________________
सूत्र ८६-८८
अधोलोक
गणितानुयोग
४१
ओवासंतराइं सव्वाइं जहा रयणप्पभाए।
जहा रयणप्पभाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं अधम्मत्थिकाए।
सभी पथ्वियों के अवकाशान्तर रत्नप्रभा के अवकाशान्तर के समान हैं।
जिसप्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी का (स्पर्श-सम्बन्धी) कथन, है इसी प्रकार यावत् सप्तम पृथ्वी पर्यन्त है।
इसीप्रकार अधर्मास्तिकाय का (स्पर्शसम्बन्धी) कथन है।
इसीप्रकार लोकाकाश का (स्पर्शसम्बन्धी) कथन भी है।
एवं लोयागासेऽवि।
-भग० स० २, उ० १०, सु० १७-२०/२२ ।
पुढवी ण दव्वसरूवं
पृथ्वियों का द्रव्य स्वरूप८७ : प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए असी उत्तर ८७ : प्र. हे भगवन् ! क्या (बुद्धिकृत) क्षेत्र-छेद से छिद्यमान
जोयणसयसहस्स बाहल्लाए खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणीए एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्यवाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी अत्थि दवाई वण्णतो काल-नील-लोहित-हालिद्द- में वर्ण से कृष्ण, नील, लोहित, पीत और शुक्लवर्ण वाले; गन्ध सुक्किल्लाई, गंधतो सुरभिगंधाई दुरभिगंधाई, रसतो से-सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध वाले; रस से-तिक्त, कटु, कषाय, तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराई, फासतो कक्खड- अम्ल और मधुररस वाले; स्पर्श से-कर्कर, मृदु, गुरु, लघु, मउय-गरुय-लहु-सीत-उसिण-णिद्ध-लुक्खाई, संठाणतो शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श वाले; संठाण से–परिमण्डल, परिमंडल - वट्ट-तंस - चउरंस-आयय - संठाणपरिणयाइं वृत्त, यस्र चतुरस्र और आयतसंस्थान वाले अन्योऽन्य-बद्ध, अण्णमण्णबद्धाई अण्णमण्णपुट्ठाई अण्णमण्णओगाढाई अन्योऽन्य-स्पृष्ट, अन्योऽन्य-अवगाढ़ (स्निग्धता के कारण) अन्योऽन्य
अण्णमण्णसिणेहपडिबधाई अण्णमण्णघडताए चिट्ठति? प्रतिबद्ध और अन्योऽन्य-अथित द्रव्य हैं ? उ० हंता ! अस्थि ।
उ हाँ ! हैं। प० सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए बत्तीसुत्तर जोयण- प्र. हे भगवन् ! क्या (बुद्धिकृत) क्षेत्र-छेद से छिद्यमान एक
सतसहस्स बाहल्लाए खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणीए अत्थि लाख बत्तीस हजार योजन बाहल्यवाली शर्कराप्रभा पृथ्वी में
दव्वाइं वण्णतो जाव अण्णमण्णघडताए चिट्ठति ? वर्ण वाले यावत् अन्योऽन्यग्रथित द्रव्य हैं ? उ० हंता ! अत्थि ।
उ० हाँ ! हैं। जहा सक्करप्पभाए एवं जाव अहेसत्तमाए। जिसप्रकार शर्कराप्रभा है इसीप्रकार यावत् नीचे
- जीवा० पडि० ३: उ० १, सु० ७३ । सप्तम पथ्वी पर्यन्त है।
पुढवि अहोभागट्ठियदव्वसरूवं
पृथ्वियों के अधःस्थित द्रव्यों का स्वरूप८८: प० बत्थि ण भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे- ८८ : प्र. भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे जो द्रव्य हैं वे वर्ण
दव्वाइं वण्णओ काल-नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाई, से-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शुक्ल हैं ? गन्ध से-सुगन्धित गंधओ सुब्भिगंध-दुन्मिगंधाइं, रसओ तित्त कडु-कसाय- और दुर्गन्धित हैं ? रस से- तीखा, कडुवा, कषैला, आम्ल और अंबिल-महुराई, फासओ कक्खड-मउय-गरुय-लहय- मधुर हैं ? और स्पर्श से-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, सीय-उसुण-निद्ध-लुक्खाइं अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमनपुट्राई स्निग्ध तथा रुक्ष हैं ? अन्योऽन्यबद्ध हैं? अन्योऽन्यस्पृष्ट हैं जाव अन्नमन्नघडताए चिट्ठति ?
यावत् अन्योऽन्य मिले हुए हैं ? उ० हता! अस्थि ।
उ० गौतम ! हाँ हैं। एवं जाव अहेसत्तमाए।
इसीप्रकार यावत् सातवीं के नीचे तक हैं। -भग० स० १८, उ० १० सु०६-१० ।
M