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________________ सूत्र ७-८ लोक गणितानुयोग ५ "जया णं देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे इहमागच्छेज्जा "हे देवानुप्रिय ! जब श्रमण भगवान महावीर यहाँ आवेइह समोसरिज्जा, इहेव चंपाए गयरीए बहिया पुण्णभद्दे यहाँ ठहरें, इस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में संयमियों चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ताणं अरहा जिणे केवली के योग्य आवासस्थान को ग्रहण करके श्रमणवृन्द से परिवृत समणगणपरिवुडे, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा अर्हन्त जिन केवली संयम और तप से आत्मा को भावित करते तया णं तुम मम एयम8 निवेदिज्जासि" ति कटु हुए रहें, तब तुम यह सूचना मुझे देना।" इस प्रकार कहकर उस विसज्जिए। (प्रवृत्ति-निवेदक) को विसर्जित किया। -ओव सु० १२ । भगवो चंपाए आगमणं भगवान का चम्पा में आगमन '७ : तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए ७ : तब श्रमण भगवान महावीर प्रकाशयुक्त रात्रि में (यावत्) (जाव) उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते हजार किरण वाले, दिनकर के तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के उदय जेणेव चंपा णयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव वणसंडे, होने पर जहाँ चम्पा नगरी थी-जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, जहाँ वनजेणेव असोगवरपायवे, जेणेव पुढविसिलापट्टए तेणेव उवा- खण्ड था, जहाँ अशोक वृक्ष था और जहाँ पृथ्वी शिलापट था गच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ताणं वहाँ पधारे, पधार कर संयम-मार्ग के अनुकूल आवास को ग्रहण असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि पुरत्याभिमुहे करके, अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी शिलापट पर पूर्वाभिमुख होकर पलियकनिसन्ने अरहा जिणे केवली समणगणपरिवुडे तवसा पल्यंकासन से बैठे और वे श्रमणवृन्द से परिवृत अर्हन्त जिन अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । केवली संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए रहे । -ओव० सु० १३ । भगवओ परिवारो देवागमणं य भगवान का परिवार और देवताओं का आगमन : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स ८ : उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो (जाव) णिरवकखा साहू अन्तेवासी बहुत से श्रमण भगवन्त (यावत्) आकांक्षा-रहित साधक णिहुया चरति धम्म। निश्चल चित्त से धर्म का आचरण करते हैं । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के असुरकुमारा देवा अंतियं पाउभवित्था (जाव) पज्जुवासंति। समीप अनेक असुरकुमार देव आये (यावत्) पर्युपासना करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर के असुरिंदज्जिया भवणवासी देवा अंतियं पाउब्भवित्था (जाव) समीप असुरेन्द्र को छोड़कर अनेक भवनवासी देव प्रकट हुए पज्जुवासंति। (यावत्) पर्युपासना करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के समीप वाणमंतरा देवा अंतियं पाउभवित्था (जाव) पज्जुवासंति। अनेक वाणव्यंतर देव प्रकट हुए (यावत्) वे पर्युपासना करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के जोइसिया देवा अंतियं पाउन्भवित्था (जाव) पज्जुवासंति। समीप अनेक ज्योतिष्क देव प्रकट हुए (यावत्) वे पर्युपासना करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समगस्स भगवओ महावीरस्स बहवे उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के समीप वेमाणिया देवा अंतियं पाउभवित्था (जाव) पज्जुवासंति। अनेक वैमानिक देव प्रकट हुए (यावत्) वे पर्युपासना करने लगे। --ओव० सु० १४-२६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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