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________________ प्रस्तावना हए अपना मन्तव्य जाहिर किया है कि हेमांगददेश दक्षिण में न होकर विन्ध्याचलका उत्तरवर्तो कोई प्रदेश होना चाहिए । यहाँ मेरा तुच्छ विचार है यदि क्षत्रचूडामणिके . 'इहास्ति भारत खण्डे जम्बुद्वीपस्थ मण्डने । मण्डलं हेमकोशाभं हेमांगदसमाह्वयम् ।।४॥प्रथम लम्भ' इलोकके 'हेमकोशाभं इस विशेषणपर जोर दिया जाये और इसका समास 'जैसा कि स्व० विद्वान् गोविन्दरायजी काव्यतीर्य' किया करते थे 'हेम कोशानां स्वर्णनिधानानामाभा यस्मिस्तत्-जहाँ सुवर्णके खजानोंखानोंकी आमा है' की जावे तो कनिंघमकी युक्तिका समर्थन प्राप्त होता है। साथ ही राजपुरीके सेठ श्रीदत्त की समुद्र-बात्राका वर्णन क्षत्रचूडामणि, जीवन्धर चम्प, मद्यचिन्तामणि और उत्तरपुराणमें समानरूपसे पाया जाता है। इससे सिद्ध होता है कि राजपुरी समुद्र के निकटस्य होना चाहिए। विन्ध्योत्तर प्रदेश में न सूवर्णकी खाने हैं और न समुद्रकी निकटता। मैसूरसे दण्डक वन भी न अति दूर न अति समीप है। दण्डक वनमें विजया रानीका तापसीके वेषमें अपना परिचय दिये बिना छिपकर रहना राजनीतिका विषय है। क्योंकि उत्तरपुराणके अनुसार रुद्र दत्त पुरोहितने काष्ठांगारिकको बतलाया था कि राजा सत्यन्धरकी विजया रानीसे जो पुत्र होनेवाला है वह तुम्हारा प्राणघातक होगा । इसी प्रेरणासे काष्ठांगारिकने सत्यन्धरका घात किया था और उनकी रानी विजया तथा उसके पुत्रका घात करना चाहता था। विजया अपने भाईके घर नहीं गयी इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि काष्ठांगारिक वहाँ उसे अनायास खोज सकता था। गद्यचिन्तामणिमें हेमांगदका वर्णन करते समय सुपारीके बाग तथा उपजाऊ जमीनकी अधिकताके कारण सदा उत्पन्न होनेवाले नाना प्रकारके धानोंसे-गावोंके उपशल्यों-निकटवर्ती प्रदेशोंका भो वर्णन किया गया है। श्रेष्ठ सुपारीके बाग दक्षिण में ही हैं विन्ध्योत्तर प्रदेशमें नहीं। और जलकी अधिकतासे दक्षिणमें ही सदा धानके हरे-भरे खेत दिखाई देते है विन्ध्योत्तर प्रदेश में नहीं। यदि जोवन्धर उत्तर भारतके होते तो समकालीन राजा श्रेणिक उनसे अपरिचित न रहते और न मुनि अवस्थामें देख उनमें देवकी शंका कर सुवर्माचार्यसे प्रश्न करते -यह वर्णन मात्र कवि-संप्रदायके अनुसार नहीं है किन्तु यथार्थ रूपमें है क्योंकि कवि-संप्रदायके अनुसार तो किसी भी वृक्षका वर्णन हो सकता था पर अन्य वृक्षोंका वर्णन न कर खासकर कविने सुपारी ही के वृक्षोंका वर्णन किया है। मिथिलाके राजा गोविन्द महाराजकी बहन विजयाका विवाह दूरवर्ती राजा सत्यन्धरके साथ होना असंभव बात नहीं है क्योंकि जब विद्याधरोंके साथ भी विवाह सम्बन्ध हो सकते हैं तब उत्तर और दक्षिण भारतकी कोई बड़ी दूरी नहीं है । यही बात दक्षिणसे जीवन्धरकी विपुलाचल तक पहुंचने की है । ''जो कुछ भी हो विद्वद्गण विचार करें 1 दुःख इस बातका है कि हम २५०० वर्ष पूर्ववर्ती देश और नगरका पता लगाने में भी समर्थ नहीं हो सक रहे हैं। सुदर्शन यक्ष जीवन्धर कुमार को अपने निवास स्थान चन्द्रोदय पर्वतपर ले गया है और वहाँसे उतरकर उन्होंने पल्लव आदि देशों में परिभ्रमण किया है, इससे पता चलता है कि चन्द्रोदय पर्वत दूर नहीं १. देखी, जैन सिद्धान्तभास्कर, भाग २, किरण ३ 'महाराज जीवन्धरका हेमांगददेश और क्षेमपुरी' शीर्षक लेख। २. उत्तरपुराणकी अपेक्षा जिनदत्त । ३. 'वचिदिवाप्पन्धकारितपरिसरामिः मरकतपरिधपरिभावुकरम्मापरिरम्भरमणीयाभिः पूगवाटिकाभिः प्रकटी क्रियमाणाकाण्डप्रावृहारम्भेण सर्वकाकमुवरामायतया प्रथमान बहुविधसस्य सारण ग्रामोपशल्येन निःशल्य कुटुम्विधर्ग:' गर्याचन्तामणिप्रथम लम्भ, पैराग्राफ १ । १. नानामागपयोधिमग्नमतयो वैराग्यदूरोजिझता देवा न प्रमवन्ति दुःसहतमां वो मुनीनां धुरम् । इत्याहुः परमागमस्य परमां काष्ठामधिष्ठास्नव स्तद्देवो मुनिवेषमेष कल यन्दृश्येत कस्मादपि ।।...-चिन्तामणि पीठिका
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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