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________________ -विरनिगान्तः ] एकादशो लम्भः कालानिधिसंगवादतोऽपि संभाधनीयाग, संजीवनीपधिमिव सकल जीवजो वातुभूतां चरणरुचिसंपादिनी च पुनर्जननक्लेशहननादतोऽपि पुरस्क्रियाहींम् , हारयष्टिमिव सुवृत्तबन्धुरा गुगानुवन्धिनी चा जडानयत्यादतोऽयधिकमीडनीयां च भव्यलोकरञ्जनीयां दिव्ययाचं मुमोच---- मकरणीयां विद्वत्सस्करणीयां च अक्षयकलानिधिसभात अक्षया कलानां वेदानां निधियाना मदपि तस्मात संभवात समुत्पन्न न पक्ष क्षयोमलक्षित कलानिधिश्चन्द्रस्तस्मान संभवाम् अपि सुचाया ५ अपि संभावनीयां सत्करण याम् संजीवनापििनव सकलमीवानां निखिलप्राणिनां जीवाभूत जावनीपरभूतां निखिलजीवरक्षभू चरणयोः पादयो रुनिसम्पादिनी पक्षे चारित्ररूचिम्पादिनी च पुन जन मामाहननात्पुनर्जन्मक्लेशरीकरणान् अतोऽपि संजीवनौषधेश पुस्क्रियाहाँ सत्कारयोग्य सनीपनाधिः न पुनर्जननक्लेवामपहरति दिव्यनाक च हस्तीति विशेषः, हारयशिरव मुकादामघ सुवृत्तवलाकारमजिभिः पक्षे सदाचारैः श्लेष्टच्छन्दोभिर्वा बन्धुरा मनोज्ञाम्, गुणानुवन्धिनी च सूत्रानुवन्धिनी सम्बश दिएण- १० वन्धिनी च अजडाश्रयत्वात अमूआंध्रयत्वात् अजलाश्रयत्वात् अतोऽपि हास्यटेरपि अधिकं यया स्यात्तथा ईडनीयां सबनीयाम, हास्यष्टिजलाश्रया दिव्ययाः च अजलाश्रया इतयारभेदात् अजहोऽमूख आश्रय आधारो यस्पास्तधाभूते ते व्यतिरेकः मत्र्यलोकबजनीनां च भव्यजनमनानन्दिनी दिव्याचे मुमोच तत्याज उदाति यावत । और वह मनोहर वाणी अकठिन-कोमल स्वभाव मुनिराजसे उत्पन्न हुई थी इसलिए बह रत्ना- १५ की दीपिकाको भी परास्त करनेवाली थी। अथवा उनकी वह वाणी सुधाक समान थी क्योंकि जिस प्रकार सुधा वृधिवीतलपर दुर्लभ है उसी प्रकार उनकी वह वाणी भी पृथिवीतलपर दुर्लभ थी और जिस प्रकार सुधा सुमनःसम्भावनीय-देवोंके द्वारा आदरणीय होती है उसी प्रकार वह वाणी सुमनःसम्भावनीय-विद्वानोंके द्वारा आदरणीय थी। परन्तु सुधा क्षयशील कलानिधि-चन्द्रमासे उत्पन्न हुई थी और वह वाणी अक्षय कलानिधि-अक्षय कलाओंके २० भण्डार मुनिराज से उत्पन्न हुई थी इसलिए सुधासे भी अधिक आदरणीय थी। अबधा बह वाणी संजीवन ओपधि के समान थी क्योंकि जिस प्रकार संजीवन ओपधि सकल जीवांक लिए जीवातु-जीवनयात्री है उसी प्रकार वह वाणी भी सकल जीवोंके लिए जीवातु-जीवनदात्री थी। जिस प्रकार संजीवन आपधि चरणमचिसम्पादिनी---चलने-फिरनेकी मचिको उत्पन्न करनेवाली है उसी प्रकार वह वाणी भी चरणचिसम्पादिनी-चारित्र-सम्बन्धी २५ रुचिको उत्पन्न करने वाली थी परन्तु संजीवन औषधि पुन: जन्म धारण करने रूप क्लेशको नष्ट नहीं कर सकती जब कि वह वाणी पुनर्जन्मके क्लेशको नष्ट करनेवाली थी इसलिए उससे भी अधिक सत्कार के योग्य थी। अथवा वह वाणी हारयष्टिके समान था क्योंकि जिस प्रकार हारयष्टि सुवृत्त बन्धुरा-उत्तम गोल मणियोंसे सुन्दर होती है उसी प्रकार वह वाणी भी सुवृत्तवन्धुरा-उत्तम छन्दांसे अथवा सम्यक चारित्रसे सुन्दर थी और जिस प्रकार ३० हारयष्टि गुणानुवन्धिी -सूतसे सम्बन्ध रखनेवाली होती है उसी प्रकार वह वाणी भी गुणानुबन्धिनी-सम्बग्दर्शनादि गुणों अथवा इलेष प्रसाद आदि गुणांसे सम्बन्ध रखनेवाली थी। परन्तु हास्यष्टि जडानय थी--अचेतनमणियों के आश्रय .थी अथवा जड़-खों के पास रहनेवाली थी जब कि वाणी अजाश्रय थी-चेतनमुनियोंके आश्रय थी अथवा बुद्धिमान मनुष्योंके आश्रय थी इसलिए उससे भी अधिक स्तुत्य थी। ३५ १. क ख ग 'सकलजीव नास्ति ।
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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