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सूत्र ५१-५३
उ० गोयमा ! दस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहागाहा
५२ प० किमियं भंते! पाईगा ति पच्यति ? उ० गोयमा ! जीवा चेव, अजीवा चेव । प० किमियं भंते! पडीमा ति पशुच्चत्ति ? उ० गोयमा ! जीवा चेव, अजीवा चेव । एवं दाहिणा, एवं उदीणा, एवं उड्ढा, एवं अहा वि ।
इंदगेयी जम्मा य नेरतो वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी या विमला य तमा य बोधव्वा ॥ -भग० स० १०, उ० १, सु० ६-७ ।
५३ : प० इंदा णं भंते ! दिसा १. किमादिया,
२. कि पवहा,
३. कतिपदेसादिया,
१.
-भग० स० १०, उ० १, सु० ३-४-५ ।
४. कतिपदेसुत्तरा,
५. कतिपदेसिया,
६. कपसिया
७. किं संठिया पन्नत्ता ?
उ० गोयमा ! इंदाणं दिसा १. वयगावोवा,
द्रव्यलोक
२. रुगप्प वहा,
३. दुपदे सादीया,
४. दुपदेसुत्तरा
५. लोगं
एसिया, अलोगं पच्च अनंतपदेसिया,
६. सोगं पच्च साईया सपज्जयसिया
अलोगं पडुच्च सादीया अपज्जवसिया,
७. लोगं पच्य मुखसंठिया, अलोगं पडुच्च समबुद्धिसंठिया पण्णत्ता ।
गणितानुयोग २१
उ० गौतम ! दस नाम कहे गये हैं, यथागाथार्थ -
(१) इन्द्रा, (२) आब्दी, (३) याम्या (४) नैऋति, (५) वारुणी, (६) वायव्य, (७) सोमा, (८) ईशानी, (६) विमला, और (१०) तमा.... ।
५२ : प्र० भगवन् ! इस पूर्व दिशा में क्या है ? उ० गौतम ! जीव और अजीव हैं।
प्र० भगवन् ! इस पश्चिम दिशा में क्या है ? उ० गौतम ! जीव और अजीव है ।
इसीप्रकार दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व और अधोदिशा में भी हैं।
५३ : प्र० भगवन् ! १. इन्द्रा दिशा के आदि में क्या है ?
२. यह कहाँ से निकली है ?
३. उसके आदि में कितने प्रदेश हैं ?
४. उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों की वृद्धि होती हैं ?
५. उसके कितने प्रदेश है ?
६. उसका अन्त कहाँ होता है ?
७. उसका संस्थान कैसा कहा गया है ? ।
उ० गौतम ! १. इन्द्रा दिशा के आदि में रुचक प्रदेश है,
२. वह रुचक प्रदेशों से निकली है,
३. उसके आदि में दो प्रदेश हैं,
४. आगे दो-दो प्रदेशों की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है,
५. लोक की अपेक्षा यह असंख्यप्रदेशवाली है और अलोक की अपेक्षा अनन्तप्रदेशवाली है,
६. लोक की अपेक्षा सादि-सान्त है और अलोक की अपेक्षा सादि-अनन्त है,
७. लोक की अपेक्षा मुरज के (एक प्रकार का वाद्य) संस्थान वाली है और अलोक की अपेक्षा ऊर्ध्व शकट के संस्थान वाली कही गई है ।
प्रस्तुत द्रव्यलोक में दिशाओं के भेद और स्वरूप का संकलन इसलिए किया गया है कि दिशाओं का सम्बन्ध संपूर्णलोक और अलोक के साथ हैं। देखिए प्रस्तुत संकलन में अंकित भग० श० १३, ०४, सू० १६-२२ पर्यंत के मूल पाठ और उनके अनुवाद |
यद्यपि उक्त आगमपाठों से अलोक में भी दिशाओं का अस्तित्व सिद्ध है, किन्तु अलोक न्याकाश है, उसमें आकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं है। अतएव लोक-विषयक इस संकलन में ही दिशाओं का तथा उनमें जीवादि द्रव्य और उनके देश प्रदेशादि का कथन संकलित किया गया है ।
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