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दशम अध्ययन कमल र सैदा होता है, न में रहा है और उनके चारों ओर जलधारा होने पर भी वह जल कण से अलिप्त रहता है। इसी प्रकार कुछ आत्माएँ जिनके चारों ओर भोग और वाराना का सागर हिलोरे मारता रहता है, उस वातावरण में रह कर भी वे उससे पृथक रहती हैं। वे ही विशिए आत्माएँ हैं। जो सागर के किनारे बैठे हैं और कहते हैं कि हम सूखे हैं तो इसमें आश्चर्य क्या होगा? किन्तु उसकी अतल गहराई में भी जो दुबकी लगा कर भी जो सूखा निकल आता है वही चमत्कारी कहलाएगा।
खजन-परिजन के बीच रह कर भी जो इन सब से अलग अलग रहता है । पुत्र है, पर पुत्र का ममत्व उसके दिल को नहीं हुआ है, परिग्रह है, लक्ष्मी के पायल की मार है, धन है, पर धन का मद नहीं है। किन्तु साधारण जन उस स्थिति पर सहसा विश्वास नहीं करेगा । कोटों की राह पर चलने वाले को वह साधु मान सकता है। किन्तु फूलों की सेज पर सो कर भी कोई साधु हो सकता है यह उसे स्वीकार न होगा । क्योंकि उसकी आखें इसके लिए अभ्यस्त नहीं है। इस लिए उसका विश्वास न करना स्वाभाविक ही है ।
कमी ऐसा भी होता है जब कि भरा-पूरा घर होता है, लाखों की जायदाद होती है, स्नेही जन, परिजन सब कुछ होता है, किन्तु सागर के बीच भी आदमी प्यासा होता है। पुत्रों और मित्रों के बीच मी वह अकेलापन महसूस करता है। उसकी धनीभूत पीडा बोल उठती है कि कहने को तो सब कुछ है, पर मेरा अपना कोई नहीं है । व्यथा और करुणा से भीगी जिसकी जीवन-कहानी है। भरे भुवन में जिसकी आँसुओं से भीगी आँखें पोंछने वाला कोई नहीं है। तेतलिपुत्र के पूर्व जीवन की कहानी इन्हीं व्यथा और दर्द के धामों से बुनी हुई है। उन्ही के शब्दों में पढेंगे। किन्तु हो; इस न्यथा मैं उन्होंने निराशा के आँसू नहीं बहाए, अपितु दुनिया से अनासक्ति का बोध पाया है।
टीका:-श्रद्धेय स्खलु भो भ्रमणा घदन्ति ब्राह्मणाश्च एकोऽहं अभ्रद्धेयं वदिष्यामि, सपरिजनमपि नाम मां दृष्ट्वा अपरिजनो अहम स्मीति को मे तच्छद्धिष्यति न कनिदिनि एवमेव सपुत्रं सविसं सपरिप्रदं दान-मान-सत्कारोपचारसंग्रहीतम् । अर्थ उपर बताया जैसा ही है।
तेतलिपुत्तल सयण-परिजणे विगगं गते को मे तं सहहिस्सति ? । जाति-कुल-रूप-विणतोययारसालिणी पोटिला मूसिकारधूता मिच्छ विपडियन्ना को मे तं सद्दहिस्सति । कालकरमणीतिसस्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गते त्ति को मे तं सद्दहिस्सति ? । तेतलिपुत्तेण अमशेण मिहं पविसित्ता तालपुडके बिसे खातिते त्ति से वि य पडिहते त्ति को मे तं सहहिस्सति ।।
अर्थ:-तेतलिपुत्र के स्वजन परिजन उनसे रुष्ट हो गए। इस बात पर कौन विश्वास करेगा? श्रेष्ठ जाति कुल में जन्मी हुई रूपवती, विनय और उपचार की साकार प्रतिमा सी मूसिकार-स्वर्णकार की लडकी पोहिला मिथ्याभिनिवेश में पड़ गई। मेरे इस कथन पर कौन भला विश्वास करेगा ?। काल-बम से नीति-शास्त्र-विशारद तेललिपुत्र विषाद में हूब गया, मेरे इस कथन पर कौन श्रद्धा करेगा।। तेतलिपुत्र मंत्री ने घर में प्रवेश कर के तालपुट विष खा लिया, किन्तु वह विष भी उनके लिए विफल हो गया। कौन मेरी इस बात पर विश्वास लाएगा। गुजराती भाषान्तर:
તેતલિપુત્રના સગા-વહાલાંઓ ને પરિજનો તેનાથી રીસાઈ ગયા, આ વાત ઊપર કોણ વિશ્વાસ કરશે ? ઉચ્ચ વર્ણમાં ઉત્પન્ન થયેલી રૂપવંતી, વિનય અને ઉપચારની સાકાર પ્રતિમા જેવી મસિકાર-સુવર્ણકારની પુત્રિ પોદિલા મિથ્યાભિનિવેશમાં પડી ગઈ. મારા આ કથન ઉપર કોણ વિશ્વાસ કરશે? કાલક્રમથી નીતિશાસ્ત્ર વિશારદ તેટલીપુત્ર વિવાદમાં ડૂબી ગયા, મારા આ કથન ઉપર કોનું શ્રદ્ધા કરશે ? તેટલીપુત્ર મંત્રી પોતાના ઘરમાં પ્રવેશ કરીને તાલપુટ ઝેર ખાઈ લીધું, પરંતુ તે ઝેર પણ તેને માટે વિફળ થઈ ગયું, મારી આ વાત ઊપર કોણ વિશ્વાસ કરશે?
टीका:-तेतलिपुत्रस्य स्वजनपरिजनी विरामं गतः जातिकुलविनयोपचारशालिनी पोहिला मूसिकारधूता मिथ्या विप्रतिपला काल-कर्म-नीति-विशारदस्तेतलिपुत्रो विषाद गतः । तेतलिपुवामात्येन सता गृह प्रविश्य तालपुटं नाम विष खादित तत् तु प्रतिहत । टीकाध ऊपरवत् है।
तेतलिपुत्र अपने आप को अश्रद्धावादी बताते हैं । उसके पीछे उनकी जीवन-कहानी है। तेतलिपुत्र से उनके माता पिता वजन परिजन सब कोई रुष्ट हो गए । तेतलिपुत्र पोटिला से अति स्नेह था । जो कि सुन्दर रूपवती और विनम्र थी।