SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ७१-७५ अधोलोक गणितानुयोग ३५ प० से कि तं पच्छाणुपुटवी ? उ० पच्छाणुपुब्धी-(७) तमतमा जाव १. रयणप्पभा। से तं पच्छाणुपुवी। प० से कि तं अणाणपुव्वो? उ० अणाणुपुवी--- एयाए चेव एगादियाए एगत्तरियाए सत्तगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णमासो दुरूवूणो। से तं अणाणपुवी। -- अणु० सु० १६४-१६७ । प्र० पश्चानुपूर्वी (का स्वरूप) क्या है ? उ० पश्चानुपूर्वी (का स्वरूप इस प्रकार) है७ तमस्तमा यावत् १ रत्नप्रभा । यह पश्चानुपूर्वी है। प्र० अनानुपूर्वी (का स्वरूप) क्या है ? उ. अनानुपूर्वी (का स्वरूप इस प्रकार) है-इनके (कुछ क्रम) एकादि हों -अर्थात् जिनके आदि में एक हों। और अन्य क्रम एकोत्तरिक हों-अर्थात् दो से लेकर सात पर्यंत हों। इन सात समूहों की श्रेणियों में अन्योन्य (परसर) एक दूसरे का अभ्यास (गुणन) हों तथा द्विरूप (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) न्यून (रहित) हों। यह अनानुपूर्वी है। अधोलोक का संस्थान७२: प्र० भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक किसप्रकार स्थित कहा गया है? उ० गौतम ! तप्रा-(उलटी नौका) के आकार से स्थित कहा गया है.... अहोलोगसंठाणं७२ : प० अहे लोगखेत्तलोए णं भंते ! कि संठिते पण्णते ? उ० गोयमा ! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते । -भग० स० ११, उ० १०, सु०७। अहोलोगस्स आयाममज्झे अधोलोक का आयाम-मध्य७३ : प० कहिणं भंते ! अहे लोगस्स आयाममज्झे पण्णते? ७३ : प्र० भगवन् ! अधोलोक का आयाम-मध्य कहाँ कहा गया है ? उ० गोयमा ! च उत्थीए पंकप्पभाए उवासंतरस्स सातिरेग उ० गौतम ! चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के अवकाशांतर का आधे अद्धं ओगाहित्ता-एत्थ णं अहे लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते। से कुछ अधिक भाग अवगाहन करने पर अधोलोक का आयाम-मध्य -भग० स० १३, उ० ४, सु० १३। कहा गया है....। अहोलोए अंधयार करा७४ : अहोलोगे णं चत्तारि अंधयारं करेंति, तं जहा (१) णरगा, (२) पर इया, (३) पावाई कम्माइ', (४) असुभा पोग्गला। -ठाणं० ४, उ० ३, सु० ३३६ । अधोलोक में अन्धकार करने वाले७४ : अधोलोक में चार अन्धकार करते हैं, यथा (१) नरक, (२) नैरयिक, (३) पापकर्म, (४) अशुभपुद्गल ।.... पुढवीणं णामगोत्ताई पृथ्वियों के नाम-गोत्र७५ : एयासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त नामधेज्जा पण्णता, तं जहा- ७५ : इन सात पृथ्वियों के सात नाम कहे गये हैं, यथा(१) धम्मा , (२) वंसा, (१) धर्मा, (२) वंसा, (३) सेला, (४) अंजणा, (३) शैला, (४) अंजना, (५) रिट्ठा, (६) मघा, (५) रिष्ठा, (६) मघा, (७) माघबई। (७) माघवती। १. ठाणं ३, उ० १, सु० १३४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy