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लोक- प्रज्ञप्ति
६६ प से कि तं पुण्यापुण्यो ?
उ० बागी
(१) महोलोए (२) तिरिए
(३) उड्ढलोए । से तं पुव्वाणुपुथ्वी ।
।
प से हितं पच्छा पुथ्वी ?
उ० पाणी
(१) लोए (२) तिरियलोए
(३) अहोलोए से तं पच्छायो । प से कि
गावी ? उ० अणावी एए चैव एवादियाए एगुलरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नभासो दुरूवूणो ।
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सेतं अणावी ।
अहोलोगो
अहेलोयस्स नेया: कमो य
७० : प० अहेलोय खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पनते ?
अधोलोक
- अणु० सु० १६१, १६२, १६३ ।
उ० गोमा ! तब पत्ते तं जहा रयणप्पा पुढवि अहे लोयखेत्तलोए जाव अहे सत्तमपुढवि अलोएलोए।
- भग० स० ११, उ० १०, सु० ४ ।
७१ असोपतापुथ्वी तिविहा पण्णत्ता तं जहा
(१) पुब्वाणुपुथ्वी, (२) पच्छाणुपुत्री, (३) अणाणुपुव्वो । प से का?
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उ० पुग्वाणुपुब्बी - (१) रयणप्पभा, (२) सक्करपभा, (३) वालुयप्पभा, (४) पंकप्पभा, (५) धूमप्पभा, (६) तमप्पभा, (७) तमतमप्पभा । से तं पुव्वाणुपुग्वी ।
६६ : प्र० पूर्वानुपूर्वी किस प्रकार है ?
उ० पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार है
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(१)
(२) तिर्यकुलोक।
(३) उय पूर्वानुपूर्वी है।
प्र० पश्चानुपूर्वी किसप्रकार है ?
उo पश्चानुपूर्वी इस प्रकार है(१) उर्ध्वलोक । (२) तिर्यकुलोक
(३) अधोलोक यह पश्चानुपूर्वी है।
सूत्र ६६-७१
प्रo अनानुपूर्वी किस प्रकार है ?
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उ० अनानुपूर्वी इस प्रकार है - जिसका प्रथम क्रम एकादि हो अर्थात् आदि में एक हो। जिसका द्वितीय तृतीय और चतुर्थ क्रम एकोत्तरिक हो । अर्थात् एक उत्तरिक- एक के बाद आने वाले दो और तीन हों । इन तीन गच्छों (समूहों की श्र ेणियों में अन्योन्य एक दूसरे का अभ्यास (गुणन) हो तथा द्विरूप (पूर्वानुपूर्वी और पहचानुपूर्वी) न्यूनरहित हो ।'
यह अनानुपूर्वी है ।
अधोलोक
अधालोक के भेद और क्रम
७० प्र० भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ० गौतम ! सात प्रकार का कहा गया है यथा;रत्नप्रभा पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक है.....
७१ : अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा(१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी, (३) अनानुपूर्वी । प्र० पूर्वानुपूर्वी ( का स्वरूप) क्या है ?
उo पूर्वानुपूर्वी ( का स्वरूप इस प्रकार ) है - ( १ ) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) बालुका प्रभा, (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमः प्रभा, (७) तमस्तम प्रभा । यह पूर्वानुपूर्वी है ।
१. अनानुपूर्वी की चार श्रेणियाँ इस प्रकार हैं-- १.३.२. । यह एकादि श्रेणी है अर्थात् इसके आदि में एक है । २.१.३. । ३.१.२. । २.३.१. । ये तीन एकोत्तरिक श्रेणियाँ हैं—इन तीनों का परस्पर गुणन पुर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी से रहित हो - यह अनानुपूर्वी है ।