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________________ सूत्र २-४ लोक गणितानुयोग ३ "उत्थाणिया उत्थानिका चंपानयरी चम्पानगरी २: तेणं कालेणं तेणं समए चंपा णाम णयरी होत्था.... २ : उस काल और उस समय में 'चम्पा' नाम की नगरी थी.. तीसे गं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए उस चम्पा नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा के भाग मेंएत्थ गं पुण्णभद्दे णामं चेइए होत्था.. . यहाँ 'पूर्णभद्र" नाम का चैत्य (व्यंतरायतन) था"" से गं पुण्णभद्दे चेदए एक्केणं महया वणसंडेणं सव्वओ समंता वह पूर्णभद्र चैत्य एक बहुत बड़े वनखण्ड से, (दिशा विदिशा संपरिक्खित्ते " में) चारों ओर से घिरा हुआ था. तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एक्के उस वनखण्ड के ठीक मध्य भाग में यहाँ एक विशाल असोगवरपायवे पण्णत्ते .. अशोक वृक्ष कहा गया है." तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसि खंधसमल्लीणे एत्थ णं उस अशोक वृक्ष के नीचे उसके तने के कुछ समीप-यहाँ महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णते... - पृथ्वी का एक बड़ा शिलापट्टक कहा गया है" -ओव० सु० १-५। चंपाए कुणियो राया चम्पा में कोणिक राजा ३ : तत्थ णं चंपाए णयरीए कूणिए णामं राया परिवसइ... ३ : उस चम्पा नगरी में 'कौणिक' नाम का राजा रहता था." तस्स ण कोणियस्स रणो धारिणी णामं देवी होत्था .. उस कोणिक राजा के धारिणी नामक रानी थी.... तस्स णं कोणियस्त रणो एक्के पुरिसे विउलकयवित्तिए उस कोणिक राजा का एक पुरुष भगवान की प्रवृत्ति जानने भगवओ पवित्तिवाउए भगवओ तद्देवसियं पवित्ति णिवेदेइ। के लिए नियुक्त था, उसे बहुत आजीविका दी जाती थी । वह .... . भगवान की दैनिक प्रवृत्ति उस (कौणिक) को निवेदन करता था। तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा , उस पुरुष के अन्य अनेक पुरुष (भृत्य) थे, उन्हें वह भोजन तथा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्दवसियं पवित्ति णिवेदेति। वेतन देता. था, जो भगवान की प्रवृत्ति जानने के लिए नियुक्त किये गये थे और वे उसे भगवान की दैनिक प्रवृत्ति निवेदन करते थे। तेणं कालेणं तेणं समएणं कोगिए राया भंसारपुते उस काल और उस समय में भंभसारपुत्र राजा कोणिक बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेग-गणनायग-दंडनायग- बाहरी सभाभवन में अनेक गणनायक, दण्डनायक, युवराज, राईसर-तलवर माडंबिय-कोडुम्बिय-मंति-महामंति-गणग-दोवा- तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, मन्त्री, महामन्त्री, गणक, दौवारिक, रिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह- अमात्य, चेट (दास), पीठमर्दक (सिंहासन सेवक), नागरिक, दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे विहरइ। . कर्मचारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपालों से -ओव० सु० ६-६ । घिरा हुआ था। चंपाए भगवओ महावीरस्सागमणसंकप्पो चम्पा में भगवान महावीर का आगमन-संकल्प ४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे (जाव) ४ : उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर (यावत्) पृथ्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं क्रमशः विचरते हुए एक ग्राम से दूसरे ग्राम को गमन करते हुए विहरमाणे चंपाए णयरीए उवणगरग्गामं बहिया उवागए चंपं और सुखपूर्वक विहार करते हुए चम्पा नगरी के बाहर उपनगर नर पुण्णभद्दचे इयं समोसरिउकामे । में पधारे तथा वहाँ से चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में आना -ओव० सु०६-१०। चाहते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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