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________________ २६९ -विवाहवृत्तान्तः ] षष्टो लम्भः व्ययानिर्वृतयेनिर्वृतिपुत्रिकां तां धात्रीतल दुर्लभसंविधान विधात्रा सुभद्रेण भद्रतर लग्ने यथाविधि विधाणितां पर्यणयत् । १८. इति श्रीमद्वादी मसिंहसूरिविरचिते गद्यचिन्तामत्रों क्षेमधीलम्भो नाम षष्टो लम्भः अवारा चासो तथा बेत्यपाव्यथा निःसीमपीडा तस्य निर्वृतये दूरीकरणाय निवृतेः एतन्नाममातुः ५ पुत्रिका तां तां क्षेमश्रियम् धात्रीतले पृथिवीतले दुर्लभं दुष्प्राप्यं यत् संविधानं समुल्लययोजना तस्य विधात्रा कर्त्रा सुभद्रेश श्रेष्ठता भद्रतरलग्नेऽतिश्रेष्ठकाले यथाविधि विधिमनतिक्रम्य विश्राणितां प्रशां पर्ययन् उदक | १७. इति श्रीमद्वामसिंह सूरिविरचितं गद्यचिन्तामणी क्षमश्रलम्भी नाम पष्टो लम्भ: । उन्होंने पृथिवी तलपर दुर्लभ सामग्रोके जुटानेवाले सुभद्र सेठ के द्वारा उत्तम लग्न में दी हुई १० निर्वृति नामक सेठानीकी पुत्री क्षेमश्रीको विधिपूर्वक विवाहा । $ १७८. इस प्रकार श्रीमद्वादमसिंह सूरिके द्वारा विरचित चिन्तामणिमें मश्री लम्भ नामका (मश्रीकी प्राप्तिका वर्णन करनेवाला) छठवाँ लम्भ समाप्त हुआ ||६||
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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