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________________ दशम अध्ययन दर तएण तेतलिपुत्ते भसोगवर्णिया तेणेव उवागच्छद उवागाछत्ता पासवाए बंधात बाधता रुस दुरूहति तुरूहित्ता पास रुक्खे बंधसि बेधित्ता अप्पा भुयति तत्थ चि य से रज्जू छिना। झाताधर्म-कथांगसूत्र १.३। तिरस्कृत मंत्री तेतलिपुत्र मौत के लिए हर संभव प्रयत्न करता है । वृक्ष पर फंदा डाल कर झूल जाता है । पत्थर बांध कर कुहे में कूदता है । धू धू करती हुई मिता प्रज्वलित करके उसमें कूदता है, किन्तु वह आग भी बुझ जाती है। तपणं सा पुट्टिला मूसियारधूना पंचधण्णाइं सखिखिणिताई पवरवत्थाई परिहित्ता अंतलिखपडिवपणा पर्व चयासी । आउसो रहितो आयाणिहि पूरओ विच्छिपणे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिटुओ कंपेमाणेब मेयिणिसलं साकवतेव पायवे णि'फोरेमाणेष्व अंबरतलं सब्बतमोरासिव पिडिते पश्चपलभिव सयं कर्तते भीमरवं करेंते महावारणे समुट्टिण वा । अर्थ :-बाद में बह वर्णकार की पुत्री पोटिला छोटी छोटी घंटिकाओं से युक्त पंचवर्णीय वस्त्र पहन कर आकाश में खड़ी होकर इस प्रकार बोली यह समझो कि तुम्हारे समक्ष गिरि शिखर और कंदरा से विच्छिन्न होता हुआ प्रपात करना है। पृथ्वी तल को कंपित करता हुआ और वृक्षों को उखाइता हुआ आकाश को फोडता पिंडीभून तम राशि-घनीभूत अंधकार के सदृश प्रत्यक्ष महाकाल-सा शब्द करता हुआ महा गजराज सामने खड़ा हुआ है। गुजराती भाषान्तर: પછીથી તે સોનીની પુત્રી પિટિલા નાની નાની જાંજરીથી બનાવેલ પાંચ રંગનું વસ્ત્ર પહેરીને આકાશમાં ઊભી રહીને આવી રીતે બેલી-ધારોકે તમારી સમક્ષ શીખર અને ખીણથી જુદું પડતું પ્રપાત ઝરણું છે. પાછળ પૃથ્વીના તળિયા કપિત કરતો અને વૃક્ષોને ઉખેડી મુકત આકાશને તોડતો પિંડીભૂત જેમ રાશિ ઘનીભૂત અંધકારની જેમ પ્રત્યક્ષ મહાકાલની જેમ અવાજ કરતો ગજરાજ સામે ઊભો છે. टीका:-ततः सा पोटिला मूसिकारदुहिता पंचवर्णानि सखिनखिनिकानि प्रवस्वस्त्राणि परिधाय देवीभूतेति शाताधर्मकथानों चतुर्दिशं तेतलिज्ञातमनुसत्याहार्यरिन्तरिक्षप्रतिपक्षमवादीद्-यथायुप्मतेतलिपुत्र एहि तावदाजानीहि यत् पुरतो चिस्तीणों गिरिशिखरकंदरप्रपातो पृष्ठतो कंपमान मिव मेदिनीतलं संकृष्यमाणेव पादपः निष्फोटयशिवाम्बरवलं सर्व-तमो-राशीव पिंदितः प्रत्यक्षमिव स्वयं कृतान्त; भीमरत्र कुर्वन् महावारणः समुत्थितः । टीकार्थ:-स्वर्णकार की बेटी पोहिला छोटी छोटी घंटिकाओं वाले वस्त्रों को पहन कर आकाश में स्थित हो कर सेतलिपुत्र को सम्बोधन कर के बोलती है-यह पोहिला पहले तेतलिपुत्र की पत्नी थी। किन्तु तेतलिपुत्र को उस से विरत हो जाने पर वह मुनता साध्वी के पास दीक्षित होने को तत्पर हो रही थी। तब तेतलिपुत्र ने उससे कहा था अगर तुम देव बनो तो मुझे वीतराग के धर्माभिमुख बनाना । उसी वचन में बद्ध हो कर पोटिल देव तेतलिपुत्र को प्रबुद्ध करने के लिए पहले प्रयास करते हैं। उसमें सफल न होने पर राजा कनकप्वज राजा परिषद और तेतलिपुत्र के परिवार को उस से विरक्त कर देते हैं। उस अपमान से सुब्ध होकर तेतलिपुत्र आत्म-हत्या के अनेकविध प्रशन्न करते हैं जो कि पहले उन्ही के मुख से सुन चुके हैं। उन समस्त प्रयों की निष्फलता से तेतलिपुत्र श्रद्धाविहीन बनते हैं । तब पोहिलदेव पोहिला के रूप में उसी के वस्त्रों में आकाश में स्थित हो तेतलिपुत्र को बोलते हैं। श्री ज्ञातासूत्रमें इसका अनुसंधान अविकल रूप से उपलब्ध है। टीका कार उसी की ओर संखेत करते है। शेष ऊपरवत् है। श्रीज्ञातासूत्र में प्रस्तुत पाठ निन्न रूप में मिलता है। ततेप से पोहिलदेवे पोहिलारूवं चिउच्चति विउचित्ता तेतलिपुत्सस्स अदरं सामंते ठिचा एवं वयासी है भो तेतलिपुत्ता पुरतो पवार पिढयो हरियभयं दुहओ अचश्वुफासे मज्झेसराणि परिसयति ।-शातासूत्र १०२ । श्रीझातासूत्र में पोहिल वेव अदूर सामंत (न अति निकट न अति दूर ) स्थित है । जब कि "इसि भासियाई" में आकाश में स्थित हैं। साथ ही यहां पाठ काव्यात्मक है जब कि ज्ञातासूत्र में केवल वर्णनात्मक है । बाण वर्षा का वर्णन आगे दिया है। उभओ पासं चक्षुणियाय सुपयंड-धणु-जंत-विप्पमुक्का पुखमेसा यसेसा धरणिप्पधेसिणो सरा णिपतति हुयवह-जाला-सहस्स-संकुलं समंततो पलितं धगधगेति सवारणं अचिरेण य बालसूरगुंजपुंजनिकरपकासं झियाइ इंगालभूतं गिहं आउसो तेतलिपुत्ता । कचो वयामो?
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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