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" इसि भालिया" सूत्र परिचय
ऋषिभाषित की प्रामाणिकता
इतनी लम्बी चर्चा के बाद अब हम सोचेंगे कि वर्तमान में मान्य आगम बत्तीसी के किन आगमों में ऋषिभाषित का उल्लेख व परिचय मिलता है। पहले मंदीसूत्र को लेते हैं जहां वर्तमान में उपलब्ध और अनुपलब्ध सूत्रों की विशाल संख्या मिलती है। अंगबाह्य सूत्र में कालिक सूत्रों की सूची में सातवें स्थान पर ऋषिभाषित का नाम उपलब्ध होता है । से किं तं कालियं? कालिये अगवि पण्णत्तं । तंजहा:- उत्तरज्ज्ञायणं, दमाओ, कप्पो ववहारो निसी महानिसीई हासभा सिवाई |
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स्थानांग सूत्र के दशम स्थानक में दस दशाओं का वर्णन है उसमें प दशा के रूप में प्रश्नव्याकरण दशा का उल्लेख है । प्रन्नव्याकरण के दश अध्ययन हैं जैसे कि उपमा, संख्या ऋषिभाषित' आदि परन्तु जैसे कि पहले लिखा जा चुका हैं कि प्रश्नव्याकरण सूत्र का वर्तमानरूप स्थानांग और नंदी सूत्र दोनों उल्लेखों से भिन्न है। अतः वहां ऋषिभाषित को खोजना व्यर्थ होगा ।
सुमवायांग सूत्र में चबॉलीस समवाय में ऋषिभाषितसूत्र का उल्लेख मिलता है। देवलोक से च्यति चचालीस ऋषियों के प्रवचन' रूप यह सूत्र है किन्तु एक प्रभ उपस्थित होता है कि यहाँ पर वर्तमान ऋषिभाषित सूत्र के पैंतालीस अध्ययन हैं और समवायांग सूत्र में चत्रलीस अध्ययनों का उल्लेख मिलता है । इस विभेद को मिटाने के लिये टीकाकार लिखते हैं । समवायांग सूत्र में दैवलोकयक्ति ऋषियों का ही उल्लेख है । मन है एक ऋषि जन्य हो, अतः उनका उल्लेख नहीं किया गया है |
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मूल भाष्य में आचार्य चतुर अनुयोग की व्याख्या करते हुए धर्मकथानुयोग में इसि भासियाई की गणना करते हैं । कालिक श्रुत में चरणकरणानुयोग, ऋषिभाषित में धर्मकथा, गणितानुयोग सूर्य प्रज्ञप्ति में और द्रव्यानुयोग दृष्टि बाद में निर्दिष्ट है ।
इसप्रकार स्थानांग समवयांग और नंदी सूत्रमें उल्लिखित ऋषिभाषित आज उलब्ध हैं । इसके अतिरिक्त पूरे सूत्र में एकादशांग सूत्रों की विषय परिधि से किसी भी प्रत्येक बुद्ध का प्रवचन बाहर नहीं गया है। फिर उसे अपनाने में हानि क्या है।
ऋषिभाषित के रचयिता
ऋषिभाषित के एक रचयिता का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति कृति नहीं है । उसमें पृथक् पृथक् वक्ताओं के विचार सूत्र संकलित हैं। ये विचारक ज्ञान की भीतरी तह तक पहुंचे हुए ऋषि हैं। आर्हती भाषा में इन्हें प्रत्येकबुद्ध कहा गया है। प्रसिद्धि और घटना विशेष के कारण चार ही प्रत्येकबुद्ध लोकमानस में जीवित हैं । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता कि प्रत्येक बुद्ध चार ही हैं। श्री नंदी सूत्र में विभिन्न तीर्थकरों के शासन के प्रत्येक बुद्धों की संख्या दी गई है। उसमें यह बताया गया है कि म० आदिनाथ के ८४ हजार शिष्य थे और भ० महावीर के १४ हजार शिष्य थे । दूसरे रूप में यह भी बताया गया है कि जिन तीर्थंकरों के शासन में
१. स्थानेः दस दसाओ पण्णत्ताओ तंजहा १, २, ३, ४, ५ पद बागरणदसाओ, पण्वागरणदसाणं पंच अक्षणा पं० तं जहा उनमा संखा इसिमासियाई ॥
२. चोवालीसं अक्षयणा दिय लोग चुयभासिन - पता दियोयचुयाणं इसी चोयालीस इसिभासिज्झयका पणत्तासमवायांग सूत्र ४४ व समवाय.
३. एतदूवृत्तौ चतुरचत्वारिंशत्स्थानेऽपि किचिरिलख्यते, चतुश्चत्वारिंशत्, इसिमासियत्ति ऋषिभाषिताध्ययनानि.. कालिकत विशेषभूतानि दियोयचुव भासियेत्ति देवलोकयुतेः ऋषिभूतैर्भाषितानि देवलोकच्युतभाषितानि । कस्यापि प्रत्येकबुद्धस्य अन्यस्याः कस्याश्विद्गतेरायात्तत्वमपेक्ष्य पंचचत्वारिंशतोऽप्यध्ययनानां विवक्षया एकोनतया ॥ नन्दी सूत्र ४४
४ कालिय व इतिभारियाई तामसुरपन्नति सध्वी य दिडिवाओं बजत्थो होइ अणुओगो मूलभाष्य १२९४ ।