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________________ ३४ M लोक- प्रज्ञप्ति ६६ प से कि तं पुण्यापुण्यो ? उ० बागी (१) महोलोए (२) तिरिए (३) उड्ढलोए । से तं पुव्वाणुपुथ्वी । । प से हितं पच्छा पुथ्वी ? उ० पाणी (१) लोए (२) तिरियलोए (३) अहोलोए से तं पच्छायो । प से कि गावी ? उ० अणावी एए चैव एवादियाए एगुलरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नभासो दुरूवूणो । - सेतं अणावी । अहोलोगो अहेलोयस्स नेया: कमो य ७० : प० अहेलोय खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पनते ? अधोलोक - अणु० सु० १६१, १६२, १६३ । उ० गोमा ! तब पत्ते तं जहा रयणप्पा पुढवि अहे लोयखेत्तलोए जाव अहे सत्तमपुढवि अलोएलोए। - भग० स० ११, उ० १०, सु० ४ । ७१ असोपतापुथ्वी तिविहा पण्णत्ता तं जहा (१) पुब्वाणुपुथ्वी, (२) पच्छाणुपुत्री, (३) अणाणुपुव्वो । प से का? www उ० पुग्वाणुपुब्बी - (१) रयणप्पभा, (२) सक्करपभा, (३) वालुयप्पभा, (४) पंकप्पभा, (५) धूमप्पभा, (६) तमप्पभा, (७) तमतमप्पभा । से तं पुव्वाणुपुग्वी । ६६ : प्र० पूर्वानुपूर्वी किस प्रकार है ? उ० पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार है | (१) (२) तिर्यकुलोक। (३) उय पूर्वानुपूर्वी है। प्र० पश्चानुपूर्वी किसप्रकार है ? उo पश्चानुपूर्वी इस प्रकार है(१) उर्ध्वलोक । (२) तिर्यकुलोक (३) अधोलोक यह पश्चानुपूर्वी है। सूत्र ६६-७१ प्रo अनानुपूर्वी किस प्रकार है ? 1 उ० अनानुपूर्वी इस प्रकार है - जिसका प्रथम क्रम एकादि हो अर्थात् आदि में एक हो। जिसका द्वितीय तृतीय और चतुर्थ क्रम एकोत्तरिक हो । अर्थात् एक उत्तरिक- एक के बाद आने वाले दो और तीन हों । इन तीन गच्छों (समूहों की श्र ेणियों में अन्योन्य एक दूसरे का अभ्यास (गुणन) हो तथा द्विरूप (पूर्वानुपूर्वी और पहचानुपूर्वी) न्यूनरहित हो ।' यह अनानुपूर्वी है । अधोलोक अधालोक के भेद और क्रम ७० प्र० भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ? उ० गौतम ! सात प्रकार का कहा गया है यथा;रत्नप्रभा पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक है..... ७१ : अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा(१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी, (३) अनानुपूर्वी । प्र० पूर्वानुपूर्वी ( का स्वरूप) क्या है ? उo पूर्वानुपूर्वी ( का स्वरूप इस प्रकार ) है - ( १ ) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) बालुका प्रभा, (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमः प्रभा, (७) तमस्तम प्रभा । यह पूर्वानुपूर्वी है । १. अनानुपूर्वी की चार श्रेणियाँ इस प्रकार हैं-- १.३.२. । यह एकादि श्रेणी है अर्थात् इसके आदि में एक है । २.१.३. । ३.१.२. । २.३.१. । ये तीन एकोत्तरिक श्रेणियाँ हैं—इन तीनों का परस्पर गुणन पुर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी से रहित हो - यह अनानुपूर्वी है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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