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________________ सूत्र ६२-६४ (३) नो संखेज्जेसु भागेस होज्जा । (४) नो असंखेज्जेसु भागेस होज्जा । (५) नो सव्वलोए होज्जा । [३] एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । नाणादाच्च नियमा सब्बलोए होज्जा । -अणु० सु० १०८ । www द्रव्यलोक (२) असंखेज्जहभागे वा होज्जा ? (३) संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा ? (४) असं या भागेस होगा ? (५) सम्बलोए होगा ? ६३ : प० (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुथ्वीदव्बाई लोगस्स किं ६३ : प्र० (१) नैगम और व्यवहार नयकी अपेक्षा से आनुपूर्वी संखेइभागे होला ? द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग में हैं ? उ० (१) एवं पहुच लोगस्स संभागे वा होज्जा । (२) असंखेन्जमा वा होना । (३) संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा । (४) असं खेज्जेसु वा भागेसु होज्जा । (५) देसु वा सोए होन्डा । नागादन्चाई पड़च्च नियमा सव्वलोए होगा। एवं अणाणपुव्वि-अवत्तव्वयदव्वाणि भाणियव्वाणि जहा णेगम ववहाराणं वेत्ताणपुथ्वीए । - अणु० सु० १९३ । एवं फुसणा - अणु० सु० १९४ । गम-ववहारणयावेक्खा लोगे आणुपुब्बीवव्याई णं फुसणा ६४: प० [१] (१) गम-वदहाराणं आमृम्बीदम्बाई लोगस्स कि संखेज्जइभागं फुसंति ? (२) असंखेज्जद्भागं फुति ? (३) संखेज्जे भागे फुसंति ? (४) असंखेने भागे कुति ? (५) सम्बलो पुति ? उ० ( १ ) एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वा पुति । (२) असंखेज्जइभागं वा फुति । (३) संखेने या मागे पुति । (२) संख्येपभागों में नहीं है। (४) असंख्येयभागों में नहीं हैं। (५) और सम्पूर्ण लोक में (भी) नहीं हैं। नाना द्रव्यों की अपेक्षा निश्चितरूप से सम्पूर्ण लोक में हैं । (३) इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्य भी हैं..... (२) असंख्यातवें भाग में हैं ? (३) संख्येवभागों में है ? गणितानुयोग ३१ (४) असस्येयभागों में है ? (५) या सम्पूर्ण लोक में हैं ? उ० ( १ ) एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में हैं । (२) असंख्यातवें भाग में हैं । (३) संख्येयभागों में हैं । ( ४ ) असंख्येयभागों में हैं । (५) देश ऊन ( कुछ कम ) लोक में भी हैं । नाना द्रव्यों की अपेक्षा निश्चित रूप से सम्पूर्ण लोक में हैं । जिस प्रकार नैगम और व्यवहार नयकी अपेक्षा क्षेत्रानुपूर्वी का कथन है इसीप्रकार अनानुपूर्वीद्रव्य और अव क्तव्यद्रव्य कहलवाने चाहिए । इसी प्रकार स्पर्शना भी है...... नैगम और व्यवहारनयकी अपेक्षा से लोक में आनुपूर्वी द्रव्य आदि की स्पर्शना - ६४ प्र०] १. (१) नैगम और व्यवहारनयकी अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? (३) संख्येनामों का स्पर्श करते हैं ? (४) असंख्येयों का स्वयं करते हैं ? (५) या सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं ? उ० ( १ ) एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। (२) असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। (३) संख्येयभागों का स्पर्श करते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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