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इसि-भासियाई
किन्तु वह मिथ्याभिनिवेश में पड़ गई-दूसरे के बहकावे में आगई। परिणामतः तेतलिपुत्र के एदय में गहरा आघात लगता है और वह घर जाना भी लेता है, किन्तु सहनी के लिए मत मन कर आया । चाहने पर मी तेतलिपुत्र नहीं मर सका। मौत को निमंत्रण दिया फिर भी वह नहीं आई। पर वह जीवन से ऊब चुका था । अतः मौत के लिए दुबारा फिर प्रयास करता है।
तेतलिपुत्तेणं अमचेण महालय रुक्खं दुहिता पासे छिण्णे तहा वि ण मए, को मे तं सदहिस्सति ? । तेतलिपुण महति महालय पासाणं गीचाए बैधित्ता अस्थाहाण पुक्खरीणिप. अप्पा पक्खिचे तत्थ वि य ण थाहे लद्धे को मे सदहिस्सति । तेतलिपुत्रेण महति महालयं कट्टरासिं पलीवेत्ता अप्पा पक्खिने से वि य से अगणिकाय विज्झाए, को मे तं सद्द हिस्सति?
अर्थ:-मंत्री तेतलिपुत्र विशाल वृक्ष पर चल कर फांसी लगाता है, फिर भी वह नहीं मर सका । उसका पाश टूट गया। कौन मेरे इस वचन पर विश्वास करेगा ? । तेतलिपुत्र बड़े बड़े पत्थर गले में बांध कर अथाह जल वाली पुष्करिणी में अपने आप को पटकता है। किन्तु वह अथाह में भी थाह पा गया। कौन इस बात पर विश्वास करेगा! इसके बाद तेतलिपुत्र लकडी की विशाल चिता बना कर उसमें कूद पडता है। किन्तु वह आग की ज्वाला भी बुझ गई। कौन इस बात पर भरोसा करेगा? गुजराती भाषान्तर:
મંત્રી તેતલિપત્ર મોટા વિશાળ વૃકા ઊપર ચડીને ફાંસો દયે છે છતાં પણ તે મરી શકતા નથી. તેનો ફાંસી. શ્રી ગયો. કણ મારા આ વચન ઉપર વિશ્વાસ કરશે? તેતલિપુત્ર મોટા મેટા પત્થર ગળામાં બાંધીને વિશાળ જળવાળી પુષ્કરણીમાં પોતાને પછાડે છે, પરંતુ તે વિશાળ જળસમૂહમાં પણ તે થાહ (તરી ગયો ) પામી ગયો કોણ આ વાત ઉપર વિશ્વાસ કરશે તે પછી તેતલિપુત્ર લાકડાની વિશાળ ચિતા બનાવીને તેમાં કૂદી પડે છે. પરંતુ તે આગની જવાળા પણ બૂઝાઈ ગઈ. કોણ આ વાત પર શ્રદ્ધા કરશે ?
टीका: तेनैव नीलोत्पलगवलगुलिकातसीकुसुमप्रकाशोऽसिः क्षुरधारो लिपातितः, सोऽपि च, 'तस्यासिस्थाले ति अन्यपुस्तकस्य पाठः, तेनैव तथापि च न मृतः। तेनैव भयातिमहन्त वृक्षमधिरुह्य च्छिसपास इत्यपूर्णकथा । तथापि च न मृतः। सेनैव भयातिमहान्तं पाषाणं प्रीधार्या बट्टा तस्यां पुष्करिण्यामात्मा प्रक्षिप्तसथापि स्थाहो लब्धस्तेनैव मयातिमहान्तं काष्ठराशि प्रदीप्यारमा प्रक्षिप्तः सोपि तस्याग्निकायो बिझातः । सर्वमेतत् को मे श्रद्धास्यति । टीकार्थ ऊपरवत् है।
विशेष में यहां टीकाकार बताते हैं नील कमल गवल गुरिका भैस या पाडे के सींग की कठिन मार और अलसी के फूल की भाँति प्रकाशवती तलवार से भी उसने अपने ऊपर प्रहार करना चाहा । किन्तु वह प्रयास भी निष्फल रहा। ___ यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में यह पाठ नहीं है, किन्तु टीकाकार कहते हैं कि दूसरी पुस्तक का पाठान्तर यहाँ ग्राह्य है । क्योंकि शातासूत्र में यह पाठ उपस्थित है।
साथ ही तेतलिपुत्र की पेड पर चढ कर फांसी लगाने की घटना यहां दी गई है । किन्तु पूरी घटना व्यक-नहीं होती। वृक्ष पर चढ़ने के साथ ही "पासे छिपणे" पाठ आ जाता है। जिससे लगता है कि कुछ छूट गया है । यहां पर 'जाव' शब्द आवश्यक था । शातासूत्र में श्रद्धेय आदि वाक्यों में यह घटना नहीं दी गई है, किन्तु आत्मघात के प्रयत्नों में पूर्ण रूप से दी गई है । जो कि नीचे दी जा रही है:
१ प्रस्तुत पाठ में ऐसा बतलाया गया है कि मूषिकार धूता स्वर्णकार की पुत्री पोहिला भी मिथ्याभिनिवेश में आ गई । अर्थात् बहकाने में आ कर रोतलिपुत्र को छोड़ कर चली गई । किन्तु तथ्य यह है कि इस घटना के कई वर्ष पूर्व स्वयं तेतलिपुत्र हि पोहिला से विमुख हो चुका था। शातासूत्र की कहानी इस तथ्य को स्वीकार करती है-त ते पोष्टिला अन्नया कयाई तेतलिपुत्तरस अणिवा पूजाया यावि होत्था णेच्छाश्य तेतलिपुत्ते पोटिलाए. नाम गमवि सवण्णभाए कि पुण दरिस वा परिभाग वा :-ज्ञाता-धर्मकथांग- अ. १४ स्.६। एक दिन तेत्तलिपुत्र के लिए पोहिला अनिल-अमान्था हो गई। वह उसका नाम तक नहीं सुनना चाहता था। फिर देखने की बात क्या । फिर बहक गई उसका कोई सान ही नहीं है। किन्तु बात यह है कि पोईला साच्ची के पास दीक्षित हुई थी। इसी को तेतलिपुत्र का आधुल मन मिच्छ विष्म डिवता कह रहा है। दुःखी मानव दुःख के क्षणों में सब को याद करता है।