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लोक-प्रज्ञप्ति
द्रग्यलोक
सूत्र ४७-५१
लोगे सासया-अणंता य४७ : ५० के सासया लोगे? उ० जीवच्चेव, अजीवच्चेव ।
-ठाणं २, उ०४, सु० १०३ ।
लोक में शाश्वत और अनन्त४७ : प्र. लोक में शाश्वत कितने हैं ?
उ० जीव हैं और अजीव हैं।
४८ : प० के अणंता लोए ?
४८ : प्र० लोक में अनन्त कितने हैं ? उ० जीवच्चेब, अजीवच्चेव ।
उ० जीव हैं और अजीव हैं। -ठाणं २, उ० ४, सु० १०३।।
पंचत्थिकायमयो लोगो
पंचास्तिकायमय लोक४६ : प० किमियं भंते ! लोए ति पवुच्चइ ?
४६ : प्र० भगवन् ! लोक कसा कहा गया है ? उ० गोयमा ! पंचत्थिकाया-एस णं एवतिए लोए त्ति उ० गौतम ! पंचास्तिकायमय है; यह लोक इतना ही कहा
पवच्चह, तं जहा-धम्मऽस्थिकाए, अधम्मऽस्थिकाए, जाता है, यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, यावत् पुद्गलाजाव पोग्गलत्थिकाए।
स्तिकाय । -भग० स० १३, उ०४, सु० २३ ।
छ दव्वमयो लोगो५०: गाहाओ
धम्मो, अहम्मो, आगास, कालो, पुग्गल, जंतवो। एसलोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरवंसिहि ॥
छह द्रव्यमय लोक५० : गाथार्थ
१. धर्म, २. अधर्म, ३. आकाश, ४. काल, ५. पुद्गल और ६. प्राणी । श्रेष्ठ (वर) दर्शी जिनदेवों ने यह लोक कहा है।
धम्मो अहम्मो आगासं, दग्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दवाणि, कालो पुग्गल जंतवो॥
-उत्त० अ०२८, गा० ७-८ ।
धर्म, अधर्म और आकाश-ये द्रव्य एकेक कहे गये हैं। काल, पुद्गल और प्राणी-ये द्रव्य अनन्त हैं।
दिसाणं भेया; सरूवं च५१: प० कति णं भंते ! दिसाओ पण्णत्ताओ? - उ० गोयमा ! दस दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
(१) पुरस्थिमा, (२) पुरथिम-दाहिणा, (३) दाहिणा, (४) दाहिण-पच्चत्थिमा, (५) पच्चत्थिमा, (६) पच्चत्थिमुत्तरा, (७) उत्तरा, (८) उत्तर-पुरत्थिमा, (६) उड्ढा , (१०) अहा। प० एयासि णं भंते ! दसण्हं दिसाणं कति णामधेन्जा
पण्णता?
दिशाओं के भेद और स्वरूप५१: प्र० भगवन् ! दिशाएँ कितनी कही गई हैं ?
उ० गौतम ! दस दिशाएँ कही गई हैं, यथा(१) पूर्व, (२) पूर्व-दक्षिण, (३) दक्षिण, (४) दक्षिण-पश्चिम, (५) पश्चिम, (६) पश्चिम-उत्तर, (७) उत्तर, (5) उत्तर-पूर्व, (8) अवं, (१०) अधो। प्र० भगवन् ! इन दस दिशाओं के कितने नाम कहे गये हैं ?