SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ गणितानुयोग : भूमिका तीसरा " छठा " ५-तुलना और समीक्षा यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि शिखरी एवं शृंगी ये दोनों विष्णु-पुराण के आधार पर जो लोक स्थिति या भूगोल का एकार्थक नाम हैं । पाँचवें रुक्मी पर्वत का वर्ण जैन मान्यतानुसार वर्णन किया है उसका हम जैनसम्मत लोक के वर्णन से मिलान श्वेत ही माना गया है जो वैदिक मान्यता के श्वेत-पर्वत का ही करते हैं तो अनेक तथ्य सामने आते हैं। जिनका दोनों मान्यताओं बोधक है। केवल महाहिमवान के स्थान पर हेमकट नाम के नाम निर्देश के साथ यहाँ उल्लेख किया जाता है नवीन है। द्वीप जैन और वैदिक दोनों ही मान्यताओं के अनुसार मेरु-पर्वत जैन मान्यता वैदिक मान्यता जम्बूद्वीप के मध्य भाग में स्थित है। अन्तर केवल ऊँचाई का १. द्वीप, समुद्र असंख्यात द्वीप, समुद्र ७ द्वीप का है । वैदिक मान्यता के अनुसार मेरु चौरासी हजार योजन २. प्रथम द्वीप जम्बूद्वीप प्रथम द्वीप जम्बदीप ऊंचा है। जबकि जैनमान्यता इसे १ लाख योजन ऊँचा मानती है। ३. कुशक पन्द्रहवां द्वीप कुश चौथा द्वीप ७-नदियाँ ४. क्रौंच सोलहवा द्वीप' क्रौंच पांचवा द्वीप वैदिक मान्यतानुसार ऊपर जो नदियों के नाम दिये गये हैं" ५. पुष्कर तीसरा द्वीप पुष्कर सातवाँ द्वीप वे प्रायः सब आधुनिक नदियों के नाम हैं। जैन मान्यतानुसार समुद्र जम्बू-द्वीप के सात क्षेत्रों में १४ प्रधान नदियाँ हैं। उनके नाम १. लवणोद प्रथम समुद्र लवणोद प्रथम समुद्र इस प्रकार हैं-गंगा, सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता,. २. वारुणी रस चौथा समुद्र मदिरा रस सीता-सीतोदा, नारी-नारीकान्ता, स्वर्णकूला-रूप्यकूला, रक्ता३. क्षीर सागर पाँचवा " दूधरस और रक्तोदा । भारतवर्ष आदि क्षेत्रों में क्रमशः उक्त दो नदियाँ ४. घृतवर छठा " मधुर रस सातवां " बहती हैं। उनमें से पहली नदी पूर्व के समुद्र और दूसरी नदी ५. इक्षुरस सातवां " इक्षुरस दूसरा " पश्चिम के समुद्र में जाकर मिलती है। इस प्रकार दोनों ही क्षेत्र मान्यताओं वाली नदियों के नामों में कोई समानता नहीं है। १. भारतवर्ष १. भारतवर्ष -नरक-स्थिति २. हैमवत २. किम्पुरुष जैन मान्यता के समान ही वैदिक मान्यता में भी अत्यन्त ३. हरिवर्ष ३. हरिवर्ष दुःख भोगने वाले नारकी-जीवों का अवस्थान इस धरातल के नीचे ४. विदेह ४. इलावृत माना गया है। दोनों के कुछ नामों में समानता है, और कुछ . ५. रम्यक ५. रम्यक नामों में विषमता है। ६. हैरण्यवत ६. हिरण्मय -ज्योतिर्लोक ७. ऐरावत ७. उत्तर-कुरु जैन मान्यतानुसार सम-भूमितल से सूर्य-चन्द्र आदि की यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन मान्यतानुसार उत्तर-कुरु विदेह- ऊँचाई का जो उल्लेख है उससे वैदिक मान्यता में बहुत भारी क्षेत्र का एक भाग है। इलावत ऐरावत का ही रूपान्तर है। अन्तर है । जो दोनों के पूर्व वर्णनों से पाठक भली भांति जान हाँ, दूसरे हैमवत क्षेत्र के स्थान पर किम्पुरुष नाम अवश्य नया है। १०-स्वर्गलोक ६-पर्वत दोनों ही मान्यताओं के अनुसार स्वर्गलोक की स्थिति जैन परम्परा वैदिक परम्परा ज्योतिर्लोक के ऊपर मानी गई है । वैदिक मान्यता में स्वर्गलोक १. हिमवान १. हिमवान् का नाम महर्लोक दिया गया है तथा वहाँ के निवासियों को जैन २. महाहिमवान २. हेमकूट मान्यता के समान कल्पवासी कहा गया है। वैदिक मान्यता में ३. निषध ३. निषध स्वर्गलोक की स्थिति सूर्य और ध्रव के मध्य में चौदह लाख ४. नील ४. नील योजन प्रमाण क्षेत्र में है । जबकि जैन मान्यता से वह सुमेरु के ५. रुक्मी ५. श्वेत ऊपर से लेकर असंख्यात योजन ऊपरी क्षेत्र तक बतलाई गई: ६. शिखरी ६. शृंगी १-२. तिलोयपण्णत्ती अ...।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy