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________________ ३६ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र ७५-७६ एयासि णं सत्तण्हं पुढवी णं सत्तगोत्ता पण्णत्ता, तं जहा(१) रयणप्पभा, (२) सक्करप्पमा, (३) वालुअप्पमा, (४) पंकप्पमा, (५) धूमप्पभा, (६) तमा, (७) तमतमाप्पभा, (तमतमा)। -ठाणं०७, सु० ५४६ । इन सात पृथ्वियों के सात गोत्र कहे गये हैं, यथा(१) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) बालुकाप्रभा, (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमा, (७) तमस्तमप्रभा (तमतमा).... पुढवीणं पइट्ठा७६ : अहेलोए णं सत्तपुढवीओ पण्णत्ताओ। सत्त घणोदहीओ पण्णत्तओ। सत्त घणवाता पण्णत्ता। सत्त तणुवाता पण्णत्ता। सत्त उवासंतरा पण्णत्ता। एएसु णं सत्तसु उवासंतरेसु सत्त तणुवाया पइट्ठिया । एएसु णं सत्तसु तणुवाएसु सत्तघणवाया पइट्ठिया। एएसु णं सत्तसु घणवाएसु सत्तधणोदही पइट्ठिया। पृथ्वियों का आधार७६ : अधोलोक में सात पृथ्वियाँ कहीगई हैं। सात घनोदधियाँ कही गई हैं, सात घनवात कहे गये हैं, सात तनुवात कहे गये हैं, सात अवकाशांतर कहे गये हैं। इन सात अवकाशांतरों में सात तनुवात प्रतिष्ठित हैं, इन सात तनुवातों पर सात घनवात प्रतिष्ठित हैं, इन सात घनवातों पर सात घनोदधियाँ प्रतिष्ठित हैं, १. तुलना-(क) प० (१-२) पढमा णं भंते ! पुढवी किं नामा ? (२) किं गोत्ता पण्णता ? उ० (१) गोयमा ! णामेणं घम्मा, (२) गोत्तेणं रयणप्पभा। १० (१) दोच्चा णं भंते ! पुढवी कि नामा? (२) किं गोत्ता पण्णत्ता? उ० (१) गोयमा ! णामेणं वंसा, (२) गोत्तेणं सक्करप्पभा । एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा। णामाणि इमाणि-सेला तईया, अंजणा चउत्थी, रिट्ठा पंचमी, मघा छट्ठी, माधवई सत्तमा जाव तमतमा गोत्तणं पण्णत्ता। -जीवा० पडि० ३, उ०२, सु०६७ । (ख) ""रायगिहे जाव एवं वयासी"प० कति णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ? उ० गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–पढमा, दोच्चा जाव सत्तमा। ५० (१) पढमा णं भंते ! पुढवी किं नामा? (२) किं गोत्ता पण्णत्ता? उ० (१) गोयमा ! घम्मा णामेणं, (२) रयणप्पभा गोत्तेणं । एवं जहा जीवाभिगमे पढमे नेरइयउद्देसो निरवसेसो भाणियब्वो जाव अप्पाबहगंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति बेमि।" -भग० स०१२, उ०३, सु०१-२-३ । (ग) केचित्पुस्तकेषु संग्रहणिगाथेगाहाओ-धम्मा, वंसा, सेला, अंजण, रिट्ठा, मघा, य माधवती। सत्तण्डं पुढवीणं, एए नामा उ णायव्वा ॥ रयणा, सक्कर, वालुय, पंका, धूमा, तमा य तमतमा य । सत्तण्हं पुढवीणं, एए गोत्ता मुणेयव्वा ॥ -जीवा० पडि० ३, उ०१, सु० ६७ टीका ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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