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में चित्रित किया है। किन्तु जैनागमों में कहीं भी लोक- मूर्धनि सत्यलोकस्तु, ब्रह्मलोकः सनातनः ॥ पुरुष का वर्णन नहीं है।
तत्कट्यां चातलक्लृप्तमुभ्यां वितलं विभोः । - अतः विचारणीय प्रश्न यह है कि जैनागमों में जो जानुभ्यां सुतलं शुद्ध, जंघाभ्यां लु तलातलम् ।। "प्रैवेयक' देवों के नाम गिनाए गये हैं, उनके नामकरण पातालं पादतलत, इति लोकमयः पुमान् । का हेतु क्या है ? उनके विमान लोक-पुरुष की ग्रीवा के
–भागवत् पुराण २/५/३८-४० स्थान पर हैं, इसलिए वे "ग्रेवेयक" देव कहे गये हैं।
(गीता प्रेस) प्रथम भाग पृ० १६६ । यदि यह व्युत्पत्तिपरक अर्थ संगत है तो आगमों में भी द्रव्य-लोक किसी समय लोक-पुरुष की कल्पना का अस्तित्व रहा लोक में छः द्रव्य है, अतः यह द्रव्य-लोक है। होगा। जब कुटिल काल के कुचक्र से आगमों के अनेक छ: द्रव्यों के नाम :अंश विच्छिन्न हुए हैं तो सम्भव है उस समय लोक-पुरुष १. धर्मास्तिकाय - गति सहायक द्रव्य, की कल्पना का अंश भी विच्छिन्न हो गया होगा।
२. अधर्मास्तिकाय-स्थिति सहायक द्रव्य, ___ लोक-पुरुष की कल्पना के समान विराट् पुरुष की ३. आकाशास्तिकाय-आश्रयदाता द्रव्य, कल्पना वैदिक ग्रन्थों में भी मिलती है
४. काल द्रव्य-स्थिति नियन्ता द्रव्य, विराट-पुरुष
५. जीवास्तिकाय-चेतनाशील द्रव्य, भूर्लोकः कल्पितः पद्भ्यां, भूवर्लोकाऽस्य नाभितः । ६. पुद्गलास्तिकाय-मूर्त जड़ द्रव्य, हृदा स्वर्लोक उस्सा, महर्लोको महात्मनः ।। (क) इन छ: द्रव्यों में-एक जीव है, शेष पांच ग्रीवायां जनलोकश्च, तमोलोकः स्तनद वयात। अजीव हैं ।
(ख) इन छ: द्रव्यों में-एक मूर्त है, शेष पांच १. लोकाकाश के आकार को समझाने के लिए श्वेताम्बर अमूर्त हैं। और दिगम्बर आगमों में विविध उपमायें दी गई हैं
(ग) इन छः द्रव्यों में एक काल द्रव्य है, शेष श्वेताम्बर आगम
- पांच अस्तिकाय हैं। । दिगम्बर आगम
(घ) इन छ: द्रव्यों में चार अस्तिकाय-लोक, अधोलोक का आकार | अधोलोक का आकार अलोक के विभाजक हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, उल्टे सराव का] १. वेत्रासन का आकार
जीवास्तिकाय, और पुद्गलास्तिकाय । आकार
(त्रिलोक प्रज्ञप्ति)
धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय-एक-एक द्रव्य (भ. श. ७, उ.१) मध्यलोक का आकार हैं। आकाशास्तिकाय यह भी एक द्रव्य है किन्तु लोक
१. झल्लरो का आकार अलोक दोनों में व्याप्त है। जीवास्तिकाय और पुद्गला२. पल्यंक का आकार २. आधे उध्वं मृदंग का स्तिकाय अनन्त द्रव्य है। (भ. श. ७, उ. १) आकार
(ङ) इन छ: द्रव्यों में से एक काल द्रव्य के प्रदेश नहीं (जबुद्वापप्रज्ञाप्त संग्रह) हैं। क्योंकि अतीत के समय नष्ट हो जाते हैं और
ऊवलोक का आकार भविष्य के समय अनत्पन्न हैं, इसलिए इनका कोई ३. तपाकार का आकार | १. ऊर्ध्व मृदंग का आकार
अस्तित्व नहीं है, केवल वर्तमान का एक समय ऐसा (भ. श. ११, उ. १०) । (त्रिलोकप्रज्ञप्ति)
कतिपय जैन ग्रन्थों में लोक का आकार पुरुष संस्थान के १ पुद्गलास्तिकाय । समान भी बतलाया है-दोनों हाथ कमर पर रखकर तथा २ मुक्त आत्मा को मध्यलोक से, लोक के अग्रभाग तक पहदोनों पैरों को फैलाकर कोई पुरुष खड़ा हो, वैसा ही यह चने में एक समय लगता है। मुक्त आत्मा जब मध्य लोक लोक है।
(लोक प्रकाश १२-३) से एक रज्जु जितनी ऊंचाई तक पहुंचता है, तब तक उसे वैदिक ग्रन्थों में विश्व का आकार विराट् पुरुष के रूप में जितना समय लगता है उतना समय, उस एक समय का लिखा है।
विभाज्य अंश मान लिया जाए तो क्या आपत्ति है ?