________________
गणितानुयोग : भूमिका
८७
दधिरसोद समुद्र, शाकद्वीप और क्षीरसमुद्र अवस्थित हैं। ये सभी महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विलोहित, रुधिर, वैतरणी, कृमीश, द्वीप अपने पूर्ववर्ती द्वीप की अपेक्षा दूने विस्तार वाले हैं और कृमि-भोजन, असिपत्रवन, कृष्ण, अलाभक्ष, दारुण, पूयवह, वन्हिसमुद्रों का विस्तार अपने-अपने द्वीप के समान है। इन द्वीपों की ज्वाल अधःशिरा, सैदेस, कालसूत्र, तम, आवीचि, श्वभोजन, रचना प्लक्षद्वीप के समान है।
अप्रतिष्ण और अग्रवि, इत्यादि नाम वाले अनेक महान भयानक क्षीरसमुद्र को घेरकर सातवां पुष्कर-द्वीप अवस्थित है। नरक हैं। इनमें पापी जीव मरकर जन्म लेते हैं । वे वहाँ से "इसके ठीक मध्य-भाग में गोलाकार वाला मानसोत्तर पर्वत है।
निकल कर क्रमशः स्थावर कृमि, जलचर, मनुष्य और देव आदि इसके बाहरी भाग का नाम महावीर-वर्ष और भीतरी भाग का हात ह । जतन जाव स्वग में है उतने हा जीव नरका में भी नाम धातकी वर्ष है। इस द्वीप में रहने वाले लोग भी रोग-शोक, रहते हैं।' "एवं राग-द्वेष से रहित होते हैं । वहाँ न ऊँच नीच का भेद है,
३-ज्योतिर्लोक और न वर्णाश्रम व्यवस्था ही है। इस पुष्कर द्वीप में नदियाँ और पर्वत भी नहीं हैं।
__ भूमि से १ लाख योजन दूरी पर सौर-मण्डल है। इससे १लाख इस द्वीप को सर्व ओर से घेरकर मधुरोदक समुद्र अवस्थित
योजन ऊपर चन्द्रमण्डल, इससे १ लाख योजन ऊपर नक्षत्रहै। इससे आगे प्राणियों का निवास नहीं है । मधुरोदक समुद्र से
मण्डल, इससे २ लाख योजन ऊपर बुध, इससे २ लाख योजन आगे उससे दूने विस्तार वाली स्वर्णमयी भूमि है । उसके आगे
ऊपर शुक्र , इससे २ लाख योजन ऊपर मंगल, इससे २ लाख १० हजार योजन विस्तृत और इतना ही ऊँचा, लोकालोक पर्वत
योजन ऊपर वृहस्पति, इससे २ लाख योजन ऊपर शनि, इससे है । उसको चारों ओर से वेष्टित करके तमस्तम स्थित है। इस
१ लाख योजन ऊपर सप्तर्षिमण्डल तथा इससे १ लाख योजन अण्डकटाह के साथ टायुक्त द्वीप-समूहों वाला यह समस्त भूमण्डल
ऊपर ध्रुवतारा स्थित है। ५० करोड़ योजन विस्तार वाला है और इसकी ऊँचाई ..
४-महर्लोक (स्वर्गलोक) हजार योजन है।
ध्रव से १ करोड़ योजन ऊपर जाकर महर्लोक है, यहाँ कल्प इस भूमण्डल के नीचे दस-दस हजार योजन के ७ पाताल
काल तक जीवित रहने वाले कल्पवासियों का निवास है। इससे हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं-अतल, वितल, नितल, गभस्ति
२ करोड़ योजन ऊपर जनलोक है यहाँ नन्दनादि से सहित मत, महातल, सूतल, और पाताल । ये क्रमशः शुक्ल, कृष्ण, अरुण,
ब्रह्माजी के प्रसिद्ध पुत्र रहते हैं। इससे ८ करोड़ योजन ऊपर पीत, शर्करा, शैल और काञ्चन स्वरूप हैं । यहाँ उत्तम भवनों
तपलोक है । यहाँ वैराज देव निवास करते हैं । इससे १२ करोड़ से युक्त भूमियाँ हैं और यहाँ दानव, दैत्य, यक्ष, एवं नाग आदि
योजन ऊपर सत्यलोक है, यहां कभी न मरने वाले अमर (अपु' निवास करते हैं।
नमरिक) रहते हैं । इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं । भूमि (भूलोक) पातालों के नीचे विष्णु भगवान का शेष नामक तामस शरीर
और सूर्य के मध्य में सिद्धजनों और मुनिजनों में सेवित स्थान स्थित है जो अनन्त कहलाता है। यह शरीर सहस्र-फणों से
भुवर्लोक कहलाता है। सूर्य और ध्रव के मध्य चौदह लाख • संयुक्त होकर समस्त भूमण्डल को धारण करके पाताल-मूल में
योजन प्रमाण क्षेत्र स्वर्लोक नाम से प्रसिद्ध है । अवस्थित है । कल्पान्त के समय इसके मुख से निकली हुई संकर्षात्मक, रुद्र विषाग्नि-शिखा तीनों लोकों का भक्षण करती भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक, ये तीनों लोक कृतक, तथा
जनलोक, तपलोक और सत्यलोक, ये तीन लोक अकृतक है। २-नरक-लोक
इन दोनों लोकों के बीच मे महर्लोक है । यह कल्पांत मे जन-शून्य पृथ्वी और जल के नीचे रौरव, सूकर, रोध, ताल, विशासन हो जाता है, किन्तु सर्वथा नष्ट नहीं होता।10
४.
१. विष्णु पुराण द्वितीय अंश चतुर्थ अध्याय, श्लोक २०-७२ ३. विष्णु पुराण द्वितीय अंश चतुर्थ अध्याय. श्लोक ६३-६६
पंचम "
षष्ठम् ८. " "
सप्तम " " षष्ठम्
२ विष्णु पुराण द्वितीय अंश चतुर्थ अध्याय श्लोक ७३.८०
पंचम " " २-४ १३ १५-१६-२०। १-६७. " " षष्ठम " ३४ २-६६. विष्णु पुराण द्वितीयांश षष्ठम् बध्याय श्लोक १२-१८ १९-२०
"
६.