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सूत्र ५४-५५
द्रव्यलोक
गणितानुयोग २३ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm दिसासु जीवाजीवा तद्देस-पएसा य
दिशाओं में जीव, अजीव और उनके देश, प्रदेश५४ : प० इंदा णं भंते ! दिसा कि जीवा जीवदेसा, जीवपदेसा, ५४ : प्र० भगवन् ! (क्या) इन्द्रा दिशा में जीव, जीव-देश, जीवअजीवा अजीवदेसा, अजीवपदेसा?
प्रदेश, अजीव, अजीव-देश और अजीब-प्रदेश हैं ? उ० गोयमा ! जीवा वितं चेव जाव अजीवपएसा वि। उ० गौतम ! इन्द्रा दिशा में जीव हैं यावत् अजीव-प्रदेश
भी है। जे जीवा ते नियम एगिदिया बेइंदिया जाव पंचिदिया, इन्द्रा दिशा में जितने जीव हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीव हैं, अणिदिया।
द्वीन्द्रिय जीव हैं यावत् पंचेन्द्रिय जीव हैं और अनिन्द्रिय है। जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा जाव अणिदिय- वहाँ जितने जीव देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश देसा ।
हैं यावत् अनिन्द्रिय जीवों के देश है। जे जीवपएसा ते नियम एगिदियपदेसा जाव अणि- वहाँ जितने जीव प्रदेश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के दियपदेसा।
प्रदेश हैं यावत् अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं। जे अजोवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
वहाँ जितने अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१ रूवी अजीवा य,
१. रूपी अजीव, और २. अरूवी अजीवा य ।
२. अरूपी अजीव । जे रूबी अजीवा ते चउबिहा पण्णत्ता; सं जहा
वहाँ जितने रूपी अजीव हैं वे चार प्रकार के कहें गये हैं, यथा१. खंधा, २. खंधदेसा,
१. स्कं ध,
२. स्कंध-देश, ३. खंधपएसा, ४. परमाणुपोग्गला ।
३. स्कंध-प्रदेश, ४. परमाणु-पुद्गल । जे अरूबी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा- वहाँ जितने अरूपी अजीब हैं वे सात प्रकार के कहे गये हैं, नो धम्मत्थिकाए।
यथा-धर्मास्तिकाय नहीं है। १ धम्मत्थिकायस्स देसे,
१. धर्मास्तिकाय का देश है, २. धम्मस्थिकायस्स पदेसा, नो अधम्मत्थिकाए,
२. धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं । अधर्मास्तिकाय नहीं है, ३. अधम्मत्थिकायस्स देसे,
३. अधर्मास्तिकाय का देश है, ४. अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, नो आगासस्थिकाए, ४. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं । आकाशास्तिकाय नहीं है, ५. आगासत्थिकायस्स देसे,
५. आकाशास्तिकाय का देश है, ६. आगासस्थिकायस्स पदेसा,
६. आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं, ७. अद्धासमए।
७. अद्धासमय । -भग० स०१०, उ० १, सु० ८।
५५: प० अग्गेयो णं भंते ! दिसा कि जीवा (जाव) अजीव- ५५ : प्र० हे भगवन् ! क्या आग्नेयी दिशा में जीव हैं यावत् पएसा?
अजीव प्रदेश हैं ? उ० गोयमा ! णो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, उ० हे गौतम ! वहाँ जीव नहीं है किन्तु जीवदेश है, जीव
अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवदेश हैं और अजीवप्रदेश हैं। जे जीवदेसा ते नियमं एगिदियदेसा।
वहाँ जितने जीव देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रियजीवों के
अहवा-१. एगिदियदेसा य, बेइदियस्स देसे ।
अहवा-२. एगिदियदेसा य, बेइंदियस्स देसा।
अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और द्वीन्द्रियजीव का
देश है। अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और द्वीन्द्रियजीव के
देश हैं। अथवा : एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और द्वीन्द्रियजीवों के
देश है।
अहवा-३. एगिदियदेसा य, बेइंदियाण य देसा ।