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________________ सूत्र ६६-६८ क्षेत्रलोक गणितानुयोग ३३ (२) असंखेज्जइभागे होज्जा? (३) संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? (४) असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? (५) सव्वलोए होज्जा? उ० (१) नो संखेज्जइभागे होज्जा। (२) नो असंखेज्जइभागे होज्जा । (३) नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा। (४) नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा। (५) नियमा सव्वलोए होज्जा । एवं दोण्णि वि। -अणु० सु० १२५ । (२) असंख्यातवें भाग में हैं ? (३) संख्येयभागों में हैं ? (४) असंख्येयभागों में हैं? (५) या सम्पूर्ण लोक में हैं ? उ० (१) संख्यातवें भाग में नहीं हैं। (२) असंख्यातवें भाग में नहीं हैं। (३) संख्येयभागों में नहीं हैं। (४) असंख्येयभागों में नहीं हैं। (५) निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक में हैं । इसी प्रकार दोनों (अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य) भी हैं.... संगहणयावेक्खा आणपुचीदव्वादोणं लोगे फसणा- संग्रहनयकी अपेक्षा से आनुपूर्वी आदि द्रव्यों की लोक स्पर्शना६७ : प० (१) संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स कि संखेज्जइ ६७ : प्र० (१) संग्रह नयकी अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक भागं फुसंति ? के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? (२) असंखज्जइ भागं फुसंति ? (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? (३) संखेज्जे भागे फुसंति? (३) संख्येयभागों का स्पर्श करते हैं ? (४) असंखेज्जे भागे फुसंति ? (४) असंख्येयभागों का स्पर्श करते हैं ? (५) सव्वलोगं फुसंति ? (५) या सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं ? उ० (१) नो संखेज्जइ भागं फुसति । उ० (१) संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं। (२) नो असंखेज्जइ भागं फुसंति । (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं। (३) नो संखेज्जे भागे फुसति । (३) संख्येयभागों का स्पर्श नहीं करते हैं। (४) नो असंखेज्जे भागे फुसंति । (४) असंख्येयभागों का स्पर्श नहीं करते हैं। (५) नियमा सव्वलोग फुसंति । (५) (किन्तु वे) निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। एवं दोन्नि वि। इस प्रकार दोनों (अनानुपूर्वीद्रव्य और अवक्तव्यद्रव्य) भी हैं। -अणु० सु० १२६ । खेत्तलोगो क्षेत्रलोक खेत्तलोगस्स भेया-कमो य६८ : प० खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ? उ० गोयमा ! तिविहे पन्नते, तं जहा (१) अहेलोय खेत्तलोए, (२) तिरियलोय खेत्तलोए, (३) उड्ढलोय खेत्तलोए।' -भग० स० ११, उ० १०, सु० ३ । क्षेत्रलोक के भेद और क्रम६८ : प्र. भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहागया है ? उ. गौतम ! तीन प्रकार का कहागया है, यथा(१) अधोलोक-क्षेत्रलोक । (२) तिर्यक्लोक-क्षेत्रलोक । (३) उर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक । १. तुलना-तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-१. उद्धलोगे, २. अहोलोगे, ३. तिरियलोगे। -ठाणं ३, उ० २, सु० १५३ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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