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________________ गणितानुयोग : भूमिकः ९१ गया है कि उसे जमे हुए अरबों खरबों वर्ष हो गये हैं । सजीव उत्तरी ध्रुव चौथा, पांचवां दक्षिणी ध्रुव । इनके अतिरिक्त अनेक तत्व के चिह्न केवल चौंतीस मील की ऊपरी परत में पाये जाते छोटे-मोटे द्वीप भी हैं । यह भी अनुमान किया जाता है कि सुदूर हैं । जिससे अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर जीव-तत्त्व पूर्व में सम्भवतः ये प्रमुख भूमि-भाग परस्पर जुड़े हुए थे । उत्तरी उत्पन्न हुए दो करोड़ वर्ष से अधिक समय नहीं हुआ है। इसमें दक्षिणी अमेरिका की पूर्वी समुद्र तरीय रेखा ऐसी दिखाई देती है भी मनुष्य के विकास के चिह्न केवल एक करोड़ वर्ष के भीतर कि वह यूरोप-अफ्रीका की पश्चिमी समुद्र-तटीय रेखा के साथ ही अनुमान किये जाते हैं। मिलकर ठीक बैठ सकती है । तथा हिन्द-महासागर के अनेक द्वीप पृथ्वी तल के ठंडे हो जाने के पश्चात् उस पर आधुनिक समूह की शृंखला एशिया खण्ड को आस्ट्रेलिया के साथ जोड़ती जीव-शास्त्र के अनुसार जीवन का विकास इस क्रम से हुआ-- हुई दिखाई देती है । वर्तमान में नहरें खोदकर अफीका का एशियासर्वप्रथम स्थिर जल के ऊपर जीव-कोश प्रकट हुए, जो यूरोप भूमि खण्ड से, तथा उत्तरी अमेरिका का दक्षिणी अमेरिका पाषाणादि जड़ पदार्थों से मुख्यतया तीन बातों में भिन्न थे । एक से भूमि-सम्बन्ध तोड़ दिया गया है । इन भूमि-खण्डों का आकार, तो वे आहार ग्रहण करते और बढ़ते थे। दूसरे वे इधर-उधर परिमाण और स्थिति परस्पर अत्यन्त विषम है। चल भी सकते थे । और तीसरे वे अपने ही तुल्य अन्य कोश भी भारतवर्ष एशिया-खण्ड का दक्षिणी-पूर्वी भाग है । यह त्रिकोउत्पन्न कर सकते थे । काल-क्रम से इनमें से कुछ कोश भूमि में ___णाकार है । दक्षिणी कोण लंका द्वीप को प्रायः स्पर्श करता है। जड़ जमाकर स्थावरकाय वनस्पति बन गये, और कुछ जल म वहां से भारतवर्ष की सीमा उत्तर की ओर पूर्व-पश्चिम दिशाओं ही विकसित होते-होते मत्स्य बन गये। क्रमश: धीरे-धीरे ऐसे में फैलती हई चली गई है और हिमालय पर्वत की श्रेणियों पर वनस्पति और मेंढक आदि प्राणी उत्पन्न हुए, जो जल में ही नहीं, पर जाकर समाप्त होती है। भारत का पूर्व-पश्चिम और उत्तरकिन्तु स्थल पर भी श्वासोच्छ्वास ग्रहण कर सकते थे। इन्हीं दक्षिणी विस्तार लगभग दो-दो हजार मील का है । इसकी उत्तरी स्थल प्राणियों में से उदर के बल रेंगकर चलने वाले केंचुआ सीमा पर हिमालय पर्वत है । मध्य में विन्ध्य और सतपुड़ा की सांप आदि प्राणी उत्पन्न हुए । इनका विकास दो दिशाओं में पर्वतमालाएँ हैं। तथा दक्षिण के पूर्वी और पश्चिमी समुद्र-तटों हुआ-एक पक्षी के रूप में और दूसरे स्तनधारी प्राणी के रूप पर पूर्वी-घाट और पश्चिमी-घाट नाम वाली पर्वत-श्रेणियाँ फैली. में । स्तनधारी प्राणी की यह विशेषता है कि वे अण्डे से उत्पन्न हुई हैं। न होकर गर्भ से उत्पन्न होते हैं और पक्षी अण्डे से उत्पन्न होते भारतवर्ष की प्रमुख नदियों में हिमालय के प्रायः मध्य भाग हैं । मगर से लेकर भेड़, बकरी, गाय, भैस, घोड़ा आदि सब से निकलकर पूर्व की ओर समुद्र में गिरनेवाली ब्रह्मपुत्र और गंगा इसी स्तनधारी जाति के प्राणी हैं । इन्हीं स्तनधारी प्राणियों की है। इनकी सहायक नदियों में जमुना, चम्बल, वेतवा और सोन एक वानर जाति उत्पन्न हुई। किसी समय कुछ वानरों ने अपने आदि हैं । हिमालय से निकलकर पश्चिम की ओर समुद्र में अगले दो पैर उठाकर पीछे के दो पैरों पर चलना-फिरना सीख गिरने वाली सिन्धु और उसकी सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, लिया । बस, यहीं से मनुष्य जाति का विकास प्रारम्भ हुआ रावी, व्यास और सतलज हैं । गंगा और सिन्धु की लम्बाई लगमाना जाता है । उक्त जीवकोश से लगाकर मनुष्य के विकास तक भग पन्द्रह सौ मील की है। देश के मध्य में विन्ध्य और सतपुड़ा प्रत्येक नयी धारा उत्पन्न होने में लाखों करोड़ों वर्ष का अन्तर के बीच पूर्व से पश्चिम की ओर समुद्र तक बहने वाली नर्मदा माना जाता है। नदी है । सतपुड़ा के दक्षिण में ताप्ती नदी है। दक्षिण भारत की इस विकास-क्रम में समय-समय पर तात्कालिक परिस्थितियों प्रमुख नदियां गोदावरी, कृष्णा, कावेरी पश्चिम से पूर्व की ओर के अनुसार नाना प्रकार की जीव-जातियाँ उत्पन्न हुई। उनमें से बहती हैं। भनेक जातियाँ समय के परिवर्तन, विप्लव और अपनी अयोग्यता देश के उत्तर में सिन्धु से गंगा के कछार तक प्रायः आर्य के कारण विनष्ट हो गई, जिनका पता हमें भूगर्भ में उनके निखा जाति के, तथा सतपुड़ा से सूदूर दक्षिण में द्रविड़ जाति के, एवं तकों द्वारा मिलता है। पहाड़ी प्रदेशों में गोंड, भील, कोल और किरात आदि आदिवासी पृथ्वी-तल पर भूमि से जल का विस्तार लगभग तिगुना है। जन-जातियों के लोग रहते हैं। (चल २६% जल ७१%)। जल के विभागानुसार पृथ्वी के पांच वर्तमान में उपलब्ध इस आठ हजार मील विस्तृत और प्रमुख खण्ड पाये जाते हैं-एशिया, यूरोप और अफ्रीका मिलकर । पच्चीस हजार मील परिधि वाले भू-मण्डल के चारों ओर अनन्त एक, उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका मिलकर दूसरा, आस्ट्रेलिया तीसरा, आकाश है. जिसमें हमें दिन को सूर्य और रात्रि को चन्द्रमा एवं.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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