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________________ गधचिन्तामणिः ६. गन्धर्वदत्ता-यह जीवन्धरकी प्रथम और प्रमुख पत्नी है । विद्याधर गरुडवेगकी पुत्री है, संगीतकी मर्मज्ञ है और जीवन्धरके भ्रमणकालमें अपनी विद्याओंके उपयोगसे सबको सान्त्वना देती रहती है । गन्धर्वदत्ता के कारण जीवन्धरका विद्याधरोंके साथ सम्बन्ध बढ़ा है । ७. गुणमाला----यह राजपुरीके सेठकी पुत्री थो । हाथोके उपद्रवसे जीवन्धर कुमारने इसकी रक्षा की थी। उसी समयसे इसका जीवन्धरके प्रति और जीवन्धरका इसके प्रति अनुराग बढ गया था। अनुरागकी पूतिके लिए जीवापरने एक द्वार प्रापपजा और उसने भी प्रतिपत्र भेजा। अन्तमें दोनोंका विवाह हआ। श्रीहपके द्वारा नैषध काव्यमें नल और दमयन्तीके बीच में हंसका दूत बनाया जाना इसी शुक-दूतकी कल्पनाका प्रसार है । ८. सुरमंजरी-यह राजपुरीके एक सेठ की पुत्री है। और अपने सुगन्धित चूर्ण के विषयमें गुणमालासे पराजित होनेपर जीवन्धर में इसकी आस्था बढ़ गयी । इतनी अधिक कि उसने अपने अन्त:पुरमें अन्य पुरुपोंका प्रवेश भी निषिद्ध कर दिया। परिभ्रमणसे वापस आनेपर जीवन्धरको इस बातका पता चला तब वे एक वृद्धके रूपमें उसके घर गये। गद्यचिन्तामणिका वह प्रकरण हास्यरसका अच्छा उदाहरण है । अन्त में दोनोंका विवाह हुआ। जहाँ जीवन्धर और नन्दाढचमें सौभ्रात्र है वहाँ जीवन्धरकी आठों रानियों में भी सौमनस्य दृष्टिगोचर होता है। पारिवारिक सुख-शान्तिके लिए इसका होना अत्यन्त आवश्यक है। समग्र पात्रोंका परिचय परिशिष्ट में दिया गया है। यहां कुछ प्रमुख पात्रोंके जीवनपर हो विचार प्रकट किया गया है। गद्यचिन्तामणिका धर्मोपदेश कथा ग्रन्थों में दिया हुआ धर्मोपदेश अल्पपरिमाणमें ही शोभा देता है। जहाँ-कहीं वह आवश्यकतासे अधिक बढ़ जाता है वहाँ कथाकी सरसता खण्डित हो जाती है और पाठकका मन उस प्रकरणको छोड़ देना चाहता है, जैसा कि वरांगचरित और जिनसेनके हरिवंश पुराणमें हला है । चन्द्रप्रभचरितके द्वितीय सर्गका न्यायवर्णन भी इसी प्रकारका है। किन्तु गद्यचिन्तामणिमें बीच-बीच में और खासकर अन्तिम लम्भमें चारणषियुगल द्वारा भवभोरु जीवन्धरके लिए जो धर्मोपदेश दिया गया है तथा उसके अन्तर्गत नरकादि गतियोंकेदुःखका वर्णन किया गया है वह कथाग्रन्थके सर्वथा अनुरूप है। सरल, संक्षिप्त और भाववर्धक । चतुर्गति के दुःखोंका वर्णन भगवती आराधनाके चतुर्गतिवर्णनसे प्रभावित जान पड़ता है । भगवती आराधना प्राचीन ग्रन्थ है, जानाणवके कर्ता शुभचन्द्र ने उसके कितने ही प्रकरण अपने ज्ञानार्णवमें आत्मसात् किये हैं। जीवन्धरका हेमांगददेश और उनका भ्रमणक्षेत्र इस स्तम्भमें हम हेमांगददेश राजपुरी नगरी चन्द्रोदयपवत तथा दक्षिणके उन देशोंका अाधुनिक नामोंके साथ परिचय देना चाहते थे जिनमें जीवधर कुमारने भ्रमण किया है, परन्तु सहायक सामग्रीके अभावमें पूर्ण निर्णय नहीं हो सकनेसे असमर्थता है। फिर भी इस दिशामें विद्वानोंने जो अबतक प्रयत्न किया है उसकी संक्षिप्त जानकारी देना उचित समझते हैं। सर्व-प्रथम कनिंघम साहबने 'एंशिएंट जागरफी शॉब इण्डिया में हेमांगद देशपर प्रकाश डालते हुए उसे मैसूर या उसका निकटवर्ती कोई भूभाग हो हेमांगददेश बतलाया है। उसीके आधारपर बाबू कामताप्रसादजीने भी 'संक्षिप्त जैन इतिसास' द्वितीय भागके प्रथम खण्डमें मैसूर या उसके निकटवर्ती भूभागको हेमांगद देश कहा है । कनिंघम साहबके कथनमें हेमांगदके पास सुवर्णकी खाने, मलय एवंत सथा समुद्र आदिका होना कारण बतलाया गया है। परन्तु पं० के० भुजबली शास्त्री मुडबिद्रीने इसपर आपत्ति करते
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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