SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्यचिन्तामणिः है । क्या यह सम्भव नहीं है कि दक्षिणका चन्द्रगिरि हो चन्द्रोदय हो सुदर्शन यक्ष व्यन्तर देव है, व्यन्तरोंका निवास जहाँ कहीं भी होता है और उनकी इच्छानुसार मनुष्योंकी दृष्टिके अगोचर भी रह सकता है । २८ जीवन्धर कुमारके विहार-स्थलों में से क्षेमपुरी के विषय में श्री पं० के० भुजबली शास्त्रीने अपने उसी लेखमें प्रकट किया है कि यह वर्तमान बम्बई प्रान्तान्तर्गत उत्तर कन्नड जिलाका गेरुसोप्पे हो प्राचीन क्षेमपुरी या क्षेमपुर था । रुसोप्पेका दूसरा नाम भल्लातकीपुर है। यह होणावर कार मील दूरपर अवस्थित है। जो भी हो शास्त्रीजी दक्षिण प्रान्तके हैं और वहाँके स्थानोंसे अत्यन्त परिचित है । गद्य चिन्तामणिसे ध्वनित सामाजिक स्थिति वैवाहिक - १. एक पुरुष के अनेक विवाह होते थे । २. क्षत्रिय और वैश्यवर्णके बीच विवाह होते थे । ३. शूद्रवर्ण के साथ उच्चवर्णवालोंका विवाह नहीं होता था । ४. अपरिपक्व अवस्था में भी विवाह होते थे । ५. पिता के द्वारा कन्याका दिया जाना तथा स्वयंवर प्रथाके द्वारा वरका चुनाव होना.'' ये विवाहकी रीतियां थीं। कदाचित् गन्धर्व विवाह भी होता था । ६. वरके अन्वेषण में लोग प्रायः निमित्तज्ञानियोंकी भविष्यवाणी को ही महत्त्व देते थे । ७. विवाह अग्निको साक्षीपूर्वक होता था, लकड़ीके खामकी आवश्यकता नहीं रहती थी। ८. मामाकी लड़कीके साथ भी विवाह होता या । इस तरह विवाह में सिर्फ़ एक सांक बचायो जाती थी । परिधान - वस्त्र, अल्पसंख्या में उपयुक्त होते थे । पुरुष अधोवस्त्र और उत्तरच्छद रखते थे । राजा-महाराजा आदि मुकुटका भी उपयोग करते थे। स्त्रिय अधोवस्त्र और उत्तरच्छदके अतिरिक्त स्तनवस्त्र भी पहनती थीं। दक्षिणके कवियोंने स्त्रियोंके अवगुण्ठन - घूंघटका वर्णन नहीं किया है और न पादकटकका | हाथमें मणियोंके वलय और कमरमें सुवर्ण अथवा मणिखचित मेखला पहनती थीं। गमें अधिकांश मोतियोंकी माला पहनी जाती थी । स्त्रियोंके हाथोंमें काँचकी चूड़ियोंका कोई वर्णन नहीं मिलता । राजनयिक - राजा अपनी आवश्यकता के अनुसार ४-६ मन्त्री रखता था, उनमें एक प्रधान मन्त्री रहना था, धार्मिक कार्यके लिए एक पुरोहित या राजपण्डित भी रहता था । राज्यदरबारमें रानीका भी स्थान रहता था। राजा अपना उत्तराधिकारी युवराजके रूपमें निश्चित करता था । खास अपराधोंके न्याय राजा स्वयं करता था । १. जीवनधरके स्वयं आठ विवाह हुए। २. जीवन्धरने क्षत्रियवर्ण होकर गुणमाका, क्षेमश्री, fanet और सुरमंजरी इन चार वैश्य कन्याओंके साथ विवाह किया । ३. जीवन्धरने नन्दगोपकी कन्या गोदावरीके साथ स्वयं विवाह न कर पद्मास्य मित्रके साथ उसका विवाह किया। क्षत्रचूडामणिमें वादो सिंहने 'नायोग्य स्पृहा सताम्' इस सूक्ति से उनकी इस क्रियाका समर्थन किया । ४. जीवन्धर कुमारका १६ वर्षकी अवस्थामें माता के साथ मिलान हुआ था पर उसके पूर्व उनके पाँच विवाह हो चुके थे । ५. जीवन्धरने गन्धदत्ता और लक्ष्मणाको स्वयंवर - विधिसे प्राप्त किया था और शेषको पिता या अग्रजके दिये जानेपर | पद्मा कन्याको जीवन्धरने पहले गन्धर्व विवाहसे और बादमें अग्रज - लोकपाळके द्वारा प्रदत्त होनेपर विवाहा था । ६. लक्ष्मणा, जीवन्धर के माम्सकी बड़की थी ।
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy