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सूत्र ५६-५७
द्रव्यलोक
गणितानुयोग
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लोए जीवाजीवा तद्देसपदेसा य
लोक में जीव अजीव और उनके देश-प्रदेश५६ : प० लोए णं भंते ! किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, ५६ : प्र० भगवन् ! क्या लोक में जीव हैं, जीवों के देश हैं, जीवों अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा?
के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश हैं ? उ० गोयमा ! जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, उ. गौतम ! वहां जीव हैं, जीव-देश हैं, जीव-प्रदेश हैं,
अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। अजीव हैं, अजीवदेश हैं और अजीव-प्रदेश हैं। जे जीवा ते नियमा एगिदिया, बेइंदिया; तेइंदिया, चरि- वहाँ जो जीव हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रिय हैं, बेइन्द्रिय हैं, दिया, पंचेंदिया, अणिदिया।
तेइन्द्रिय हैं, चउरिन्द्रिय हैं, पंचेन्द्रिय हैं और अनिन्द्रिय हैं। जे जीवदेसा ते नियमा एगिदियदेसा जाव अणिदियदेसा। वहाँ जो जीवों के देश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रियों के देश
हैं यावत् अनिन्द्रियों के देश हैं। जे जीवपदेसा ते नियमाएगिदियपदेसा जाव अणिदियपदेसा। वहाँ जो जीवों के प्रदेश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रियों के
प्रदेश हैं यावत् अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं। जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-रूवी य, अरूवी य। वहाँ जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहेगये हैं, यथा-रूपी
और अरूपा। जे रूबी ते चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहा
वहाँ पर जो रूपी अजीव हैं वे चार प्रकार के कहेगये हैं, यथा१. खंधा,
१. स्कन्ध, २. खंधदेसा,
२. स्कन्धदेश, ३. खंधपदेसा,
३. स्कन्धप्रदेश, ४. परमाणुपोग्गला।
४. परमाणुपुद्गल । जे अरूबी अजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा
वहाँ पर जो अरूपी अजीव हैं वे सात प्रकार के कहेगये हैं,यथा१. धम्मत्थिकाए, नो धम्मत्थिकायस्स देसे,
१. धर्मास्तिकाय है, धर्मास्तिकाय का देश नहीं है, २. धम्मत्थिकायस्स पदेसा,
२. धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, ३. अधम्मत्थिकाए, नो अधम्मत्थिकायस्स देसे,
३. अधर्मास्तिकाय है, अधर्मास्तिकाय का देश नहीं है, ४. अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, नो आगासत्थिकाए,
४. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, आकाशास्तिकाय नहीं है। ५. आगासत्थिकायस्स देसे,
५. आकाशास्तिकाय का देश है, ६. आगासस्थिकायस्स पदेसा,
६. आकाशास्तिकाय के प्रदेश हैं, ७. अद्धासमए ।
७. अद्धासमय है। -भग० स० ११, उ० १०, सु० १५ ।
लोगागासपएसे जीवाजीवा तद्देसपदेसा य
लोक के एक आकाशप्रदेश में जीव, अजीव और
उनके देश-प्रदेश५७: १० लोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे कि जीवा, ५७ : प्र० भगवन् ! क्या लोक के एक 'आकाश-प्रदेश में जीव हैं
जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीव- जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं पदेसा?
और अजीव के प्रदेश हैं ?
१. लोए णं भंते ! कि जीवा० ? जहा बितियसए अत्थिउद्देसए लोयागासे (भग० स० २, उ० १०, सु० ११) नवरं अरूबी
सत्तविहा-जाव अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, नो आगासत्यिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए । सेसं तं चेव। -भग० स० ११, उ० १०, सु० १५ । मूल पाठ इतना ही है । भग० स० २, उ०१०, सु० ११ के अनुसार जाव की पूर्ति की गई है।