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________________ (ग) बलि-पिण्ड लेने के लिए जिस देव को मेरु की पार कर सकता है। जबकि उक्त असत्कल्पना में तीव्रतम चलिका से जम्बूद्वीप के विजय द्वार तक आना होता है, गति वाले देव भी आठ हजार वर्ष में लोकान्त तक नहीं उसे लगभग १,१२,२०० योजनों की दूरी तय करनी पड़ती पहँच सके । इसका फलितार्थ यह हुआ कि लोहे के गोले है। इतनी दूरी कम से कम एक चुटकी बजे जितनी देर की गति से देवताओं की गति मन्द है जबकि देवताओं में तय कर लेता होगा, जबकि कुछ ऐसे दिव्य गति वाले की गति से लोहे के गोले की गति मन्द होनी चाहिए। देव हैं जो एक चुटकी बजे जितनी देर में पूरे जम्बूद्वीप "शकेन्द्र की गति से वज्र की गति मन्द रही है।" यह की परिक्रमा कर लेते हैं। अर्थात् बलि-पिण्ड पकड़ने तथ्य व्याख्याप्रज्ञप्ति में वर्णित है। वाले देव से एक चुटकी में तिगुनी दूरी तय कर लेते हैं। (ख) एक रज्ज का यह औपमिक परिमाण "जैनतत्वकुछ देव ऐसी दिव्य गति वाले भी हैं जो तीन चुटकी प्रकाश" (स्व० पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी म. लिखित) बजे उतनी देर में इक्कीस परिक्रमा कर लेते हैं। अब में दिया गया है। किन्तु किस ग्रन्थ से उद्धृत किया गया, विचारणीय विषय यह है कि उक्त कल्पना में लोक का यह अज्ञात है। यदि किसी प्राचीन ग्रन्थ में यह है तो अन्त पाने के लिए ऐसी दिव्य गति वाले देवों की गति अवश्य विचारणीय है। का उदाहरण क्यों नहीं दिया गया? (ग) आधुनिक वैज्ञानिकों की यह मान्यता है कि (घ) उक्त कल्पना में लोक का अन्त पाने के लिए लोहे का गोला एक मण वजन का हो चाहे हजार मण जाने वाले देव लगभग आठ हजार वर्ष में भी लोक का वजन का हो, परन्तु किसी निर्धारित ऊँचाई से गिराने पर अन्त नहीं पा सकते, जबकि तीर्थंकर भगवान के जन्मा- सदा समान गति से गिरता है । एक घण्टे में लोहे की गति भिषेक आदि महोत्सवों में अच्युतेन्द्र आदि आते हैं तो वे ऊपर से नीचे की ओर केवल ७८ हजार ५५२ माइल की एक मुहूर्त (लगभग ४८ मिनट) में पोने चार रज्जु की होती है । पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में ही यह गति आधुनिक दूरी तय कर लेते हैं। यदि (असत्कल्पना से) अच्युतेन्द्र वैज्ञानिकों ने मानी है । यदि विज्ञानसम्मत लोहे के गोले लोक का अन्त पाने के लिए तीव्रतम गति से चलें तो की गति का आधार लेकर एक रज्जु का परिमाण लगभग चार मूहूर्त में लोक के अन्त तक पहुँच सकते हैं। निकालें तो इस प्रकार आयेगाअतः आठ हजार वर्ष तक लोक का अन्त न पा सकना यथा-छ: मास, छः दिन, छः प्रहर और छः घड़ी विचारणीय अवश्य है। के ४४८४ घण्टे और २४ मिनट होते हैं। इतने समय में (ङ) चमरेन्द्र भगवान महावीर की शरण लेकर लोहे का गोला ३५ करोड २२ लाख ५८ हजार और ५८६ शक्रेन्द्र को अपमानित करने के लिए सौधर्म देवलोक तक माइल की दूरी पार कर लेगा-ये एक रज्जु के माइल गया। और वज्र की मार से बचने के लिए वह वहाँ से हुए। इस प्रकार चौदह रज्जु के ४ अरब, ६३ करोड़, लौट कर भगवान महावीर के समीप पहुँचा । शकेन्द्र भी १७ लाख और २४३ माइल हुए। लोहे के गोले की गति वज्र को पकड़ने के लिए तीव्रगति से चला। प्रस्तुत से लोक का विस्तार इतना ही होता है, किन्तु यह लोक प्रसंग में चमरेन्द्र लगभग डेढ़ रज्जु गया और आया, का विस्तार सर्वथा असंगत है। शक्रेन्द्र केवल डेढ़ रज्जु आया। चमरेन्द्र को आने जाने (घ) तोल में 'मण' संज्ञा किस युग में निर्धारित की में अधिक से अधिक एक मुहूर्त लगा होगा। जबकि उक्त गई है? इसका ऐतिहासिक दृष्टि से निर्णय होना आवअसत्कल्पन में देव लोकान्त तक आठ हजार वर्ष में भी । श्यक है। क्योंकि राजाओं के शासन काल में तोल में नहीं पहुँच पाते । अतः यह अवधि विचारणीय है। 'मण' प्रचलित था। (३) एक रज्जु के औपमिक परिमाण के सम्बन्ध में (ङ) आगम काल में 'मण' तोल प्रचलित नहीं था, निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं अतः यह मध्यकालीन तोल का नाम है। फिर भी इस (क) एक रज्जु का जो औपमिक परिमाण बताया है सम्बन्ध में शोध कार्य होना आवश्यक है। उस हिसाब से उक्त भार वाला लोहे का गोला सात काल-लोक वर्ष, तीन मास और आठ दिन में चौदह रज्जु की दूरी यह लोक (विश्व) सान्त है या अनन्त ? यह एक
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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