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________________ सूत्र ६३-६६ अधोलोक गणितानुयोग ४३ प० अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे बादरे थणियसद्दे ? उ० हंता ! अस्थि । तिण्णि वि पकरेति । प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या मेघ गर्जना होती है ? उ० हाँ ! होती है । (यह मेघ-गर्जना देव, असुर और नाग) ये तीनों करते हैं। --भग० स० ६, उ० ८, सु० ४-७ । पुढवोण अहे बादरअगणिकायस्स अभावो पृथ्वियों के नीचे स्थूल अग्निकाय का अभाव९४ : प० अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे १४:प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या स्थूल बादरे अगणिकाए? अग्निकाय है? उ० गोयमा ! नो इण? सम?। उ. हे गौतम ! ऐसा नहीं है। नऽनत्य विग्गहगति समावन्नएणं । यह निषेध विग्रहगति प्राप्त जीवों को छोड़कर शेष जीवों -भग० स०६, उ०८, सु०८। के लिए है। पुढवीणं अहे जोईसीदेवाणं अभावो पृथ्वियों के नीचे ज्योतिषी देवों का अभाव६५ : प० अत्थि णं भंते ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे ९५:प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे चन्द्र यावत् चंदिम जाव तारारूवा? तारा आदि (ज्योतिषी) देव है ?) उ० गोयमा ! नो इण? सम?। उ० हे गौतम ! ऐसा नहीं है । प० अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे चन्द्र प्रकाश चंदामा ति वा सूरियामा ति वा? या सूर्य प्रकाश है ? उ० गोयमा ! णो इण? सम? । उ. हे गौतम ! ऐसा नहीं है। एवं दोच्चाए वि भाणियव्व। . इसी प्रकार द्वितीय पृथ्वी में भी कहना चाहिए। एव तच्चाए वि भणियव्वं-नवरंः-देवो वि पकरेति. इसी प्रकार तृतीय पृथ्वी में भी कहना चाहिए। असुरो वि पकरेति, णो णागो पकरेति । विशेष-(मेघ-गर्जना एवं बादल-वर्षा) देव करते हैं असुर करते है किन्तु नाग नहीं करते हैं। चउत्थीए वि एवं-नवरं :-देवो एक्को पकरेति, इसी प्रकार चौथी पथ्वी में है-विशेष-(मेघ-गर्जना नो असुरो पकरेति, नो नागो पकरेति । एवं बादल-वर्षा) एक देव करते हैं किन्तु असुर और नाग नहीं करते हैं। एवं हेल्टिलासु सव्वासु देवो एक्को पकरेति । इसी प्रकार नीचे की सब पृथ्विोंयों में (मेघ-गर्जना -भग० स० ६, उ० ८, सु०६-१४। एवं बादल-वर्षा) एक देव करते हैं। रयणप्पभापुढवोए कंडया रत्नप्रभा पृथ्वी के काण्ड६६ : प० इमा ण भंते ! रयणप्पभा पुढवी कतिविधा पण्णत्ता? ९६ :प्र. हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितने प्रकार की कही गई है ? उ० गोयमा ! तिविहा पण्णता, तं जहा उ. हे गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है, यथा(१) खरकंडे, (२) पंकबहुलकंडे, (३) आवबहुलकंडे। १खरकाण्ड, २ पंकबहुल काण्ड, ३ जलबहुल काण्ड । प० इमोसे णं भंते ! रयणप्पभा पुढवीए खरकंडे कतिविधे प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का खरकाण्ड कितने पण्णते? प्रकार का कहा गया है ? उ० गोयमा ! सोलसविधे पण्णत्ते, तं जहा उ० हे गौतम ! सोलह प्रकार का कहा गया है, यथा(१) रयणकंडे, (२) वइरे, (१) रत्न काण्ड; (२) बज्र काण्ड, anwww
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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