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गणितामुयोग : भूमिका
(घ) 'भारतवर्ष' का नामकरण जम्बूद्वीप के प्रथम वर्ष या क्षेत्र का नाम 'भारतवर्ष' है। अर्थात्-ऋषभ से भरत पैदा हुआ, जो उनके सौ पुत्रों में इसका यह नाम कैसे पड़ा, इस विषय में जैन मान्यता है कि आदि सर्व श्रेष्ठ था। उसका राज्याभिषेक करके ऋषभ महानुभाव तीर्थकर भ० ऋषभदेव के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ आदि पुत्र भरत जो प्रवजित होकर पुलहाश्रम चले गये। जम्बूद्वीप का हिम नामक कि प्रथम चक्रवर्ती थे, उन्होंने इस क्षेत्र का सर्वप्रथम राज्य-सुख दक्षिण क्षेत्र पिता ने भरत को दिया। इसके कारण उस महात्मा भोगा, इस कारण इस क्षेत्र का नाम 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध हुआ। के नाम से यह क्षेत्र 'भारतवर्ष' कहलाने लगा। श्रीमदुमास्वामि-रचित तत्त्वार्थ-सूत्र के महान् भाष्यकार श्रीमदकलंक देव ने तीसरे अध्याय के दशवें सूत्र की
इसके अतिरिक्त जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति में 'भरतक्षेत्र' इस नाम के व्याख्या करते हुए लिखा है :
दो कारण और भी प्रतिपादित किये गये हैं-प्रथम इस क्षेत्र के "भरतक्षत्रिययोगाद्वर्षों भरतः विजयाधस्य दक्षिणतो जलधे
अधिष्ठायक देव का नाम भरत है । दूसरा यह नाम रुत्तरतः गंगा-सिन्ध्वोर्बहुमध्यदेशभागे विनीता नाम नगरी ।
शाश्वत है। तस्यामुत्पन्न: सर्व राजलक्षणसम्पन्नो भरतो नामाद्यश्चक्रधरः यहाँ यह भी स्मरणीय है कि प्रत्येक उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी षट्खण्डाधिपति: अवसपिण्या राज्य विभागकाले तेनार्वी भुक्तत्वात्, काल के प्रथम चक्रवर्ती का नाम भरत ही होता है। इन सब तद्योगाद् 'भरत' इत्यात्यायते वर्षः ।"
कारणों से यह क्षेत्र भरत नाम से प्रसिद्ध है। हिन्दुओं के प्रसिद्ध मार्कण्डेय-पुराण में भी व्यास महर्षि ने उक्त कथन का ही समर्थन करते हुए तिरेपनवें अध्याय में
कुछ लोग दुष्यन्त-पुत्र भरत के नाम से इस क्षेत्र का नामकहा है
करण हुआ कहते हैं। किन्तु इस भरत का व्यक्तित्व इतना ऋषभाद् भरतो जज्ञ वीरः पुत्रंशताद्वरः ।
असाधारण नहीं रहा है कि उसके नाम पर इस क्षेत्र की प्रसिद्धि सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं, महाप्रावाज्यमास्थितः ॥४१॥
मानी जाय । इसके अतिरिक्त इससे पूर्व इस क्षेत्र का नाम क्या तपस्तेपे महाभागः पुलहाश्रमसंश्रयः ।
था, यह अब तक किसी भी इतिहास-बेत्ता ने प्रकट नहीं किया हिमाढे दक्षिणं वर्ष, भरताय पिता ददौ ॥४२॥ है। इसी कारण अब विचारशील इतिहासज्ञों ने इस अभिमत तस्मात्त भारतं वर्ष, तस्य नाम्ना महात्मनः ।।४३।। को अस्वीकार कर दिया है। (ङ) वैज्ञानिकों के मतानुसार आधुनिक विश्व
१- भूमण्डल जिस पृथ्वी पर हम निवास करते हैं वह मिट्टी पत्थर का लता पाकर नाना प्रकार की धातु-उपधातुओं एवं तरल पदार्थों एक नारगी के समान चपटा गोला है । इसका व्यास लगभग आठ में परिवर्तित हो गया है जो हमें पत्थर, कोयला, लोहा, सोना, हजार मील (8288--२६-७) और परिधि लगभग पचीस चाँदी आदि, तथा जल और वायु मण्डल के रूप में दिखाई देता हजार मील (82888-४२) है।
है। जल और वायु ही सूर्य के ताप से मेघ आदि का रूप धारण वैज्ञानिकों के मतानुसार आज से खरबों वर्ष पूर्व किसी कर लेते हैं । यह वायुमण्डल पृथ्वी के धरातल से उत्तरोत्तर समय यह ज्वालामयी अग्नि का गोला था। यह अग्नि धीरे- विरल होते हुए लगभग ४०० मील तक फैला हुआ अनुमान धीरे ठण्डी होती गई और अब यद्यपि पृथ्वी का धरातल सर्वत्र किया जाता है। पृथ्वी का धरातल भी सर्वत्र समान नहीं है। शीतल हो चुका है, तथापि अभी इसके गर्भ में अग्नि तीव्रता से पृथ्वीतल का उच्चतम भाग हिमालय का गौरीशंकर शिखर जल रही है, जिसके कारण पृथ्वी का धरातल भी कुछ उष्णता (माउण्ट एवरेस्ट) माना जाता है, जो समुद्र तल से उनतीस को लिए हुए है। नीचे की ओर खुदाई करने पर उत्तरोत्तर हजार फुट, अर्थात् लगभग साढ़े पांच मील ऊँचा है। समुद्र की अधिक उष्णता पाई जाती है। कभी-कभी यही भूगर्भ की ज्वाला अधिकतम गहराई ३५,४०० फुट अर्थात् लगभग छह मील तक कुपित होकर भूकम्प उत्पन्न कर देती है और कभी ज्वालामुखी नापी जा चुकी है । इस प्रकार पृथ्वी तल की ऊंचाई-नीचाई में के रूप में भी फूट निकलती है, जिससे पर्वत, भूमि, नदी, समुद्र साढ़े ग्यारह मील का अन्तर पाया जाता है। आदि के जल और स्थल भागों में परिवर्तन होता रहता है। पृथ्वी की ठंडी होकर जमी हुई परत सत्तर मील समझी इसी अग्ति के ताप से पृथ्वी का द्रव्य यथायोग्य दबाव और शीत• जाती है । इसकी द्रव्य-रचना के अध्ययन से अनुमान लगाया