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________________ ३२ लोक-प्रज्ञप्ति द्रव्यलोक सूत्र ६४-६६ (४) असंखेज्जे वा भागे फुसति । (४) असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं। (५) सव्वलोगं वा फुसंति। (५) या सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सम्वलोगं फुसंति । नाना द्रव्यों की अपेक्षा निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। प० [२] (१-५) गम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाइं प्र०२. (१-५) नैगम और व्यवहार नयकी अपेक्षा से लोगस्स कि संखेज्जइभागं फुसंति ? (जाव) सव्व- अनानुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श लोयं फुसंति ? करते हैं ? (यावत्) सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं ? उ० (१) एगं बच्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति । उ० (१) एक द्रव्य की अपेक्षा संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं। (२) असंखेज्जइमागं फुसंति । (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं । (३) नो संखेज्जे भागे फुसंति । (३) संख्येयभागों का स्पर्श नहीं करते हैं। (४) नो असंखेज्जे भागे फुसंति । (४) असंख्येयभागों का स्पर्श नहीं करते हैं । (५) नो सव्वलोगं फुसंति । (५) सम्पूर्ण लोक का स्पर्श नहीं करते हैं। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति । नाना द्रव्यों की अपेक्षा निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। [३] एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि ।। (३) इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्य भी कहने चाहिए। -अणु० सु० १०६-(१, २, ३) ६५ : प० [१] (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वोदव्वाई लोगस्स ६५ : १. प्र० (१) नैगम और व्यवहार नयकी अपेक्षा से आनुपूर्वी किं संखेज्जइभागं फुसंति? द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं? (२) असंखेज्जइभागं फुसंति ? (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? (३) संखेज्जे भागे फुसंति ? (३) संख्येयभागों का स्पर्श करते हैं ? (४) असंखेज्जे भागे फुसंति ? (४) असंख्येयभागों का स्पर्श करते हैं ? (५) सव्वलोग फुसंति ? (५) या सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं ? उ० (१) एगं दव्वं पडुच्च संखेज्जइभागं वा फुसंति । उ० (१) एक द्रव्य की अपेक्षा संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। (२) असंखेज्जइभागं वा फुसंति । (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं । (३) संखेज्जे वा भागे फुसंति । (३) संख्येयभागों का स्पर्श करते हैं। (४) असंखेज्जे वा भागे फुसंति । (४) असंख्येयभागों का स्पर्श करते हैं। (५) देसूणं वा लोगं फुसंति । (५) या देशऊन लोक का स्पर्श करते हैं। नाणादब्वाइं पडुच्च नियमा फुसंति , नाना द्रव्यों की अपेक्षा निश्चितरूप से सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। (२-३) अणाणपुव्वीदव्वाइं अवत्तव्वयदव्वाणि य जहा (२-३) अनानुपूर्वीद्रव्य और अवक्तव्यद्रव्य क्षेत्रानपूर्वी खेत्तं । नवरं-फुसणा भाणियव्वा । द्रव्यों के समान हैं । विशेष—यहाँ स्पर्शना कहनी चाहिए। —अणु० सु० १५३ (१-२)। संगहनयावेक्खा लोए आणुपुत्वीदव्वाईणं अत्थित्तं- संग्रह नयकी अपेक्षा से लोक में अनानपूर्वी द्रव्यादि का अस्तित्व६६ : प० संगहस्स आणुपुव्वोदव्वाइं लोगस्स कतिभागे होज्जा? ६६ : प्र० संग्रहनयकी अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? (१) कि संखेज्जइभागे होज्जा? (१) क्या संख्यातवें भाग में हैं ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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