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इसि-भासिया
अर्थ:-पलक मात्र में दोनों ओर से प्रचंड धनुष से छूटे हुए पृथ्वी के वक्ष में सम्पूर्ण प्रवेश करने वाले वाण दरस रहे हैं। जिनके पिछले हिस्से पर लगे हुए पंख मात्र दिखाई पड रहे हैं। आग की सहस्रों ज्वालाओं से सारा वनप्रदेश जल रहा है। धू धू करती हुई लए उठ रही हैं। और शीघ्र ही उदीयमान सूर्य के सहश आरक मुंजा (चिरमीटी) के अर्ब भाम की राशि की प्रभागश लाल अंगार बना हुआ घर जल नटेगा । आयुष्यमान तेतलिपुत्र । ऐसा होने पर हम कहां जानें १ . गुजराती भाषान्तर:
ક્ષણભરમાં બન્ને બાજુથી પ્રચંડ (મહાણ) ધનુષમાંથી છૂટેલાં પુત્રીના સાથળમાં વિશ્નમાં) પુરેપુરા પ્રવેશ કરનારા બાણ વરસી રહ્યા છે. જેના પાછળના ભાગ પર લગાવેલા પીછાં જ દેખાઈ રહ્યા છે. આગની સહસ્ત્ર જવાળાઓથી આ વન બાળી રહ્યું છે. ઘૂ ઘૂ કરતી જવાળાઓ ઉડી રહી છે અને તરતજ ઊગતા સૂર્યની માફક લાહવર્ણના અર્ધભાગની રાશિની જેમ લાલ તણખાથી બનેલું ઘર બળી ( સળગી) ઉશે. હું આયુષ્યવાન તેટલીપુત્ર! આમ થશે ત્યારે આપણે કયો જઈશું?
टीका:-उभयतःपाय चक्षुनिपाते सुप्रचण्डधनुर्यन्त्र विषमुक्ता पुंखमात्रावशेषः धरिणिप्रवेशिनःसरा निपतन्ति । हुत-बह-ज्वाला-सद्दनसंकुल समततः प्रदीसं धगधगिति शब्दायते सारण्ये अचिरेण च बालसूर्यगुञ्जा पुजनिकरप्रकाश ज्ञापत्यंगारभूतं गृहमायुष्यमस्तितलिपुत्र क प्रजामः । टीकार्थ ऊपरक्त है। ज्ञातासूत्र में यह पाठ कुछ भिन्न रूप में नाता है।
गामे पलिते रख्ने सियातिरन्ने पलिते मामे सियातिआउसो तेतलिपुत्ता कमी वयामो ।-ज्ञातासूत्र १०२ ।
प्राम के जलने पर मनुष्य वन की ओर जाता है । और वन के जलने पर ग्राम की ओर जाता है । हे आयुष्यमान तेतलिपुत्र हम कहाँ जावें ! । यहां 'कओ वयामो' पाठ अशुद्ध है। 'क चयामो भेना चाहिए।
पोहिल देव कह रहे है कि महाकाल के बाण चारों ओर बरस रहे हैं। सारा वन भी प्रलयंकर आग में झुलस रहा है। और घर भी उसी आग की लपटों का मेंट होने वाला हैं। फिर हम कहां जा है।
ततेणं से तेतलिपुले अमचे पोहिलं मूसियारधूतं पर्व वयासी घोहिले एहि ता आयाणा हि भीयस्स खलु भो पवजा अभिउत्तस्स सयहणकिच्चे मातिस्स रहस्सकिच्चं उत्कंठियस्स देसगमणकिश्वं पिचासियस्स पाणकिञ्चं छुहियस्स भोयणकिच्चं परं अभिजिउ कामस्स सरथकिचं खंतस्स दंतस्स गुत्तस्स जितिदियस्स रत्तो ते एकमविण भवइ ।
अर्थ:-बाद में अमाय तेतलिपुत्र मूसिकारपुत्री पोट्टिला को इस प्रकार बोला-“पोट्टिले यह तुम्हें स्वीकार करना पडेगा, कि भग्नत्रस्त मनुष्य की दीक्षा संभव है । अमिथुक्क व्यक्ति आत्म-हत्या कर सकता है । मायाशील व्यक्ति का रहस्य गुप्त कार्य होता है । देशभ्रमण के लिए उत्कंठित व्यक्ति की देश-यात्रा होती है। पिपासित का पान करना, शुश्चित का भोजन करना, दूसरे को विजित करने की कामना वाले का शम्न कार्य अर्थान, शस्त्रविद्या का अध्ययन संभव है। किन्तु क्षान्त दान्त त्रिगुतियों से गुप्त जितेन्द्रिय के लिए प्रपातादिक कोई भी भय संभव नहीं है। गुजराती भाषान्तर :
પછી અમાત્ય તેતલિપુત્ર મૂશિકારપુત્રી પોટ્ટિલાને આવી રીતે બોલ્યો -પોલિી ! આ તારે સ્વીકાર કરવું પડશે કે ભવત્રસ્ત માનવીની દીક્ષા સંભવ છે. આવા ગુગેવાળી વ્યક્તિ આત્મહત્યા કરી શકે છે. માયાશીલ વ્યક્તિનું રહસ્ય ગુફામ હોય છે, દેશાટનના માટે ઉત્કઠાવાન માનવીની દેશયાત્રા થાય છે. તરસીયાનું પાન કરવું, ભુખ્યાનું ભોજન કરવું, બીજાને જીતવા માટેની ઈચ્છાવાનના શસ્ત્રકાર્ય એટલે શસ્ત્રવિદ્યાનું અધ્યયન સંવાવ છે. પણ શાન્ત દાન ત્રણ ગુપ્તિથી ગુમ જીતેન્દ્રિય માટે અપાતાદિક કોઈ પણ ભયસંભવ નથી.
टीका: ततः स तेतलिपुत्रामात्यः पोहिला मूसिकारदुहितरं एवमवादीद् यथा-पोहिले ! एहि ताबदाजानीहि यो के भीतस्य जनस्य खलु भो प्रवज्याहिता श्रमियुक्तस्य हितं प्रत्ययकरणमवपरिधान्तस्येस्युक्तं, जातुरच्याहार्यम् , वहनकृत्य, मायिनो रहस्यकृत्यमुत्कंठितस्य स्वदेशगमनकृत्य, क्षुधितस्य भोजनकृत्य, पिपासितस्य पानकन्य, परं पुरुषमभियोक्तुकामस्य शास्त्रकृत्यं क्षान्तस्य तु दान्तस्य गृक्षस्य जितेन्द्रिय स्यैतासामेकमपि न भवति । चि तेतलिपुत्रमध्ययनम् । टीकार्थ उपरवत् है।