार का कहा गया है।
प्र० इसीप्रकार जल बहुल काण्ड कितने प्रकार का कहा गया है?
उ० हे गौतम ! एक प्रकार का कहा गया है।
प० इमोसे णं भते ! रयणप्पभापुढवीए पंकबहलेकंडे
कतिविधे पण्णत्ते? उ० गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते । प० एवं आवबहुलकंडे कतिविधे पण्णत्ते ?
उ० गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते ।
-जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ६६ ।
सक्करप्पभाईणं छण्हं पुढवीणं एगागारत्तं
. शर्कराप्रभा आदि छह पथ्वियों की एकरूपता६७: प० सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी कतिविधा पण्णता? ६७:प्र० हे भगवन् ! शर्करा प्रभा पृथ्वी कितने प्रकार की कही
गई है ? उ० गोयमा! एगागारा पण्णत्ता । एवं जाव अहेसत्तमा। उ. हे गौतम ! एक प्रकार की कही गई है। इसीप्रकार
यावत् नीचे सप्तमपथ्वीपर्यन्त (सभी पवियाँ एक आकार --जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ६६ । वाली) कही गई है।
कंडयाणं बाहल्लंSE: प० इमीसे णं भंते? रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे केवतियं
बाहल्लेणं पण्णते? उ० गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ते।
प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे केव-
तियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? उ० गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते ।
काण्डों का बाहुल्य१८:प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का खरकाण्ड कितने विस्तार वाला कहा गया है ?
उ० हे गौतम ! सोलह हजार योजन विस्तारवाला कहा गया है।
प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्नकाण्ड कितने विस्तार वाला कहा गया है ?
उ.हे गौतम ! एक हजार योजन विस्तार वाला कहा गया है।
इस प्रकार रिष्टकाण्ड पर्यन्त (सभी काण्ड एक हजार योजन विस्तार वाले हैं।)
एवं जाव रिटे।'
१. ठाणं १०, सु०, ७७८ ।