________________
गणितानुयोग : भूमिका
८९
११--कर्मभूमि और भोगभूमि
भावार्थ- इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि जिस प्रकार जैनागमों में कर्मभूमि और भोगभूमि का वर्णन यहाँ पर स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है। आया है उसी प्रकार हिन्दू-पुराणों में भी मिलता है, विष्ण-पूराण भारतभूमि के सिवाय अन्य सर्व क्षेत्र की भूमियाँ तो भोग-भमियाँ के द्वितीयांश के तीसरे अध्याय में कर्मभूमि का वर्णन इस प्रकार
हैं। क्योंकि वहाँ पर रहने वाले जीव सदाकाल बिना किसी रोगकिया गया है
शोक बाधा के भोगों का उपभोग करते रहते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के ५५वें अध्याय के श्लोक २०.२१ में भी उत्तरं यत्समुद्रस्यः हिमाद्र श्च दक्षिणम् ।
भोगभूमि और कर्मभूमि का वर्णन मिलता है। वर्ष तारतं नाम भारती यत्र संततिः ॥१॥
१२-उत्सपिणी अवसर्पिणी काल नवयोजनसाहस्रो विस्तारोऽस्य महामुने ! । कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्गञ्च गच्छताम् ॥२॥
जैनागमों में काल के परिवर्तन स्वरूप का वर्णन करते हुए
बतलाया गया है कि जिस समय मनुष्य की आयु, सम्पत्ति, अतः सम्प्राप्यतेस्वर्गो मुक्तिमस्मात् प्रायन्ति वै ।
सुख-समृद्धि एवं भोगोपभोगों की वृद्धि हो उसे उत्सर्पिणी काल तिर्यक्त्वं नरकं चापि यान्त्यतः पुरुषा मुने ॥३॥
कहते हैं और जिस समय उक्त वस्तुओं की हानि या ह्रास हो तो इतः स्वर्गश्च मोक्षश्च, मध्यं चान्तश्च गम्यते ।
उसे अवसर्पिणीकाल कहते हैं। दोनों प्रकार के कालों का परित खल्वन्यत्र मानां, कर्मभूमौ विधीयते ॥४॥
वर्तन कर्मभूमि वाली पृथ्वियों में ही होता है-अन्यत्र भोग भूमि भावार्थ-समुद्र के उत्तर और हिमाद्रि के दक्षिण में भारत- वाली पृथ्वियों में नहीं । विष्णु पुराण में भी इसका उल्लेख इस वर्ष अवस्थित है। इसका विस्तार नौ हजार योजन विस्तृत है। प्रकार से मिलता हैयह स्वर्ग और मोक्ष जाने वाले पुरुषों की कर्मभूमि है। इसी
अवपिणी न तेषां वै नचोत्सपिणी द्विज ! । स्थान से यतः मनुष्य स्वर्ग और मुक्ति प्राप्त करते हैं और यहीं
नत्वेषाऽस्ति युगावस्था तेषु स्थानेषु सप्तसु ॥ से तिर्यंच और नरक-गति में भी जाते हैं-अतः कर्मभूमि
अर्थात्-हे द्विज ! जम्बूदीपस्थ अन्य सात क्षेत्रों में है। इस भारतवर्ष के सिवाय अन्य क्षेत्र में कर्मभूमि नहीं है।
भारतवर्ष के समान न काल की अवसर्पिणी अवस्था है और न अग्नि-पुराण के एक सौ अठारहवें अध्याय के द्वितीय श्लोक
श्लोक उत्सर्पिणी अवस्था हो । में भी भारतवर्ष को कर्मभूमि कहा गया है । यथा
१३-वर्षधर पर्वतों पर सरोवर कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्गञ्च गच्छताम् ।
जैन मान्यता के समान मार्कण्डेय पुराण में भी वर्षधर पर्वतों विष्णु-पुराण के अन्त में कर्मभूमि का उपसंहार करते हुए के ऊपर सरोवरों का तथा उनमें कमलों का उल्लेख इस प्रकार लिखा है- कि भारतवर्ष में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैरहते हैं तथा वे क्रमशः पूजन-पाठ, आयुध-धारण, वाणिज्य-कर्म एतेषां पर्वतानां तु द्रोण्योऽतीव मनोहराः । और सेवादि कार्य करते हैं । यथा
वनरमलपानीयः सरोभिरूपशोभिताः॥ ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्या मध्ये शूद्राश्च भागशः।
(अ० ५५ श्लोकः १४--१५) इज्याऽऽयुध्वाणिज्याद्य वर्तयन्तो व्यवस्थिताः ॥॥
उक्त सरोवरों में कमलों का उल्लेख इस प्रकार हैइस अध्याय का उपसंहार करते हुए कहा गया है कि तदेतत् पार्थिवं पद्म चतुष्पत्रं मयोदितम् । भारतवर्ष के सिवाय अन्य सब क्षेत्रों में भोगभूमि है । यथा
(अ० ५५ श्लोक २०) अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने ।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन मान्यता के समान ही पुराण. यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोऽन्या भोगभूमयः ।।
कार ने भी पद्म को पार्थिव माना है ।