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________________ ३६ गधचिन्तामणिः पंचम लम्भ १४२-१४७. इधर गुणमालाको पाकर जीवन्धर कामकलाका अनुभव करने लगे। उधर काष्ठागारका हाथी जीवन्धरके हायकी कगामी नोट वार महीमा नाम दुःखी हो रन था। उसने खाना-पीना सब छोड़ दिया। महावतोंने इसकी शिकायत काष्ठांगारसे की। काष्ठांगारने जीवन्धरको पकड़नेके लिए योद्धा भेजे। योद्धाओंने गन्धोत्कटका घर घेर लिया, परन्तु अकेले जीवन्धरने सब योद्धाओंकी अच्छी मरम्मत की। अन्त में गन्धोत्कट जीवन्धरको लेकर स्वयं काष्ठांगारके पास गया । काष्ठांगारने गन्धोत्कटकी क्षमा याचनाकी उपेक्षा कर दी और जीवन्धरके प्राणघात करनेका आदेश किंकरोंको दे दिया। किंकर जीवन्धरको बध्य स्थानपर ले जाने लगे। इस घटनासे समस्त राजपूरीमें शोक छा गया। २१५-२२२ १४८-१४९. जीवन्धरने सुदर्शन यक्षका स्मरण किया और वह एक आकस्मिक रीतिसे जीवन्धरको अपहृत कर अपने निवास स्थानपर ले गया। किकरोंने जीवन्धरके प्राणघातका झूठा समाचार देकर काष्ठांगारको प्रसन्न किया । सुदर्शन यक्षने महोपकारी जीवन्धर कुमारका बड़ा सम्मान किया। कुछ दिन वहाँ रहकर जीवन्धर कुमारका तीर्थयात्राके उद्देश्यसे चल पड़े। यक्ष उन्हें मार्ग बतलाकर अटवीके बीहड़ पथसे बाहर कर गया। २२२-२२६ १५०-१५२. आगे चलकर जीवन्धरने घनघोर जंगल में दावानलसे घिरे हुए हाथियोंके मुण्डको देख उनकी रक्षाके अर्थ सुदर्शनयक्षका स्मरण किया । स्मरण करते ही यक्षने मेघोंसे जलवर्षा कर हाथियोंकी प्राणरक्षा कर दी। अब जीवन्धर एक पर्वतपर स्थित जिनमन्दिरकी वन्दना कर तथा वहाँ रहनेवाली यक्षीके द्वारा भोजनवस्त्र प्राप्तकर पल्लव देश पहुंचे । २२७-२३३ १५३-१५७. जब जीवन्धर पल्लव देशके चन्द्राभनगरमें पहुंचे तब वहाँके लोगोंको शोकनिमग्न देख जीवन्धरने शोकका कारण पूछा। लोगोंने बतलाया कि यहाँके राजा लोकपालकी एक पना नामकी छोटी बहिन है उसे साँपने काटा है। प्रयत्न करनेपर भी विषका प्रभाव कम नहीं हो रहा है। राजाने घोषणा की है कि जो पनाको अच्छा करेगा उसे आधे राज्यके साथ पमा दी जायेगी। लोगोंकी प्रार्थना तथा दीनतासे द्रवीभूत हो जीवन्धर राजभवन में गये और सुदर्शन यदरके द्वारा प्रदत्त विषापहारी मन्त्रके द्वारा उन्होंने पद्माको उत्काल निविष कर दिया। पचाने उठकर पास बैठे हए सब लोगोंको पहचान लिया । लोकपालने जीवन्धरके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। परस्परके स्पर्श तथा अवलोकनसे जीवधर और पगाके हृदय में कामबाघाका संचार हआ। लोकपालने मन्त्रियोंके साथ कन्या विवाहकी मन्त्रणा की। २३३-२३९ १५-१६०. मन्त्रियोंने लोकपालके इस प्रस्तावका कि 'कि जीवन्धरने कन्याको निविष किया है तथा इसके शरीरका स्पर्श किया है इसलिए यह कन्या इनके लिए ही दी जाये' समर्थन किया । अन्तमें बड़े समारोहके साथ दोनोंका पाणिग्रहण संस्कार हो गया। २३९-२४२ षष्ठ लम्भ १६१-१६६. नववधू पद्माके साथ ग्रीष्म ऋतुके दिनोंको सुखसे व्यतीत करते हुए जीवन्धर कुछ दिन लोकपालके राजभवनमें रहे । तदनन्तर बिना कुछ कहे ही अन्तःपुरसे रात्रिके समय बाहर निकल पड़े। पति के विरहमें पद्मा चोख उठी। उसकी चीख सुन परिवारके लोग एकवित हो गये। सबने सान्त्वना दी। लोकपालने जीवन्धरको खोजके लिए आदमो दौडाये पर कोई उन्हें प्राप्त न कर सका। २४३-२५३
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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