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________________ १८ लोक-प्रज्ञप्ति द्रव्यलोक सूत्र ३७-४१ (२) समयक्खेत्ते, (३) उडविमाणे, (४) ईसिपब्भारा पुढवी। -ठाणं ४, उ०३, सु० ३२८ । (२) समय क्षेत्र, (३) उडुविमान, (४) ईषत्प्राग्भारा पृथिवी। लोगुज्जोय-निमित्ताणि-- ३८ : चहि ठाणेहि लोउज्जोए सिया, तं जहा-- (१) अरिहंतेहिं जायमाहि, (२) अरिहंतेहि पव्वयमाणेहि, (३) अरिहंताणं णाणुप्पायमहिमासु,' (४) अरिहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु । --ठाणं ४, उ० ३, सु० ३२४ ! लोक में उद्योत के कारण३८ : चार कारणों से लोक में उद्योत होता है, यथा (१) अर्हन्तों का जन्म होने पर, (२) अर्हन्तों की प्रव्रज्या होने पर, (३) अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के महोत्सवों में, (४) अर्हन्तों के निर्वाण महोत्सवों में । लोगंधयार-निमित्ताणि-- ३६ : चहि ठाणेहि लोगंधयारे सिया, तं जहा (१) अरिहंतेहिं वोच्छिज्जमार्गाह, (२) अरिहंत-पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, (३) पुव्वगए वोच्छिज्जमाणे,' (४) जायतेए वोच्छिज्जमाणे । -ठाणं ४, उ०३, सु० ३२४ । लोक में अंधकार के कारण३६ : चार कारणों से लोक में अन्धकार होता है, यथा (१) अर्हन्तों का व्युच्छेद होने पर, (२) अर्हत्प्रणीत-धर्म का व्युच्छेद होने पर, (३) पूर्वगत-ज्ञान का व्युच्छेद होने पर, (४) अग्नि का व्युच्छेद होने पर । द्रव्यलोक दवलोगो जीवाजीवमयोलोगो४०: प० के अयं लोए? उ० (१) जीवच्चेव, (२) अजीवच्चेव ।' -ठाणं २, उ०४, सु० १०३ । जीव-अजीवमय लोक-. ४०. प्र. यह लोक कैसा है ? उ० जीवमय है और अजीवमय है। लोगे दुविहा पयत्था४१ : जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुप्पडोआरं. तं जहा जीवच्चेव, अजीवच्येव । तसे चेव, थावरे चैव । सजोणियच्येव, अजोणियच्वेव, साउयच्चेव, अणाउयच्व्व। सइंदियच्चेव, अणिदियच्चेव । सवेयगा चेव, अवेयगा चेव। सरूवि चेव, अरूवि चेव । सपागला चेव, अपोग्गला चेव । संसारसमावन्नगा चव, असंसारसमावन्नगा चेव । सासया चेव, असासया चेव । -ठाणं २, उ० १, सु० ५७ । लोक में द्विविध पदार्थ४१ : लोक में जो कुछ हैं वे सब दो प्रकार के हैं, यथा जीव, अजीव, त्रस, स्थावर, सयोनिक, अयोनिक, सायुष्क, अनायुष्क, सेन्द्रिय, अनेन्द्रिय, सवेदक, अवेदक, रूपि, अरूपि, सपुद्गल, अपुद्गल, संसार-समापन्नक, असंसार-समापन्नक, शाश्वत, अशाश्वत । ठाणं०३, उ०१, सु०१४८ । २. ठाणं०३, उ०१, सु० १३४ । ३. ठाणं० ३, उ०१, सु० १३४ । ४. तुलना-जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। --उत्त० अ०३६, गा०२।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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