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________________ सूत्र ४२-४६ द्रव्यलोक गणितानुयोग १६ ४२ : आगासे चेव, नोआगासे चेव । धम्मे चैव, अधम्मे चैव । -ठाणं २, उ०१, सु०५८ । ४२ : आकाश, नो आकाश । धर्म, अधर्म । ४३ : बंधे चेव, मोक्खे चेव । पुन्ने चेव, पावे चेव। आसवे चेव, संवरे चेव । वेयणा चेव, णिज्जरा चैव । -ठाणं २, उ० १, सु० ५६ । ४३ : बंध, मोक्ष । पुन्य, पाप । आश्रव, संवर । वेदना, निर्जरा । लोगे फुसणा४४ : प० (१) लोगे णं भंते ! किणा फुडे ? (२) कहिं वा काएहि फुडे ? (जाव) (३-८) अद्धासमए णं फुडे ? उ० (१-८) जहा आगासथिग्गले ।' -पण्ण० ५० १५, उ० १, सु० १००४ । लोक में स्पर्शना ४४ : प्र० [१] हे भगवन् ! लोक किससे स्पृष्ट है ? [२] कितनी कायों से स्पृष्ट है ? (यावत्) [३-८] अद्धासमय से स्पृष्ट है ? उ० [१] आकास थिग्गल जैसा वर्णन यहाँ कहना चाहिए। ४५: चउहि अस्थिकाएहि लोए फुडे पण्णत्ते, तं जहा (१) धम्मत्यिकाएणं, (२) अधम्मत्थिकाएणं, (३) जीवत्थिकाएणं, (४) पुग्गलत्थिकारणं । -ठाणं ४, उ०३, सु० ३३३ । ४५ : चार अस्तिकायों से यह लोक स्पृष्ट कहा गया है, यथा (१) धर्मास्तिकाय से, (२) अधर्मास्तिकाय से, (३) जीवास्तिकाय से, (४) पुद्गलास्तिकाय से। ४६ : चाहिं बादरकाएहि उववज्जमाणेहि लोगे फुडे पण्णत्ते, ४६ : उत्पद्यमान चार बादरकायों से यह लोक स्पृष्ट कहा गया है, तं जहा यथा(१) पुढविकाइएहि, (१) पृथ्वीकायिकों से, (२) आउकाइएहि, (२) अप्कायिकों से, (३) वाउकाइएहि, (३) वायुकायिकों से (४) वणस्सइकाइएहिं। (४) वनस्पतिकायिकों से । -ठाणं ४० उ० ३, सु० ३३३ । १. पण्ण० पद १५, उ० १, सु० १००२ यहां पूरा उद्धृत किया है। प० [१] आगासथिग्गले णं भंते ! किणा फुडे ? [२] कइहिं वा काएहिं फुडे ? [३] किं धम्मत्थिकाएणं फुडे ? [४] कि धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे ? [५] धम्मत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे ? [६] एवं अधम्मत्थिकाएणं, आगासत्थिकाएणं फुडे ? [७] एएणं भेदेणं जाव किं पुढविकाइएणं फुडे जाव तसकाएणं फुडे ? [८] अद्धासमएणं फुडे ? उ० [१] गोयमा ! धम्मत्थिकाएणं फुडे, [२] णो धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे, [३] धम्मत्थिकायस्स पदेसेहिं फूडे, [४]एवं अधम्मत्थिकाएणं वि णो आगासत्थिकाएणं फुडे, आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे, आगासस्थिकायस्स पदेसेहिं फूडे जाव [५] वणप्फइकाएणं फुडे, [६] तसकाएणं सिय फुडे, सिय णो फुडे, [७] अद्धासमएणं देसे फुडे, देसे नो फुडे । इस सूत्र में प्रश्न आठ हैं किन्तु उत्तर सात प्रश्नों का ही है क्योंकि द्वितीय प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया है। प्रश्न को संक्षिप्त वाचना के अनुसार उत्तर की संक्षिप्त वाचना का क्रम होता तो अधिक अच्छा होता। W
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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