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________________ २४ लोक-प्राप्ति अहवा एगिदियोसा मस्त देसे एवं चैव तियभंगो भाणियव्वो । एवं जाय अणिदियाण तियभंगो ।। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिदियपदेसा । अहवा— एगिदियपदेसा म बेवियरस पदेसा । अहवा एविदिषयदेसाय बेदियाण व पदेसा । एवं आविल्ल विरहिओ जाव अणिदियागं । जे अजीवा ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा १. रूवि अजीवा य २. अरूवि अजीवा य । जे रूविअजीवा ते चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा संधा जाब परमाणुयोगाला । जे अविअजीवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, नो धम्मचिकाए १. धम्मत्थिकायस्स देसे, २. धम्मत्थिकायस्स पदेसा । तं जहा उ० जहा इंदा तहेब निरवसेसं । द्रव्यलोक एवं ३-४ अधमत्थिकायस्स वि । एवं ५-६ आगासत्थिकायस्स वि, जाव आगासत्थिकायस्स पदेसा, ७ अद्धासमए । प० जम्मा णं भते ! दिसा कि जीवा जाव अजीवपएसा ? नेरई जहा अग्गेयी, वारुणी जहा इंदा, वायव्वा जहा अग्गेयी, सोमा जहा इंदा, ईसाणी जहा अगयी। विमलाए जीवा जहा अग्गेयो, अजीवा जहा इंदाए । एवं तमाए वि, नवरं अरूवी छव्विहा । अद्धासमयो न भण्णति । अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और वेन्द्रिय जीव का देश है । इस प्रकार श्रीन्द्रिय के तीन भंग कहने चाहिए। यावत् अनिन्द्रिय जीवों के भी तीन भंग करने चाहिए । सूत्र ५५ वहाँ जितने जोव प्रदेश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश है । अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं और हीन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश है। इस प्रकार प्रथम भंग छोड़कर यावत् अनिन्द्रिय पर्यन्त भंग कहने चाहिए। वहाँ जितने अजीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. रूप २. और अरूपी अजीव । वहाँ जितने रूपी अजीव हैं, वे चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा - स्कंध यावत् परमाणुपुद्गल । वहाँ जितने अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा --- धर्मास्तिकाय नहीं है । १. धमास्तिकाय का देश है, २. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, इसी प्रकार ३-४. धर्मास्तिकाय के, ५-६ आकाशास्तिकाय के बावत् आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं, ७. अद्धासमय । प्रo हे भगवन् ! याम्या दिशा में क्या जीव है यावत् अजीव प्रदेश है? उ० इन्द्रा दिशा के समान सम्पूर्ण कथन करना चाहिए। नैर्ऋति दिशा का वर्णन आग्नेयी दिशा के समान है । वारूणी दिशा का वर्णन इन्द्रा दिशा के समान है । वायव्य दिशा का वर्णन आग्नेयी दिशा के समान है। सोमा दिशा का वर्णन इन्द्रा दिशा के समान है। ईशानी दिशा का वर्णन आग्नेयी दिशा के समान है। विमला दिशा के जीवों का वर्णन आग्नेयी दिशा के समान है । वहाँ के अजीवों का वर्णन इन्द्रा दिशा के समान है । इसी प्रकार तमादिशा का वर्णन भी है। विशेषता यह है - वहाँ अरूपी अजीव छह प्रकार के हैं क्योंकि वहाँ -- भग० स० १०, उ० १ सू० ६ १७ । अद्धासमय नहीं कहा है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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