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________________ ३. धर्मकथानुयोग का नामकरण-ज्ञाताधर्मकथा अनुयोग वर्गीकरण का उद्देश्य आदि आगमों के आधार पर हुआ है। विगत दो-चार दशकों में प्राच्यविद्या प्रेमियों ने ४. गणितानुयोग का नामकरण-चन्द्र-सूर्य-प्रज्ञप्ति प्राकृत भाषा का महत्व समझा है और कतिपय विश्वआदि को गणित के आधार पर हुआ है। विद्यालयों में प्राकृत अध्ययन केन्द्र स्थापित भी हए हैं, ___ आगमोत्तर कालीन ग्रन्थों में तथा जैनागमों की उप- प्राकृत टेक्स्ट सोसायटियों से महत्वपूर्ण प्राचीन-ग्रन्थ लब्ध टीका, नियुक्ति तथा भाष्य आदि में चारों अनुयोगों आधुनिक शैली से सम्पादित होकर प्रकाशित हुए हैं। के नाम और अनुयोगों के अनुसार आगमों का विभाजन कुछ प्रकाशन संस्थान शोधपूर्ण एवं समीक्षात्मक जैनामिलता है। गमों के प्रकाशन कर रहे हैं। किन्तु शोध निबन्धों के अनुयोग वर्गीकरण के ऐतिहासिक तथ्यों का अन्वेषण आधुनिक लेखक विषय प्रतिपादन के लिए सन्दर्भ ग्रन्थों __ भगवान महावीर से लेकर श्री आर्य वज्र पर्यन्त के रूप में यदि समस्त जैनागमों को देखना चाहें, तो जैनागमों में वर्णित विविध विषय इन चार अनुयोगों में उन्हें आगमों के ये संस्करण देखकर निराशा ही होती विभक्त नहीं हुए थे। क्योंकि प्रत्येक पद में चारों अनु- है, क्योंकि आधुनिक शैली से सम्पादित सभी आगमों का योगों का तथा सातों नयों का चिन्तन किया जाता था मुद्रण अद्यावधि कहीं से नहीं हुआ है। इसलिए विभाजन की कोई उपादेयता ही नहीं थी, बालगों की व्यवस्था भी सर्वत्र प्रमोनीन किन्तु ह्रास-काल के प्रभाव से जब महान मेधावियों को न होने से शोध-निबन्ध लेखकों को यथेष्ट लाभ नहीं भी एक पद में चारों अनुयोगों तथा सातों नयों का मिल पाता। यदि साहसी शोध निबन्ध लेखक किसी चिन्तन कठिन प्रतीत होने लगा तो श्री आर्यरक्षित ने प्रकार सभी जैनागमों का संग्रह कर भी लें तो उनमें से आगमों में प्रतिपादित समस्त विषयों (पदों) को चार अभीष्ट विषय का परिपूर्ण शोध कर सकना उनके लिए अनुयोगों में विभक्त कर दिया था। कितना कठिन होता है इसका अनुभव तो शोध निबन्ध इस अनुयोग विभाजन की क्या रूपरेखा थी? लेखकों को ही हो सकता है। एक विषय के पाठों को विषय संकलन किस क्रम से किया गया था? एकत्रित करने में कितने समय व श्रम की अपेक्षा होती इस अनुयोग विभाजन को परंपरा कब विनष्ट हुई? है, यह भी एक असाधारण तथ्य है। इत्यादि ऐतिहासिक तथ्यों के अन्वेषण का उपक्रम जैनागम सम्बन्धित शोध-निबन्ध के लेखक को प्रौढ अब तक किसी ने किया या नहीं? यह जानने में नहीं आगम-अभ्यासी निर्देशक का मिलना भी उतना ही कठिन आया है। है जितना आधुनिक शैली से सम्पादित समस्त आगमों __ नन्दी-सूत्र की स्थविरावली में अनेक अनुयोगधर का मिलना। इन सब समस्याओं में उलझकर अनेक आचार्यों का उल्लेख है। ये आचार्य चार अनुयोग-द्वार शोध-निबन्ध लेखक विषय परिवर्तन का संकल्प कर लेते वालो अनुयोग-व्याख्या पद्धति के धारक थे या द्रव्यानु- हैं। या विषय का यथेष्ट प्रतिपादन नहीं कर पाते हैं, योग आदि चार अनुयोगों के वर्गीकरण के धारक थे? इसलिए शोध कार्य अधूरा रह जाता है। इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक तथ्यों का अन्वेषण होना इत्यादि अनेक अनपेक्षणीय तथ्यों से प्रेरित होकर आवश्यक है। मैंने जैनागमों के समस्त विषयों का वर्गीकरण करके उसे चार अनुयोगों में विभक्त करने का संकल्प किया है। १ अनुयोगः प्रारभ्यते-स च चतुर्दा यद्यपि अनुयोग वर्गीकरण का कार्य समूह-साध्य एवं श्रम१. धर्मकथानुयोगः उत्तराध्ययनादिकः साध्य है, साथ ही अद्यावधि उपलब्ध समस्त आगमों के २. गणितानुयोगः सूर्यप्रज्ञप्त्यादिकः प्रकाशन तथा अनेक सन्दर्भ ग्रन्थों का संग्रह भी अपेक्षित ३. द्रव्यानुयोगः पूर्वाणि सम्मत्यादिकश्च है। फिर भी उपलब्ध साधनों एव उदार सहयोगियों के ४. चरण-करणानुयोगश्च आचारांगादिक: सहयोग से जितना कर सका है या कर रहा हूँ उसे -जम्बूद्वीप. वृत्ति. पत्र १, २, क्रमशः प्रस्तुत करते रहने का संकल्प है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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