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सूत्र ६०-६१
द्रव्यलोक
गणितानुयोग
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अहवा-एगिदियपदेसा य, अणिदियपदेसा य, बेइंदियाण
य पदेसा। एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचेंदियाणं ।
अजीवा जहा दसमसए तमाए (भग० १०, उ० १, सु० १७) तहेव निरवसेसं । प. लोगस्सगं भंते ! हेटिल्ले चरिमंते कि जीवा जाव अजीवप्पएसा? उ० गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि, जाव अजीवप्पएसा वि। जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा। अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियस्स य से।
अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं तथा द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं ।
इसप्रकार प्रथम भंग छोड़कर यावत् पंचेन्द्रिय पर्यन्त भंगों का कथन करना चाहिए।
अजीवों का कथन (भगवती के) दशम शतक में कथित तमा-दिशा के समान करना चाहिए।
प्र० हे भगवन् ! क्या लोक के अधःचरमान्त में जीव हैं यावत् अजीव-प्रदेश हैं ?
उ० हे गौतम ! वहाँ जीव नहीं है, किन्तु जीव-देश हैं यावत् अजीव-प्रदेश हैं।
वहाँ जितने जीव देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं। अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, तथा द्वीन्द्रिय जीव का
देश हैं। अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं तथा द्वीन्द्रिय जीवों के
देश हैं। इस प्रकार मध्यमभंग को छोड़कर यावत् अनिन्द्रिय पर्यन्त (शेष समस्त भंगों का) कथन करना चाहिए।
प्रथम भंग को छोड़कर सबके प्रदेश पूर्वी चरमान्त के समान कथन करना चाहिए।
अजीवों का ऊर्ध्वचरमान्त के समान कथन करना चाहिए।
अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियाण य देसा।
एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणिदियाणं ।
पदेसा आदिल्लविरहिया सव्वेसि जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते तहेव। अजीवा जहा उरिल्ले चरिमंते तहेव ।
-भग० स० १६, उ०८, सु० २-६।
णेगम-ववहारणयावेक्खा लोगे खेत्ताणपुव्वी दव्वादोणं नैगम और व्यवहारनय की अपेक्षा से लोक में क्षेत्रानअत्थित्तं
पूर्वी आदि द्रव्यों का अस्तित्व६१:५०[१] (१) गम-ववहाराणं खेत्ताणपुवीदव्वाइं लोगस्स ६१ : प्र०१. (१) नैगम और व्यवहारनय की अपेक्षा से क्षेत्रानकतिभागे होज्जा?
पूर्वी द्रव्य लोक के किस भाग में हैं ? (२) कि संखेज्जइभागे वा होज्जा?
(२) क्या संख्यातवें भाग में हैं ? (३) असंखेज्जइभागे वा होज्जा?
(३) असंख्यातवें भाग में हैं ? (४) संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा ?
(४) संख्येयभागों में हैं ? (५) असंखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा?
(५) असंख्येयभागों में हैं ? (६) सव्वलोए वा होज्जा?
(६) या संपूर्ण लोक में हैं ? उ० (१) एगबव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, उ० (१) एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में हैं, (२) असंखेज्जइमागे वा होज्जा,
(२) असंख्यातवें भाग में हैं, (३) संखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा,
(३) संख्येयभागों में हैं, (४) असंखेज्जेसु वा भागेसु होज्जा,
(४) असंख्येयभागों में हैं, (५) देसूणे वा लोए होज्जा,
(५) या देश न्यून (कुछ न्यून) लोक में है, (६) नाणादब्वाइं पडुच्च णियमा सव्वलोए होज्जा। (६) नानाद्रव्यों की अपेक्षा निश्चितरूप से सम्पूर्ण
लोक में हैं।