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वाले पूर्व से लेकर पश्चिम तक लम्बे छह वर्षधर पर्वत है-हिमवान्, महाहिमवान् निषध, नील, रुमी और शिखरी इन वर्षधर पर्वतों से विभक्त होने के कारण जम्बूद्वीप के सात विभाग हो जाते हैं, इन्हें वर्ष या क्षेत्र कहते हैं । इनके नाम दक्षिण की ओर से इस प्रकार हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत वर्ष इनमें से विदेह क्षेत्र के मध्य भाग में मेरु पर्वत है । इसके दक्षिणी भाग में भरत आदि तीन क्षेत्र हैं और उत्तरी भाग में रम्यक आदि तीन क्षेत्र हैं ।
४ – कर्मभूमियाँ और अकर्मभूमियाँ
उपर्युक्त सात क्षेत्रों में से भरत, ऐरावत और विदेहक्षेत्र (देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर) को कर्मभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहाँ के मनुष्य अति, मषि, कृषि आदि कर्मों के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं । यहाँ के मनुष्य-तिर्यंच अपने-अपने पुण्य-पापों के अनुसार नरक, तिर्यचादि चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं तथा वहाँ के ही मनुष्य अपने पुरुषार्थ के द्वारा कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। उक्त कर्मभूमि के सिवाय शेष को अकर्मभूमि या भोगभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहाँ असि-मषि आदि कर्मों के द्वारा जीवकोपार्जन नहीं करना पड़ता, किन्तु प्रकृति- अदत्त कल्पवृक्षों के द्वारा ही जीवन-निर्वाह होता है। भोगभूमि के जीवों की अकाल मृत्यु भी नहीं होती है, किन्तु वे सदा स्वस्थ रहते हुए पूर्ण आयुपर्यन्त दिव्य भोगों को भोगते रहते हैं।
५- अन्तरद्वीप
प्रथम हिमवान पर्वत की चारों विदिशानों में तीन-तीन
सौ योजन लवण समुद्र के भीतर जाकर चार अन्तर द्वीप हैं । इसी प्रकार लवण समुद्र के भीतर चार सो, पाँच सौ, छह सौ सात सौ आठ सौ और नौ सौ योजन आगे जाकर चारों विदिशाओं में चार-चार अन्तर-द्वीप और हैं। इस प्रकार चुल्ल हिमवान् के ( ७ X ४ = २८ ) सर्व अन्तर- द्वीप २८ होते हैं । इसी प्रकार छठे शिखरी पर्वत के लवण समुद्रगत २८ अन्तर- द्वीप हैं । : दोनों ओर के मिलाकर ५६ अन्तर द्वीप हो जाते हैं । 1 इनमें एकोरुक आदि अनेक आकृतियों वाले मनुष्य रहते हैं । वे कल्पवृक्षों के फल-फूलों को खाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं, • स्त्री-पुरुष के रूप में युगल उत्पन्न होते हैं और साथ ही मरते
* हैं । इनके मरण के कुछ समय पूर्व युगल - सन्तान उत्पन्न होती
है
गणितानुयोग भूमिका ७६
ऊपर जिन छह वर्षधर पर्वतों के नाम कहे गये हैं, उनके ऊपर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिन्छ, केशरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम का एक-एक हद या सरोवर है । इन्हीं सरोवरों के मध्य में पद्मों (कमलों) का अवस्थान बतलाया गया है। (विशेष वर्णन के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ का तद्विषयक प्रसंग देखिए ।
हिमवान पर्वतस्य पद्मग्रह के पूर्व भाग से गंगा महानदी निकली है, जो पर्वत से नीचे गिरकर दक्षिण भरतक्षेत्र में बहकर पूर्वमुखी होकर पूर्व के लवण समुद्र में जाकर मिलती है । इसी पद्म-सरोवर के पश्चिम-भाग से सिन्धु महानदी निकलकर भारतवर्ष के दक्षिण भाग में कुछ दूर बहकर पश्चिमाभिमुखी होकर पश्चिम लवण समुद्र में जाकर मिलती है। इसी सरोवर के उत्तरी भाग से रोहतांगा नदी निकली है जो कि क्षेत्र में बहती है । अन्तिम शिखरी पर्वत के ऊपर स्थित पुण्डरीक सरोवर के पूर्वी भाग से रक्ता और पश्चिमी भाग से रक्तोदा नदी निकलकर ऐरावत क्षेत्र में बहती हुई क्रमशः पूर्व और पश्चिम समुद्र में जाकर मिलती है। इसी पुण्डरीक सरोवर के दक्षिणीभाग से सुवर्णकूला नदी निकली है, जो हैरण्यवत क्षेत्र में बहती है। शेष मध्यवर्ती वर्षधर पर्वतों के सरोवरों से दो-दो नदियाँ निकली हैं । वे अपने-अपने क्षेत्रों में बहती हुईं पूर्व एवं पश्चिम के समुद्र में जाकर मिलती हैं। इन प्रधान महानदियों में सहस्रों अन्य छोटी नदियां आकर मिलती हैं ।
विदेह क्षेत्र में मेरु पर्वत के ईमानादि पारों कोणों में कमणः गन्धमादन, माल्यवान, सौमनस और विद्युत्प्रभ नाम वाले चार पर्वत हैं । इनसे विभक्त होने के कारण मेरु के दक्षिणी भाग को देवकुरु और उत्तरी भाग को उत्तरकुरु कहते हैं । ये दोनों ही क्षेत्र भोगभूमि हैं। मेरु के पूर्ववर्ती भाग को पूर्व विदेह और पश्चिम दिशा वाले भाग को अपर या पश्चिम-विदेह कहते हैं। इन दोनों ही स्थानों में सीता-सीखोदा नदी के बहने से दो-दो खण्ड हो जाते हैं । इन चारों ही खण्डों में कर्मभूमि है । इन्हीं में 'सीमन्धर आदि तीर्थंकर सदा विहार करते और धर्मोपदेश देते हुए विराजते हैं और आज भी वहाँ के पुरुषार्थी मानव कर्मों का • क्षय करके मोक्ष जाते हैं ।
६ -- ज्योतिष्क लोक
जम्बूद्वीप के समतल भाग से ७६७ योजन की ऊँचाई से लेकर ६०० योजन की ऊँचाई तक ज्योतिष्क लोक है, जहाँ पर
१. दिगम्बर परम्परा में अन्तरद्वीपों की संख्या ६६ बतलायी गयी है। विशेष के लिए देखो - तिलोयपण्णत्ति अ०४, मा०
२४७८-२४६० | तत्त्वार्थवात्र्तिक अ० ३, सूत्र ३७ की टीका आदि ।
२.. देखो --तिलोमपण्णत्ति अ० ४, गा० २४८६ तथा २५१२ आदि ।