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________________ सूत्र ८२-८४ अधोलोक गणितानुयोग ३६ उ० [१] गोयमा ! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढवि उ. [१] हे गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी द्वितीय पृथ्वी की पणिहाय बाहल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया, नो अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है विशेषाधिक है, संख्येयगुण नहीं है। संखेज्जगुणा। [२] वित्थरेणं नो तुल्ला, विसेसहीणा, नो संखेज्जगुण- [२] विस्तार से भी तुल्य नहीं है, विशेषहीन है, संख्येयगुणहोणा। हीन नहीं है। प० [१] दोच्चाणं भंते ! पुढवी तच्चं पुढवि पणिहाय प्र० [१हे भगवन् ! द्वितीय पृथ्वी तृतीय पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्लेणं किं तुल्ला ? विसेसाहिया ? संखेज्ज- मोटाई में क्या तुल्य है ? विशेषाधिक है ? या संख्यातगुण है ? गुणा? [२] वित्थरेणं कि तुल्ला? विसेसहीणा ? संखेज्जगुण- [२] विस्तार से क्या तुल्य है ? विशेषहीन है ? या संख्येयहोणा? गुण-हीन है ? उ० [१] [२] गोयमा! एवं चेव । एवं तच्चा , उ० [१] [२) हे गौतम ! इसीप्रकार है। इसीप्रकार चउत्थी, पंचमी, छट्ठी। तीसरी, चौथी, पाँचवीं और छठी पृथ्वी है। प० [१] छट्ठी णं भंते? पुढवी सत्तमं पुढवि पणिहाय प्र[हे भगवन् ! छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्लेणं कि तुल्ला ? विसेसाहिया ? संखेज्ज- मोटाई में क्या तुल्य है ? विशेषाधिक है ? संख्येयगुण है ? गुणा। [२] वित्थरेणं किं तुला? विसेसहीणा ? संखेज्जगुण [२] विस्तार से क्या तुल्य है ? विशेषहीन है ? या संख्येयहोणा? गुण-हीन है ? उ० [१] गोयमा ! इमा णं छट्ठी पुढवी सत्तमं पुढवि० [ हे गौतम ! यह छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की पणिहाय बाहल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया नो, अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है, संख्येयगुण नहीं है। संखेज्जगुणा। [२] वित्थरेणं नो तुल्ला, विसेसहीणा, नो संखेज्जगुण- [२] विस्तार से भी तुल्य नहीं है, विशेषहीन है, संख्येयगुण होणा। -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ८०। हीन नहीं है। पुढवीणं संठाणं--- पृथ्वियों के संस्थान८३ : प० इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी कि संठिया पण्णत्ता? ८३ : प्र. हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी किस संस्थानवाली कही गई है? उ० गोयमा ! झल्लरिसंठिया पण्णत्ता। उ. हे गौतम ! झालर के संस्थानवाली कही गई है। प० सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी कि संठिया पण्णता? प्र. हे भगवन् ! (यह) शर्कराप्रभापृथ्वी किस संस्थानवाली कही गई है? उ० गोयमा ! झल्लरिसंठिया पण्णत्ता। उ. हे गौतम ! झालर के संस्थानवाली कही गई है। जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया एवं जाव असत्त- जिस प्रकार शर्कराप्रभा का (संस्थान) है इसी प्रकार माए वि। यावत् नीचे सातवीं का भी है। ---जीवा० पडि०३, उ०१, सु०७४ । पुढवीणं सासयासासयत्तं . पथ्वियाँ शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है८४ : प० इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी किं सासया असासया? ८४:प्र. हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी (क्या) शाश्वत है ? या अशाश्वत है ? उ० गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया । उ० हे गौतम ! कथंचित् शाश्वत है; कथंचित् अशाश्वत है। प० से केण? णं भंते ! एवं वुच्चइ–'सिय सासया, सिय प्र. हे भगवन् ! "कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् असासया ? अशाश्वत हैं" ऐसा क्यों कहा जाता है ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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