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________________ हुआ है ? अनुयोग वर्गीकरण के लाभ गणितानुयोग को सामान्य रूपरेखा ___ इन अनुयोग-विभागों के स्वाध्याय का सुफल यह लोकाकाश-अनन्त पदार्थ सद्भावी-आकाश । होगा कि जिस आकाश में लोक है, वह लोकाकाश है। लोक प्राचीन चिन्तन का किस प्रकार क्रमिक विकास का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है कि-"जो देखा जाता है वह लोक है।" लोक में जो इन्द्रियप्रत्यक्ष पदार्थ हैं, उनके कौन सा पाठ आगम संकलन काल के पश्चात परि- दृष्टा छद्मस्थ/असर्वज्ञ हैं और जो लोक में अतीन्द्रिय वधित या प्रक्षिप्त किया गया है ? पदार्थ हैं, उनके दृष्टा सर्वज्ञ हैं। इस प्रकार लोक दृश्य आगमों के लिपिबद्ध होने के पश्चात कौन सा है अतः सर्वज्ञ और असर्वज्ञ द्वारा देखा जाता है। लोक के आगम विच्छिन्न हुआ और कौन सा नया अंग आगम अनेक पर्यायवाची शब्द हैं-विश्व, संसार आदि । स्थानापन्न हुआ है ? लोक की व्याख्या अनेक प्रकार से की गई है। किस आगम पाठ की कहाँ पूर्ति हुई है ? (१) प्राचीन व्याख्या पद्धति "अनयोग पद्धति" के कोन सा आगम पाठ परमत का मान्यता का है आर नाम से प्रसिद्ध है। इस व्याख्या पति को समझने के कौन सा स्वमत की मान्यता का है ? लिए पूरे अनुयोगद्वार की रचना की गई है। लोक को कौन सा परमत का पाठ भ्रान्ति से स्वमत का मान व्याख्या भी इस अनुयोग पद्धति से की गई है। लिया गया है ? इत्यादि जटिल प्रश्नों की कुछ समाधानकारी (क) १. नामलोक, २. स्थापनालोक ३. द्रव्यलोक । उपलब्धियाँ शोध-निबन्ध लेखकों के लिए यदि उपयोगी (ख) १. द्रव्यलोक, २. क्षेत्रलोक, ३. काललोक । हुईं तो यह श्रम सफल होगा। ४. भावलोक। अनुयोग वर्गीकरण का प्रारम्भ और प्रगति (ग) १. अधोलोक, २. तिर्यक्लोक, ३. ऊर्ध्व गणितानुयोग वर्गीकरण का कार्य स्वर्गीय गुरुदेव के लोक । सान्निध्य में प्रारम्भ किया था। उनके सान्निध्य में ही परिपूर्ण हो गया था और प्रकाशन भी। (घ) १. ज्ञानलोक, २. दर्शनलोक, ३. चारित्र धर्मकथानुयोग का सम्पादन-प्रकाशन बाद में हुआ लोक। (१) नाम लोक। चरणानुयोग का सम्पादन कार्य पूर्ण हो गया है और (२) स्थापना लोक-लोक का आकार अर्थात्प्रकाशन प्रारम्भ हो रहा है। लोक का संस्थान। द्रव्यानुयोग का सम्पादन हो रहा है, प्रकाशन भी अलोकाकाश के मध्य में लोकाकाश है। परन्तु सान्त शीघ्र होने की सम्भावना है। __अस्वस्थ्य शरीर और यथेष्ट अनुकूलताओं के अभाव ससीम है। इसका आकार त्रिसराव सम्पुटाकार है। एक में भी गणितानुयोग का यह द्वितीय संस्करण सम्पन्न सराव (शिकोरा) उल्टा, उस पर एक सराव सुल्टा (सीधा) किया गया है। आशा है, स्वाध्यायशील सज्जन इसके और एक उल्टा रखने से जो आकार बनता है उसे स्वाध्याय से अवश्य लाभ लेंगे। "त्रिसराव" सम्पुटाकार कहते हैं। शास्त्रीय भाषा में संकलन एवं सम्पादन में स्वाध्यायशील महान यह "सुप्रतिष्ठक" आकार कहा जाता है। यह लोक नीचे से विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर से पुनः आत्माओं को जहाँ कहों संशोधन आवश्यक प्रतीत हो विस्तृत है। तो अवश्य सूचित करें। उन सब महान् आत्माओं का मैं सदैव विनम्र भाव लोक-पुरुष और विराट् पुरुष से आभार मानकर संशोधन करने के लिए प्रयत्नशील आगमोत्तरकालीन जैन ग्रन्थों में समस्त लोक रहूँगा। (अधोलोक, मध्यलोक, ऊवलोक) को लोक-पुरुष के रूप
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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